उत्तराखंड जैसे संसाधन सीमित हिमालयी राज्य के लिए वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता केवल प्रशासनिक विषय नहीं बल्कि विकास का मूल आधार है. अरुण जेटली राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान (ऐ जे एन आई एफ एम) द्वारा जारी सार्वजनिक वित्तीय प्रबंध निर्देशक 2023-24 में उत्तराखंड का प्रदर्शन सराहनीय रहा है.
(Financial Discipline in Uttarakhand)
उत्तराखंड संसाधन प्रबंधन में सबसे ऊपर (0.577) और कंटिंजेंट लाइबिलिटी में सर्वोच्च (1.000)है जिसका तात्पर्य है कि राज्य ने सरकारी गारंटी तथा अन्य आकस्मिक दायित्वों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया है. इसके परिणाम स्वरूप इसका कुल कम्पोजिट स्कोर 0.644 रहा.
रिपोर्ट में लगभग 10 साल की अवधि में राज्यों की वित्तीय स्थिरता और प्रबंधन का आंकलन किया गया है. इससे प्राप्त “सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन निर्देशांक “देश के राज्यों के वित्तीय अनुशासन और राजकोषीय अनुशासन की दशा को सूचित करते हैं.उत्तराखंड “उच्च प्रदर्शन करने वाला राज्य “पाया गया है. स्वयं के स्त्रोतों से राजस्व जुटाने में उत्तराखंड ने विशेष प्रगति की है.
उदाहरण के लिए यह स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 2020 के बाद राज्य ने अपने कुल राजस्व का आधे से अधिक भाग अपने आतंरिक साधनों एवं स्त्रोतों से जुटाना आरम्भ कर दिया था. राज्य के कर राजस्व में वृद्धि (सी ए जी आर ~14%)हुई जो एस जी एस टी, पेट्रोलियम, शराब पर वैट, स्टाम्प ड्यूटी एवम पंजीकरण शुल्क से प्राप्त हुई.
अरुण जेटली राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान की सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन निर्देशक रपट के अनुसार उत्तराखंड ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वित्त प्रबंध योग्यता में हिमालयी राज्यों में दूसरा स्थान अर्जित किया है, पहले स्थान पर अरुणाचल प्रदेश रहा.
एजे.एन.आई.एफ.एम ने राज्यों को दो समूहों में बांटा है जिसमें सामान्य वर्ग में 18 राज्य हैं तो विशेष वर्ग में उत्तर पूर्व के साथ हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड रखे गये. उत्तराखंड ने संसाधन प्रबंध निर्देशांक में 0.577, व्यय प्रबंधन में 0.400,न्यूनता वित्त प्रबंधन में 0.567, ऋण प्रबंधन में 0.556, contingent liability में 1.000 का मान प्राप्त किया.जितना ऊँचा मान होगा उतना ही कम जोखिम होगा. वहीं तय से अधिक व्यय इंडेक्स 0.764 रहा. यह जितना ऊँचा होगा उतना ही कम सीमा से ऊपर का व्यय होगा.
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उत्तराखंड में आगम या राजस्व घाटे में सुधार आया है. राज्य को एक राजस्व अधिशेष मिला जिससे राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार हुआ. परन्तु व्यय की दक्षता और संसाधन उपयोग के क्षेत्रों में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है. राज्य की राजस्व संरचना और व्यय की प्रवृतियों को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि अनुचित खर्च, शीर्षों का दुरूपयोग और मॉनिटरिंग की कमी के कारण विकास की योजनाओं का अपेक्षित लक्ष्य के अनुरूप प्रभाव नहीं पड़ा है.
