समाज

कोरोना के खतरे से पहाड़ में फिर बढ़ेगा रोज़गार का संकट

देश में कोरोना के नए रूप ओमीक्रोन के बढ़ते आंकड़ों ने फिर से सभी के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं. इस नए स्वरूप के खतरे को रोकने के लिए केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारों ने एहतियाती कदम उठाना शुरू कर दिया है. एक जगह इकट्ठा होकर नए साल के जश्न मनाने पर पाबंदी लगा दी गई है, वहीं शादी-ब्याह और अन्य समारोह पर भी लोगों की संख्या को सीमित कर दिया गया है. कुछ राज्यों ने नाईट कर्फ्यू भी लगाना शुरू कर दिया है. दरअसल दूसरी लहर की त्रासदी ने सभी को एक सबक सिखाया है, जिसके बाद से कोई भी सरकार खतरा मोल नहीं लेना चाहती है. हालांकि अफसोसनाक पहलू यह है कि सरकार के तमाम प्रयासों पर स्वयं जनता ही पानी फेरने पर आमादा नज़र आ रही है. (Corona Employment Crisis Mountain)

ग्रामीण क्षेत्रों से कहीं अधिक देश के महानगरों के बाज़ारों में बढ़ती भीड़ एकबार फिर से महामारी को आमंत्रण दे रही है. लोग सरकार की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाकर सड़कों और बाज़ारों में उमड़ रहे हैं. दरअसल पिछली दो लहरों के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है. इसका सबसे बुरा प्रभाव रोज़गार पर पड़ा है. हज़ारों लोगों की नौकरियां जा चुकी है. सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में देखने को देखने को मिला. जहां दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में कमाने गए राज्य के लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ चुकी हैं. यही कारण है कि एक बार फिर से बढ़ते आंकड़ों ने लोगों के सामने रोज़गार का संकट खड़ा कर दिया है.

वर्ष 2020 में जब से विश्व ने कोरोना काल में प्रवेश किया तो हर किसी ने कुछ न कुछ खोया है. हर चेहरे पर उदासी, आंसू और मौत का एक खौफ देखने को मिला है. इस दौर में सबसे अधिक नुकसान पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को उठाना पड़ा है. जिन्हें अपने लोगों को खोने के साथ साथ आर्थिक रूप से भी भारी क्षति उठानी पड़ी थी. बेहतर भविष्य और पैसे कमाने की खातिर राज्य से पलायन कर चुके लोगों को कोरोना ने पुनः उन्हें गांव की ओर लौटने के लिए मजबूर कर दिया था. जो उस समय जान हानि की दृष्टि से बहुत उचित प्रतीत था, परन्तु इस प्रवास से जहां राज्य में कोरोना मामलों में इतनी बढ़ोतरी हुई कि मौत के आंकड़े ने हजार की संख्या को पार कर लिया वहीं प्रवासियों के आजीविका का खतरा भी बहुत अधिक बढ़ गया. हालांकि प्रवासियों ने वापस आकर समय के साथ समझौता कर कृषि को अपनी आजीविका का साधन बनाया. 

धीरे-धीरे पर्वतीय समुदाय के लोगों का जीवन मुख्यधारा की ओर लौटने भी लगा था कि अक्टूबर माह में आई प्राकृतिक आपदा ने एक बार फिर से इस क्षेत्र को आर्थिक रूप से ज़बरदस्त नुकसान पहुंचाया और तक़रीबन 4-5 वर्ष पीछे धकेल दिया और अब फिर से कोरोना के बढ़ते मामलों ने स्थानीय निवासियों की चिन्ता को बढ़ा दिया है. लॉकडाउन के भय से लोगों पुनः परेशान होने लगे हैं. लोगों की आशंका है कि यदि एक बार फिर से लॉकडाउन लगता है तो राज्य को आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ेगा. लोगों के पास आजीविका और रोजगार का संकट भयानक रूप ले लेगा और कही ऐसी स्थिति न हो जाए कि भुखमरी से मौत का ग्राफ कोरोना से कहीं अधिक विकराल रूप धारण कर ले.

