पहाड़ के लोक में महिला लोक गायिकाएं पहले भी रही हैं जिनमे कुछ ने संचार माध्यमों से प्रसिद्धि पाई तो कुछ ने गुमनामी में रहकर भी यहां के लोक को अपनी गायन कला से सजाने और संवारने का अद्भुत कार्य किया.
(Female Folk Singers in Uttarakhand)
गीत और नृत्य को जीवन का संचार माना जाता है. सही मायने में लोक में रचे-बसे गीत और नृत्य ही उस समाज की संस्कृति को विशिष्टता प्रदान करते हैं. भारतीय संस्कृति में भगवान शिव और गंधर्वों को आदि संगीत का जनक माना है. उत्तराखंड के गढ़वाल-कुमाऊं-जौनसार इलाके के गीत-संगीत को सदियों से जीवंत बनाने में यहां के बद्दी (बेड़ा), मिरासी, ढाक्की परिवार की अद्वितीय भूमिका रही है. गढ़वाल अंचल के बेड़ा समुदाय के लोग अपनी संगीत परम्परा को गंधर्वों से जोडते हैं और स्वयं को शिव का वंशज मानते हैं.
गायन और नृत्य से किसी तरह अपनी आजीविका चलाने वाले ये गुमनाम साधक ही पहाड़ी लोक संस्कृति के संवाहक हैं. गाने-बजाने की कला में निपुण होने के साथ ही ये लोग गीत रचने में भी सिद्धहस्त होते हैं. देवी-देवताओं से जुड़े कथानकों से लेकर समाज की सम-सामयिक घटनाओं को भी ये आशु-कवि सहजता से अपने गीतों में ढाल लेते हैं. इनके मिठास भरे गीत और उनकी लय तथा मंथर गति में लास्य व भाव से परिपूर्ण नृत्य हर किसी व्यक्ति के मन को छू लेने में समर्थ रहते हैं.
पहाड़ के लोक में महिला गायन की परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसे कुमाऊं में पिठौरागढ़ की कबूतरी देवी के साथ-साथ गढ़वाल में गौरिकोट की सुंदरी दीदी, डांगचौरा की परतिमा देवी, दोणि की बचन देई, टेका की कौशल्या देवी, रूद्रप्रयाग की चकोरी देवी और धौलछीना अल्मोड़ा की आनन्दी देवी के अलावा और भी अन्य कई सुर साधिकाओं ने आगे बढ़ाया है.यही नही यहां के अनेक गुमनाम गायिकाओं ने भी पहाड़ की लोक संस्कृति को संवारने में अपना योगदान दिया है जिसे भुलाया नही जा सकता.
(Female Folk Singers in Uttarakhand)
कुमाऊं के कुछ पुराने महिला लोक गायिकाओं का इस संदर्भ में यहाँ पर उदाहरण देना कदाचित उपयुक्त होगा जिनके गीत एक जमाने में लोकप्रिय रहे थे… आज शायद ही कहीं उनकी मधुर आवाज पुराने ग्रामोफोन रिकार्ड में विद्यमान होगी. अल्मोड़ा के वरिष्ठ संस्कृति विशेषज्ञ और साहित्यकार जुगल किशोर पेटशाली के अनुसार कुमाऊं के कुछ पुराने लोक गायिकाओं के गाये लोकगीत सौ साल से भी अधिक पुराने हैं जिनमे मास्टर शेर सिंह, इन्द्रबाई, एवम रामप्यारी का झोड़ा गीत “सुरमाली कौतिक लागो, मार झपैका” उस जमाने मे काफी लोकप्रिय रहा था. इसके अलावा गोपी देवी का – हिट वे चना मला कत्यूरा, अल्मोड़े की मोहिनी बुलानी किलै नै, सोरे की पिरूली पधानी पाणी पिजा पाणी, गांधी रे महात्मा गांधी छुंम गीत तथा चंपा देवी का गाया यह गीत तली बै मोटर ऐगे व हाई वे घस्यारी मालू, धुर आये घास काटना भी सालों पुराने गीत हैं.
अपनी विशिष्ठ गायन शैली, खनकदार आवाज के कारण अनेक पुरानी महिला लोक गायक पहाड़ी लोक विरासत की समृद्ध संवाहक रही हैं साथ ही वर्तमान में कई महिला लोक गायिकाएं इस काम को आगे बढ़ा रही हैं. इधर दो एक साल में उत्तराखंड दूरदर्शन व आकाशवाणी केंद्रों ने भी अपने लोक-संगीत के कार्यक्रमों में कई उभरती लोक गायिकाओं की प्रस्तुति देकर इन्हें नई पहचान देने का महत्वपूर्ण कार्य किया है.
(Female Folk Singers in Uttarakhand)
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पहाड़ की लोककला संस्कृति और समाज के अध्येता और लेखक चंद्रशेखर तिवारी दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, 21,परेड ग्राउण्ड ,देहरादून में रिसर्च एसोसियेट के पद पर कार्यरत हैं.
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