इस बात में कोई दोराय नहीं है कि कुमाऊं क्षेत्र में का आगमन मथुरा के आस-पास के इलाकों से हुआ है. कुमाऊं में गाई जाने वाली होलियों बृज और खड़ीबोली का स्पष्ट प्रभाव देखा जाता है. कुमाऊनी में गाई जाने वाली होलियों के कम होने का एक कारण भी यह है कि बृजभाषा और खड़ीबोली की होलियों ने स्थानीय लोक में घुलकर जो रंग दिया उसका सानी कुछ न था. इस मिश्रण से कुमाऊं क्षेत्र में होली की एक समृद्ध परम्परा बनी.
(Father of Classical Kumauni Holi)
ऐसा माना जाता है कि बरसों पहले अल्मोड़े में बृज की टोलियाँ रासलीला करने आया करती थी. इन टोलियों में मुस्लिम कलाकार भी शामिल हुआ करते थे. 1870-80 के दशक में उस्ताद अमानत हुसैन अल्मोड़ा के प्रमुख शास्त्रीय होली गायकों में हुये. हुक्का क्लब के वरिष्ठ रंगकर्मी शिवचरण पांडे के अनुसार उस्ताद अमानत हुसैन रामनगर के रहने वाले थे जो बाद में अल्मोड़ा के ही होकर रह गये.
कुमाऊं में गायी जाने वाली बैठकी होली में प्रयुक्त होने वाली चाचर ताल की शुरुआत उस्ताद अमानत हुसैन द्वारा ही की गयी थी. इसी कारण शास्त्रीय कुमाऊनी होली का जनक उस्ताद अमानत हुसैन को माना जाता है. मल्ली बाज़ार के गांगी लाल वर्मा (गांगी थोक) के घर में होने वाली बैठकी होली में रामप्यारी जैसी बड़ी कलाकार के आने की बात कही जाती है.
(Father of Classical Kumauni Holi)
मोहन लाल साह, शिवलाल वर्मा, गांगी थोक और मल्ली बाज़ार अखाड़ा हनुमान मंदिर के महंत आधी सदी तक अल्मोड़ा के सर्वोच्च कलाकार माने गये. मल्ली बाज़ार अखाड़ा हनुमान मंदिर के महंत को उत्तराखंड का भातखंडे माना जाता है. अल्मोड़ा के मल्ली बाज़ार, लाल बाज़ार आदि में होली की बड़ी बड़ी महफिले जमने की बात अभी अधिक पुरानी नहीं हुई है.
वर्तमान में अल्मोड़ा में बैठकी होली की परम्परा का सारा दारोमदार हुक्का क्लब और खताड़ी मौहल्ले के लोगो पर ही है जो आज भी पौष के पहले रविवार से लेकर छलड़ी तक एक साथ बैठकर बैठकी होली का आयोजन करते हैं.
(Father of Classical Kumauni Holi)
-स्व. दीप जोशी की रिपोर्ट के आधार पर
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