इस संबंध में अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए नैनीताल की रहने वाली धना देवी बताती हैं कि वह मोजे, ग्लब्ज और टोपी बुनकर इन्हें शाम को स्थानीय मालरोड़ फड़ में बेचकर रु.200 प्रतिदिन कमा लेती हैं. जिससे इनके परिवार का गुज़ारा चलता है. लेकिन पुनः लॉकडाउन लगता है तो उनकी कमर ही टूट जाएगी. वह बताती हैं कि इससे पूर्व के लॉकडाउन ने भी उनके परिवार को झकझोर दिया था. इसी फड़ से परिवार का लालन पालन का कार्य चलता है. परिवार में अन्य सदस्य बहुत ही कम पैसों पर प्राइवेट नौकरी करने पर मजबूर हैं. वह कहती है यदि यही बंद हो जायेगा तो वह अपने परिवार का लालन पालन कैसे करेगी? कोरोना के नियमों के पालन पर जोर देते हुए उन्होने सरकार व सभी लोगों से अपील की कि यदि हम सभी कोरोना गाइडलाइन का पालन का दैनिक कार्यों को करें तो लॉक डाउन की समस्या का हल आसानी से निकाला जा सकता है. धना देवी कहती हैं कि वह स्वयं रोज़गार के साथ साथ अन्य लोगों को भी मास्क और सेनेटाइजर के लिए जागरूक करती रहती हैं. 

इस संबंध में सुन्दरखाल के ग्राम प्रधान पूरन सिंह बिष्ट बताते हैं कि कोरोना की इस लहर से पहले ही उनके ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति को कोरोना के दोनों टीके लगा दिये गये हैं. साथ ही ग्राम में बैठकों शिविरों के माध्यम से ग्राम वासियों को इसके रोकथाम व खतरे से अवगत किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यदि लॉकडाउन के कारण प्रवासी एक बार फिर से गांव लौटते हैं तो उनके क्वारंटाइन के लिए पिछले वर्ष से अच्छी व्यवस्था की गयी है. साथ ही उनके रोजगार के लिए ग्राम स्तर पर ही लघु उद्योग स्थापित किये जा रहे हैं. इसके अतिरिक्त खेती, बागवानी के साथ उन्हें जोड़कर रोजगार के इंतज़ाम मुहैय्या कराये जायेंगे. यदि लॉकडाउन लगा तो ग्राम वासियों द्वारा आपस में स्वयं एवं प्रवासियों हेतु राशन की पूर्ण व्यवस्था के इंतजाम किये गये हैं. इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा वर्तमान परिस्थितियों में अधिक से अधिक सहायता मिले, इसके प्रयास किये जा रहे हैं.

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वहीं भीमताल के मुख्य विकास अधिकारी कमल मेहरा के अनुसार कोरोना के बढ़ रहे प्रभाव को देखते हुए सभी को सचेत रहने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि यदि दोबारा लॉकडाउन लगाने की स्थिति आती है तो युवाओं के रोजगार का संकट अचानक होगा. रोजगार विहीन पर आर्थिक चुनौती के साथ साथ मानसिक चुनौती का प्रहार भी देखने को मिलेगा. इसी चुनौती से निपटने के लिए सरकार द्वारा रोजगार नीतियों पर विशेष फोकस किया जा रहा है. सरकार द्वारा संसाधन आधारित रोजगार, लघु उद्योग और स्थानीय उत्पादों द्वारा आजीविका संवर्धन पर रूपरेखा बनायी जा रही है जो लॉकडाउन पर समुदाय व प्रवासियों के लिए रोजगार का सरल साधन बन सकता है.

बहरहाल कोरोना के नए खतरे को रोकने के लिए सरकार हर स्तर पर अपना कार्य कर रही है. लेकिन इसके साथ साथ हम सबका भी दायित्व बनता है कि इस महामारी को फिर से विपदा बनने से रोकें. सरकार द्वारा बनाये गये नियमों का पालन करके ही कोरोना की रोकथाम संभव है. यदि पर्वतीय क्षेत्रों के दो भयावक विषय ‘रोजगार और स्वास्थ्य’ पर गंभीरता विचार नहीं किया गया तो निश्चित रूप से कोरोना की पुनः मार बढ़ सकती है और राज्य में एक बार फिर से रोज़गार का संकट खड़ा हो सकता है. (Corona Employment Crisis Mountain)

हल्द्वानी, नैनीताल की रहने वाली बीना बिष्ट का यह लेख हमें चरखा फीचर से मिला है.

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Sudhir Kumar

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