बड़ी पुरानी बात है. एक गांव में एक बुड्ढा और बुढ़िया रहा करते थे. ज़िन्दगी के तीन-तिहाई साथ बिताने के बाद भी दोनों के बीच ख़ूब लड़ाई-झगड़ा हुआ करता. बच्चे उनके थे नहीं एक बेटी थी जिसकी सालों पहले शादी हो चुकी थी.
(Famous Kumaoni Folklore)
हर दिन होने वाले झगड़ों से तंग आकर एक दिन बुढ़िया ने बुड्ढे से कहा- हम दोनों को अलग-अगल हो जाना चाहिये जो कुछ भी हमारे पास है उसे आपस में बांट लेते हैं. बुढ़िया की बात सुनकर बुड्ढे को लगा कि रात-दिन के लड़ाई झगड़े से तो बेहतर अलग-अलग रहना ही है. बुड्ढा बोला- ठीक है हम दोनों अलग हो जाते हैं.
बुड्ढे और बुढ़िया के पास आपस में बांटने को जायदाद तो हुई नहीं. ले दे कर एक गाय और एक बैल ही तो था. गाय आई बुढ़िया के हिस्से बैल आया बुड्ढे के. बुढ़िया की गाय दूध देने वाली थी. बुड्ढा सुबह होने से एक पहर पहले ही बुढ़िया के गोठ जाता और उसका सारा दूध लगा आता. बुढ़िया कुछ कहती तो कहता- मेरा बल्द ब्या रखा है उसी की धिनाली खाता हूँ.
जब बुढ़िया को खाने पीने की कमी होने लगी तो उसने सोचा कि कुछ दिन बेटी के घर होकर आया जाये. तब बुड्ढे से निपटने का कोई रास्ता ही सूझ जाये यही सोचकर बुढ़िया अपनी बेटी के घर की ओर लगी.
बेटी के घर के लिये जंगल का रास्ता पकड़ा ही था कि एक बाघ मिल गया. कहने लगा- बुढ़िया रे बुढ़िया तूने सुना की नहीं, मैंने है तुझे खाना कहाँ को जो है तेरा जाना. बुढ़िया ने कहा- आज में अपनी बेटी के ससुराल को लगी हूँ. चार दिन वहां रहकर खूब खाऊँगी पियूंगी और मोटी होकर आऊंगी, तब तू मुझे खाना. बाघ को बुढ़िया की बात जच गयी और उसने बुढ़िया को जाने दिया.
बाघ से निपटकर बुढ़िया थोड़ा आगे पहुंची ही थी कि भालू मिल गया. भालू ने भी बुढ़िया से वही कहा और बुढ़िया ने भालू को भी वही जवाब दिया. बात भालू को भी जच गयी. आगे जाकर बुढ़िया शेर से टकरा गयी सियार ने भी बुढ़िया से वही कहा और बुढ़िया ने अपनी बात फिर वही कही. शेर भी राजी हो गया. जैसे-तैसे कर बुढ़िया अपनी बेटी के ससुराल पहुंची.
(Famous Kumaoni Folklore)
बेटी के ससुराल में बुढ़िया की खूब आव-भगत हुई. बुढ़िया ने रास्ते की बात किसी को नहीं बताई. बेटी अपनी मां का खूब ख्याल करती एक से एक पकवान बनाकर खिलाती पर बुढ़िया के शरीर में कुछ न लगता बल्कि वह तो दिन पर दिन सूखती जा रही थी. बेटी के मन को यह बात अच्छी न लगी. उसने अपनी मन से कहा- ईजा मैं तुझे हाथ पैर तक हिलाने नहीं दे रही, अच्छा बुरा जैसा भी होता है खाना-पीना भी मैं पूरा दे ही रही हूँ फिर भी तेरे शरीर को कुछ लगता ही नहीं. लगना तो छोड़ ईजा तू तो और ही सूखती जा रही है. तेरे मन में कोई दुःख है तो तू मुझे बता न.