फिर राज्य के सामने कुछ बुनियादी चुनौतियाँ भी हैं जैसे हिमालय की भू आकृति, दुर्गमता, वनों से आच्छादित क्षेत्र, प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता जोखिम व अंतरसंरचना के निर्माण में पर्यावरण के मानकों की उपेक्षा से उपजे संकट जिनका सीधा दबाव वित्तीय प्रबंध पर पड़ता है. प्राकृतिक आपदाओं के कारण अप्रत्याशित व्यय व दबाव बढ़े हैं. फिर उत्तराखंड की पर्यटन -केंद्रित अर्थव्यवस्था से राजस्व में मौसमी उतार-चढ़ाव होने की प्रवृति बनी है. पर्यटन का स्वरूप विकेंद्रित है जहाँ धारक क्षमता से अधिक दबाव पड़ रहा है. ऐसे में पर्यटन के गुणात्मक आयाम अवमूल्यित होते जा रहे हैं. जिलवार अंतरसंरचनात्मक विविधताएं विद्यमान हैं. प्रादेशिक भिन्नताओं की प्रवृति देखी जाती है जैसे कई जिलों में कर संग्रह तंत्र डिजिटल नहीं है. इसी प्रकार सार्वजनिक उपक्रमों की उत्पादकता असमान होने से वित्तीय स्थिति सबल नहीं बन पाई है.
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उत्तराखंड ने हिमालयी राज्यों में दूसरा स्थान व सर्वदेशीय स्तर पर पांचवां स्थान प्राप्त किया. रपट में स्पष्ट किया गया है कि राज्य में खर्च की प्राथमिकताएं बदली हैं. शिक्षा-स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में विनियोग बढ़ा है तो सामाजिक-सुरक्षा पर किये व्ययों की पारदर्शिता बेहतर हुई है. उत्तराखंड में विकास-उन्मुख व्यय का अनुपात बढ़ा है अर्थात पूंजीगत विनियोग बढ़ा है तो पेंशन, वेतन, ब्याज भुगतान जैसे व्यय का अनुपात घटा है जिससे राजकोषीय लोचशीलता बढ़ी है. ऋण एवम देन दारी प्रबंधन में कुल राज्य ऋण का सकल घरेलू उत्पाद से अनुपात 27% से नीचे रहा है. केंद्र ने इसकी सीमा अधिकतम 30% रखी है. वित्तीय वर्ष 2023-24 में उत्तराखंड ने ₹1,000-₹1,200करोड़ रूपये का राजस्व अधिशेष अर्जित किया तो कुल राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 2.7% रहा जो एफ आर बी एम लक्ष्य से नीचे है. आकस्मिक दायित्वों में सार्वजनिक उपक्रमों की गारंटी व देनदारियां सीमित रखी गईं हैं; कुल गारंटी 2% जी एस डी पी रही
ए जे एन आई एम एफ व राज्य वित्त विभाग ने उत्तराखंड को उच्च क्षमतावाला वित्तीय कर्ता कहा. रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि यदि राज्य आगम विविधीकरण और कैपैक्स कुशलता बनाए रखे तो 2025-26 तक यह शीर्ष तीन राज्यों में आ सकता है. इसके लिए रपट में सुधार के जिन पक्षों को रेखांकित किया गया है उनमें (1) डिजिटलीकरण के द्वारा राजस्व संग्रह व ऑडिट मॉनिटरिंग को और सुद्रढ़ करना (2) सरकारी गारंटी नीति 2025 तैयार करने की संस्तुति (3) जिला स्तर पर “आउटकम बजटिंग ” को लागू करना तथा (4) ग्रीन बांड्स/क्लाइमेट फंडिंग जैसी फंडिंग आरम्भ करनामुख्य हैं.
उत्तराखंड संसाधन प्रबंधन में सबसे ऊपर (0.577) है तो आकस्मिक दायित्व में सर्वोच्च (1.000) जिससे राज्य ने सरकारी गारंटी व अन्य आकस्मिक दायित्वों को प्रभावी रूप से नियोजित किया है. इसी के परिणाम स्वरूप इसका कुल कम्पोजिट स्कोर 0.644 तथा स्पेशल कैटगिरी में दूसरा रहा. अब यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वह अपनी राजस्व विविधीकरण और कैपैक्स -क्षमता को अधिक कुशल करे जिससे और बेहतर कम्पोजिट स्कोर बना रहे.
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उत्तराखंड के लिए पी एफ एम सूचक में शीर्ष स्थान प्राप्त करने के लिए वित्तीय सुधार किये जाने आवश्यक हैं जिसके लिए निम्न उपाय नियमित रूप से किये जाने चाहिए.
(1) आगम या राजस्व का विविधीकरण : राज्य का लगभग 55% राजस्व स्वयं के स्त्रोतों जैसे एसजीएसटी, वैट, स्टाम्प शुल्क से आता है. अब सेवा कर और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर आधारित कराधान पर अधिक ध्यान देना है. खनन और जल विद्युत पर रॉयल्टी दरें अद्यतन रहें ताकि प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित राजस्व बढ़े. पर्यटन स्थलों और पर्वतीय मार्गो पर पर्यावरण शुल्क लागू हो जिन्हें हरित कर व इको फीस के रूप में वसूला जाए.
(2) व्यय की दक्षता को बढ़ाना होगा क्योंकि अभी व्यय प्रबंध निर्देशक मात्र 0.4000 है जिसका अभिप्राय है कि खर्च तो हो रहा है पर आउटपुट कम मिल रहा है. इसमें सुधार के लिए हर विभाग के लिए प्रदर्शन सूचक तय करने होंगे ताकि परिणाम आधारित बजट बने. दूसरा सार्वजनिक परिव्यय ट्रैकिंग प्रणाली से योजनाओं की मॉनिटरिंग डिजिटल रूप में करी जाए. तीसरा पूंजी परिव्यय कुशलता इकाई बनाई जाए जो सड़कों, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन परियोजनाओं की लागत प्रभावशीलता की निगरानी करे.
(3) उत्तराखंड में ऋण से सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 27% है जिसे अच्छा माना जा सकता है पर भविष्य में इस पर नियंत्रण जरुरी है. इसके लिए 10- वर्षीय ऋण योजना बने. घाटे वाली सार्वजनिक इकाईयों के ऋण को नियंत्रित किया जाए तथा राज्य गारंटी सीलिंग एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए. आकस्मिक दायित्वों की देखरेख पहले से उत्कृष्ट हैं.
(4) राज्य में पूंजीगत विनियोग पर अधिक प्रतिफल हेतु बेहतर प्रबंधन किया जाए. अधिकांश पूंजीगत विनियोग जो सड़क व अंतरसंरचना से संबंधित परियोजनाओं में किया जाता है वह समुचित प्रतिफल से जुड़ा नहीं दिखता. निरन्तर हानि की ऐसी दशाएं सामाजिक-आर्थिक कल्याण के स्तर को न्यून ही बनाए रखती हैं. ऐसे में समुचित प्रबंधकीय योजना के साथ पर्यटन, स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्र में पीपीपी मॉडल में विनियोग आकर्षित किये जाएं. स्वास्थ्य व शिक्षा में काफी विनियोग के बावजूद भी गुणात्मक दृष्टि से स्तर हीन व दुर्बल बना है. पर्यटन एवम वैलनेस अवस्थापना कोष भी स्थापित हो जो इस क्षेत्र की विसंगतियों को दूर करे.
(5) वित्तीय पारदर्शिता और नीति निर्माण को डाटा से संयोजित किया जाना जिससे अंतरनिहित वित्तीय प्रबंधन प्रणाली सामने आए अर्थात सभी विभागों को एक डिजिटल वित्त प्लेटफॉर्म से श्रृंखलाबद्ध कर दिया जाए. विशेषकर ग्रामीण व पर्यावरणीय परियोजनाओं में पायलेट आधार पर ब्लॉकचेन आधारित व्यय की ट्रैकिंग हो. इसी के साथ नागरिकों को वित्तीय जानकारी उपलब्ध कराने के लिए खुला डाटा पोर्टल हो.
(6) हिमालयी राज्यों के अनुरूप वित्तीय नवाचार के लिए कुछ विशेष उपाय जरुरी हैं जैसे केंद्र व निजी निवेशकों की भागीदारी से पर्वतीय विकास कोष की स्थापना हो. राज्य के जंगलों व हाइड्रो पावर के आधार पर हरित राजस्व अर्जित किया जाए जिसे कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम के अधीन संचालित किया जाए.