बुढ़िया ने बेटी को घर से रास्ते तक की पूरी बात बता दी. बेटी ने कहा- अरे ईजा तू फ़िकर न कर मैं सब जुगुत ठीक कर दूंगी. बुढ़िया का मन अब हल्का हो गया और खाना भी उसे लगने लगा. अब आया अपने घर लौटने का दिन. बुढ़िया की बेटी ने एक बड़ी तुमड़ि में काला मोसा लगाकर बैठा दिया और बुढ़िया के हाथ में पकड़ा दी एक पुंतुरि. पुंतुरि में उसने पीसी हुई मिर्च को नमक संग मिलाकर रखा था. बेटी ने तुमड़ि को लगाया बुढ़िया के घर के रास्ते और दिया धक्का तो चलने लगी तुमड़ि गोल-गोल.
रास्ते में तो बाघ,भालू और शेर कर रहे थे. शेर ने रास्ते में घुर-घुर करके आती तुमड़ि को देखा तो पूछा- तुमड़ि ओ तुमड़ि क्या तूने रास्ते में किसी बुढ़िया को देखा. तुमड़ि के भीतर से ही बुढ़िया ने कहा- रस्ते-रस्ते चल तुमड़ि हम क्या जानें बुढ़िया की बात. तुमड़ि जब गुरकते हुए थोड़ा आगे पहुंची तो बाघ मिल गया. बाघ ने भी वही सवाल किया और बुढ़िया ने वही जवाब दिया और तुमड़ि अपने रस्ते गुरकती रही.
अब तुमड़ि को मिला भालू. भालू ने भी तुमड़ि से वही सवाल पूछा और बुढ़िया ने वही जवाब दिया. तुमड़ि अपने रस्ते गुरकती इससे पहले भालू को आ गया गुस्सा. भालू ने तुमड़ि पर एक जोर की लात मार दी तो तुमड़ि के टुकड़े-टुकड़े हो गये और बुढ़िया दिखने लगी. तब तक बाघ और शेर भी वहां पहुंच गये.
भालू, बाघ और शेर तीनों ने कहने लगे- मैं बुढ़िया को खाऊंगा, मैं बुढ़िया को खाऊंगा. तीनों आपस में लड़ने लगे तो बुढ़िया ने कहा- अरे बच्चों लड़ो मत एक काम करते हैं मैं ऊपर पेड़ में चढ़ जाती हूँ फिर वहां से कूद जाऊंगी जिसके हाथ लगी वो मुझे खा लेना. तीनों जानवर बुढ़िया की बात मान गये. बुढ़िया पेड़ में चढ़ी और अपनी पुंतुरि खोलने लगी.
(Famous Kumaoni Folklore)
तीनों जानवर बुढ़िया का इंतजार करते हुये पेड़ की तरफ़ आँखें गढ़ाये खड़े थे कि बुढ़िया ने पुंतुरि से मिर्च और नमक फेंक दिया. तीनों जानवरों की आंख में मिर्च गयी तो दर्द से फुराड़ीकर एक दूसरे को नोचने लगे और बुढ़िया वहां से खिसक गयी.
घर पहुंची तो बूढ़े ने देखा उसकी घरवाली तो काले रंग में रंगी हुई है. बूढ़े ने पूछा- क्यों रे आज तेरा रंग काले मसाण जैसा क्यों हो रखा? बुढ़िया ने कहा- रास्ते में एक गाड़ पड़ी मैंने उसके पानी में आग लगा दी तो मेरा रंग काला हो गया. बुड्ढे ने कहा- आरे पागल कहीं पानी में भी आग लगती है है क्या? बुढ़िया ने कहा- क्यों नहीं बैल भी तो ब्या जाता है. बुढ़िया की बात सुनकर बुड्ढे को बड़ी खिसेन पड़ गयी और उस दिन से उसने गाय को हाथ लगाना छोड़ दिया और फिर कुछ दिनों दोनों का फिर से मेल हो गया.
(Famous Kumaoni Folklore)
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