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वित्तीय संसाधनों की सीमित उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि प्रत्येक विभाग, निकाय एवम एजेंसी अपने व्यय, अनुबंध, गारंटी तथा अनुदानों में अधिकतम वित्तीय अनुशासन अपनाये. अरुण जेटली राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान रपट 2023-24 में व्यय दक्षता और संसाधनों की बर्बादी से संबंधित सुधार की आवश्यकतापर जोर दिया गया है. इसके लिए निम्न पक्ष विचारणीय हैं.
1. ई-प्रोक्योरमेंट प्रणाली का अनिवार्य प्रयोग हो. ₹ 10 लाख से अधिक की सभी निविदाऐं राज्य ई -प्रो क्योरमेन्ट पोर्टल के माध्यम से ही प्रकाशित व स्वीकृति प्राप्त करेंगी. एकल वेंडर की दशा में वित्त विभाग की पूर्व अनुमति अनिवार्य बने. किसी विभाग द्वारा मैन्युअल या ऑफ लाइन निविदा जारी करने पर संबंधित अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए.
2. बजटिंग प्रतिफल आधारित हो. प्रत्येक विभाग अपनी वार्षिक योजनाओं/परियोजनाओं हेतु मापन योग्य लक्ष्य तय करे. बजट का अनुमोदन इन्हीं लक्ष्यों की पूर्ति पर निर्भर होगा. लक्ष्यों की विफलता पर संबंधित प्रमुख /अधिकारी की जवाबदेही तय हो तथा अकुशल कार्य पद्धति पाए जाने पर वेतन वृद्धि, भत्ता, पदस्थापन पर रोक लगे.
3. ऐसी पूंजीगत परियोजनाएँ जो ₹5 करोड़ से अधिक की हों पर 100 दिन के भीतर त्वरित वित्तीय+तकनीकी ऑडिट अनिवार्य हो. ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाए. अनियमितता पाए जाने पर तत्काल वसूली व प्राथमिकी दर्ज की जाए.
4. सभी कल्याण कारी योजनाओं के अंतर्गत भुगतान केवल डीबीटी प्रणाली द्वारा किया जाए. डीबीटी खातों का त्रैमासिक ऑडिट कराया जाए. फर्जी लाभार्थी पाए जाने पर जिम्मेदार अधिकारी के विरुद्ध रिकवरी और दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित हो.
5. राज्य स्तर पर स्टेट गारंटी अप्रूवल कमेटी (एसजीएसी) गठित की जाती है. किसी भी पीएसयू संस्थान को राज्य गारंटी या अनुदान तभी मिलेगा जब एस जी ए सी से स्वीकृति प्राप्त होवर्ष में दो बार कनटिंजेंसी लाएबिलिटी रजिस्टर को सार्वजनिक किया जाए.
6. ₹20 करोड़ से अधिक की किसी भी परियोजना के लिए बिजनेस केस रिपोर्ट तथा वैल्यू फॉर मनी (वीएफएम) एनालिसिस आवश्यक हो. यह प्राविधान भी कि वित्त एवम नियोजन विभाग के संयुक्त अनुमोदन के बिना निधि जारी नहीं की जाएगी.
7. सभी कार्य अनुबंधों में न्यूनतम 10% भुगतान होल्डबैक रखा जाए. भुगतान केवल परियोजना की गुणवत्ता जांच एवम ऑडिट रिपोर्ट अनुमोदन के पश्चात् किया जाए.
8. संपत्ति प्रबंधन एवम मोनोटाइजेशन की प्रक्रिया सुनिश्चित हो. इसके अधीन सभी विभाग 3 माह में अपनी भूमि, भवन, वाहन एवम परिसंपत्तियों का जिओ-टैग्ड ऐसेट रजिस्टर तैयार करेंगे. निष्प्रयोज्य परिसम्पत्तियों को चिन्हित कर उनकी नीलामी /पट्टा /मोनेटाइजेशन नीति लागू की जाए. किसी संपत्ति के दुरूपयोग पर दंडात्मक व वित्तीय वसूली की जाएगी.
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9. जिला स्तरीय वित्तीय डैशबोर्ड हो जिसमें प्रत्येक जिलाधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि जिले में हो रहे व्यय, अनुबंध, परियोजनाएँ एवम लाभार्थी डाटा जिले के डैश बोर्ड पर मासिक रूप से प्रकाशित हों. यह पोर्टल जनसामान्य के लिए खुला रहेगा.
10. उत्तराखंड वित्तीय सतर्कता पोर्टल में कोई भी व्यक्ति गोपनीय रूप से वित्तीय अनियमितता की शिकायत कर सकेगा. शिकायतों की जांच अधिकतम 90 दिनों में पूरी कर रिकवरी व अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए.
11. वित्तीय अनुशासन के उल्लंघन पर दंड का प्राविधान हो जिसमें प्रथम स्तर पर वेतन / भत्ते पर रोक, द्वितीय स्तर पर वसूली एवम पदावनति, और गंभीर मामलों में निलंबन /अपराधिक कार्यवाही की जाए.
12. निगरानी एवम मूल्यांकन के अंतर्गत वित्त विभाग प्रत्येक तिमाही में समीक्षा करे. मुख्यमंत्री /मुख्य सचिव की अध्यक्षता में “राज्य वित्तीय अनुशासन परिषद” इन निर्देशों की निगरानी करे.
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सबसे गंभीर समस्या व असमंजस की दशा यह देखी गई है कि राज्य में वित्तीय अपव्यय या गड़बड़ी “नीति निर्माण” के स्तर पर नहीं बल्कि अनुपालन के स्तर पर होती है. तात्पर्य यह है कि नियम तो बड़े आदर्श व लोकलुभावन बन जाते हैं पर फील्ड या विभाग स्तर पर उनका अनुपालन नहीं होता. वित्तीय अनुशासन एवम अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संसाधनों के अपव्यय की रोकथाम एवम पारदर्शिता बनाए रखनी आवश्यक है. इसके मुख्य तीन पक्ष निम्न हैं :
(अ) संरचनात्मक नियंत्रण
(ब) प्रशासनिक सतर्कता एवम
(स) चुनाव अवधि वित्तीय नियंत्रण
उपर्युक्त का उद्देश्य राज्य की वित्तीय स्थिरता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है.
(अ) संरचनात्मक नियंत्रण के निम्न मुख्य पक्ष हैं :
1. डिजिटल फण्ड-रूटिंग और “कोड लॉक “प्रणाली जिसमें हर योजना को चार अंकों का व्यय उद्देश्य कोड (ईपीसी) दिया जाए. कोषागार में एक “कोड लॉक तालिका” तैयार होगी जहां ई पी सी व व्यय शीर्ष एक दूसरे से बंधे रहेंगे. किसी भी फाइल/बिल में असंगत ईपीसी होने पर प्रणाली स्वतः ही भुगतान अस्वीकार कर देगी. इसका लाभ यह होगा कि गलत मद से खर्च स्वयं ही रुक जाएगा जैसे वृक्षारोपण मद से कम्प्यूटर व कुर्सी मेज की खरीद संभव नहीं होगी.
2. वित्तीय फाइलों में व्यय का औचित्य देना अनिवार्य हो अर्थात भुगतान प्रस्ताव के साथ अधिकारी को संक्षिप्त नोट लिखना होगा कि यह व्यय योजना के उद्देश्य से मेल खाता है और अनुमोदित गतिविधि में आता है. ऐसे नोट डिजिटल हस्ताक्षर सहित आई एफ एम एस पर अपलोड कर दिए जाएं, बाद में किसी जांच में यह साक्ष्य होगा कि अनुमोदन अधिकारी ने व्यय की प्रकृति जाँची थी.
3. सचिवालय में मॉनिटरिंग डैशबोर्ड बने जो वित्त नियंत्रण व शिकायतों से संबंधित हो. यह आई एफ एम एस समंको से प्रति सप्ताह असामान्य खर्च, कोड-मिसमैच, बजट से अधिक व्यय या भुगतान में असामान्य वृद्धि की चेतावनी देगा. इसके द्वारा सचिव व वित्त आयुक्त को स्वचालित अलर्ट भेजे जाएं जिससे किसी भी गड़बड़ी का सही समय पर संकेत मिले.
4. तीन स्तरीय वित्त अनुमोदन प्रणाली की श्रृंखला बने जिसमें ₹5 लाख तक स्वीकृत प्राधिकारी जिलाधिकारी हो जो व्यय का उपयोगिता प्रमाण पत्र दे. ₹5 से 25 लाख की राशि विभागीय निर्देशक द्वारा संस्तुत रहे जिसके लिए पूर्व ऑडिट आवश्यक हो. ₹25 लाख से अधिक सचिव/अपर सचिव द्वारा नियोजन व वित्त विभाग के संयुक्त अनुमोदन के बाद स्वीकृत हो. इस प्रक्रिया का पालन करते हुए कोष बिना उपयोग की रिपोर्ट के आगे नहीं बढ़ेगा.
5. ₹20 करोड़ से अधिक की परियोजनाओं पर वित्त विभाग द्वारा वीएफएम ऑडिट किया जाना अनिवार्य किया जाए. ऑडिट रिपोर्ट के बिना निधि का आवंटन सम्भव न हो. इससे दिखावटी परियोजनाओं पर किया जा रहा अनुत्पादक व्यय करना सम्भव नहीं होगा.
6. समस्त विभाग हर तीन माह में अपनी परिसंपत्तियों की सूची सचिवालय में प्रस्तुत करें जिसमें भूमि, भवन, वाहन आदि सम्मिलित रहे. इनमें निष्प्रयोज्य -गैर उपयोगी संपत्तियों को किराये / नीलामी या सार्वजनिक उपयोग हेतु मोनिटाइज किया जाए.
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(ब) प्रशासनिक सतर्कता
7. प्रशासनिक सतर्कता के अंतर्गत सचिवालय स्तर पर एक पूर्व अनुमोदन जांच प्रकोष्ठ हो जो किसी भी विभाग में वित्तीय विसंगति की सूचना मिलने पर शुरुवाती स्तर पर ही जांच आरम्भ कर दे. प्रकोष्ठ “सेक्शन 17 अनुमति ले कर आरंभिक स्तर पर ही कार्यवाही करे.
8. ₹ 5 करोड़ से ऊपर की प्रत्येक योजना में उसके आरम्भ होने से 100 दिनों के भीतर स्वतंत्र ऑडिट टीम जांच करेगी.
9. जो विभाग लगातार वित्तीय नियमों का उल्लंघन करते पाए जाएं उन्हें “ग्रे लिस्ट” में डाला जाए. अगले वित्त वर्ष में उनके प्रस्तावों पर वित्त व नियोजन की विशेष समीक्षा हो.
10. जो विभाग 100% वित्तीय अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करें उन्हें “वित्तीय अनुशासन पुरस्कार” दिया जाए. जिन विभागों में तीन से अधिक ऑडिट प्रकरण लंबित हों उनकी वार्षिक स्वीकृति बजट कटौती का प्राविधान हो.
11. ‘उत्तराखंड वित्तीय सतर्कता पोर्टल’ के अधीन कोई भी व्यक्ति या कर्मचारी गोपनीय रूप से शिकायत दर्ज कर सकेगा. ऐसी शिकायतें 90 दिनों में निस्तारित की जाएं और इन पर लिया गया निर्णय वेब साइट पर डाला जाए.
12. हर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में समिति बने जिसमें कोषाधिकारी, स्थानीय ऑडिट ऑफिसर तथा एक स्वतंत्र पर्यवेक्षक (चार्टेड अकाउंटेंट / एनजीओ) हो.
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(स) चुनाव अवधि में विशेष नियंत्रण
13. निर्वाचन घोषित होने के साथ एक “चुनाव व्यय नियंत्रण डेस्क” (ईईसीडी) सक्रिय कर दी जाए यह देखेगा कि किसी भी विभाग द्वारा चुनाव की आदर्श संहिता का उल्लंघन न हो व कोई नया व्यय, टेंडर या भुगतान स्वीकृत न हो.
14. चुनाव के समय में संवेदनशील स्कीम व जनहित योजनाएँ जैसे सड़क, परिवहन, रोजगार की समीक्षा चुनाव से तीन माह पूर्व कर लिया जाए. अचानक बढ़े खर्चोँ पर “रेड फ्लैग ” लगे.
15. चुनाव वर्ष की अंतिम तिमाही में केवल वेतन, पेंशन, बिजली / जल बिल, डी बी टी लाभार्थी भुगतान व प्राकृतिक आपदा राहत व्यय स्वीकृत होंगे.
16. बड़े विभागों जैसे वन, सिंचाई, ग्रामीण विकास में तीसरे पक्ष की निगरानी संस्थान नियुक्त रहे जो चुनाव अवधि में व्यय उपयोग का प्रमाण दे.
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सचिव स्तर पर त्वरित निगरानी के उपाय लागू रहें जो संबंधित उत्तरदायी अधिकारी को रिपोर्ट करे जैसे कि (1) वित्त नियंत्रण डैशबोर्ड जो हर सप्ताह प्रमुख सचिव को (2) रेड फ्लैग रिपोर्ट जो हर माह लेखा महानिरीक्षक को (3) ग्रे लिस्ट अप डेट जो हर तिमाही योजना विभाग को (4) जिला ऑडिट रिपोर्ट मासिक रूप से जिलाधिकारी व संबंधित ऑडिट अधिकारी को व (5) चुनाव अवधि मॉनिटरिंग का दैनिक विवरण ईईसीडी सैल को दे.
त्वरित अलर्ट संकेतक हों जो संभावित विसंगति की तुरंत जानकारी दें जैसे एक योजना में माना अचानक 40% की व्यय वृद्धि हो तो इसका कारक फर्जी बिल या चुनाव घोषणा से पूर्व व्यय हो सकता है. यदि लेपटॉप, टेबल कुर्सी, वाहन, जलपान जैसे शब्द वृक्षारोपण या कृषि शीर्ष में हों तो यह गलत खरीद के संकेतक होंगे. ऐसे ही यदि डीबीटी में एक ही बैंक खाते पर दस से अधिक भुगतान हों तो यह फर्जी लाभार्थी को सूचित करेगा. यदि एक ही सप्लायर को कई विभागों से भुगतान हो रहा हो तो इसे अनुचित निविदा समूह के संदेह में देखा जा सकता है.
अंततः मुख्य सचिव की अध्यक्षता में “राज्य वित्तीय अनुशासन परिषद” बनाई जाए जो कार्यान्वयन तंत्र संभाले व हर माह समीक्षा करे. ऐसे ही वित्त विभाग प्रत्येक तिमाही में “फाइनेन्शियल इंटीग्रिटी बुलेटिन जारी करे.
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इन उपायों से राज्य में
1. गलत मद से व्यय की संभावना न्यून हो जाएगी
2. सार्वजनिक व्यय का पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित होगा
3. सी एंड ऐ जी रिपोर्टो में दोहराई जाने वाली अनियमितताएं न्यूनतम रह जाएंगी.
राज्य की राजस्व संरचना और व्यय की प्रवृतियों को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि अनुचित खर्चोँ, शीर्षों के दुरूपयोग और मॉनिटरिंग की कमी के कारण विकास योजनाओं का प्रभाव सीमित हो जा रहा है. अब समय है कि उत्तराखंड एक वित्तीय अनुशासन मिशन के रूप में इस चुनौती को स्वीकार करे.
संसाधनों के संरक्षण और पारदर्शी शासन की प्राथमिकता से वित्तीय अनुशासन की उपर्युक्त नीतियों पर चलते हुए उत्तराखंड न केवल स्पेशल कैटैगरी राज्यों में शीर्ष स्थान, बल्कि राष्ट्रीय औसत से ऊपर की कम्पोजिट इंडेक्स (~0.70+) प्राप्त कर सकता है.
सन्दर्भ :
यह विश्लेषण अरुण जेटली राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान (एजेएनआईएफएम) की पब्लिक फाइनेंसियल मैनेजमेंट संस्थान इंडेक्स 2023-24), भारतीय रिज़र्व बैंक की “स्टेट फाइनेंस स्टडी” तथा सी एंड ए जी रिपोर्ट ऑन उत्तराखंड फाइनेंस 2023 के निष्कर्षों पर आधारित है. नीति संश्लेषण और तुलनात्मक अध्ययन से उपाय सुझाए गए हैं.

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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