शौक के लिए आपका जूनून आपकी कई तरह की समस्याओं का समाधान ला सकता है, कुछ ऐसी ही कहानी है दिनेश लाल की. 1980 में ग्राम सभा जेलम, पोस्ट खंडोगी, टिहरी गढ़वाल के मूर्ति मिस्त्री के घर में पैदा हुए दिनेश लाल. साल 2002 में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आम घरों के हर नौजवान की तरह दिनेश लाल के लिए भी आजीविका का संकट आसन्न था.
ज्यादातर पहाड़ी नौजवानों की तरह दिनेश ने भी अपनी नियति के अनुसार तय क्षेत्रों में से एक की राह चुनी – रेस्टोरेंट. यहाँ कई तरह के काम करते हुए दो-चार सालों की कड़ी मेहनत से दिनेश तंदूर के अच्छे कारीगर बन गए. पंजाब, नौएडा, बम्बई समेत कई शहरों में काम किया और 2007 में दुबई जा पहुंचे. यहीं पर दिनेश के भीतर छिपे कलाकार को पनपने का मौका मिला. उन्होंने तंदूर के साथ-साथ फूड गार्निशिंग के काम में भी हाथ आजमाया.
इस दौरान जिंदगी के पटरी पर आने के बावजूद यह नौजवान संतुष्ट नहीं था. जिंदगी में कहीं कुछ था जो कचोट रहा था. जिंदगी में सारतत्व के अभाव ने दिनेश को विषाद से भर दिया. समस्या इतनी बढ़ी की उन्हें अवसाद के इलाज के लिए डाक्टर की शरण में जाना पड़ा. अवसाद बढ़ता गया, इतना कि 2009 में काम-धंधा छोड़कर गाँव लौटना पड़ा. गाँव में दिनेश ने पेंटर का काम शुरू किया. सरकारी महकमों से लिखाई और चित्र बनाने की एवज में 1000 रूपए का जुगाड़ हो जाता था. इस दौरान बेटे द्वारा रिमोट वाली कार मांगने ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी. कार की जगह दिनेश ने लकड़ी की पोकलैंड बनाकर उसे दे दी, जो गाँव भर में सराही गयी.
इसी दौरान गाँव में मौजूद एक तिबारी (पारंपरिक पहाड़ी घर) ने उन्हें आकर्षित करना शुरू किया. तिबारी की बनावट, वास्तुशिल्प, और नक्काशी ने उनको अपने मोहपाश में बुरी तरह जकड़ लिया. पिता ने उन्हें बारह सालों के अथक प्रयासों से बनी तिबारी के अतीत से मिलवाया. उन्हें अपने जीवन का सारतत्व दिखाई दिया. दिनेश ने 2012 में इस तिबारी की छोटी प्रतिकृति हफ्ते भर में तैयार कर डाली.
इस माडल की चर्चा गाँव से बाहर तक जा पहुंची. उनके एक मित्र इसे ले गए और स्थानीय बाजार के अपने ढाबे पर सजा दिया. तत्काल ही स्थानीय स्तर पर इसकी मांग आने लगी. वाट्सएप और फेसबुक में इस तिबारी की तस्वीरें शेयर की जानी लगी. फेसबुक के माध्यम से जब चर्चे देहरादून पहुंचे तो ड्रग इंस्पेक्टर सुरेन्द्र भंडारी ने एक तिबारी खरीदी. इस वक़्त तक दिनेश लाल उत्तराखंडी लोक जीवन, संस्कृति और परिवेश से जुड़ी कई वस्तुओं की प्रतिकृतियाँ बनाने लगे थे मगर तिबारी उनका सिगनेचर बन गयी.
पौड़ी उद्योग विभाग के महाप्रबंधक विपिन कम्बोज ने दिनेश को केदारनाथ मंदिर बनाने के लिए प्रेरित किया, इसके लिए वह मानसिक तौर पर तैयार नहीं थी. बहरहाल इसे बनाने में कामयाबी मिली और विपिन ने उन्हें इसकी एवज में अपनी जरूरत के औजार खरीदने के पैसे दिए और उद्योग विभाग के प्रबंधक के जरिये विभागीय आर्डर भी दिलवाये. अब तक का सफ़र जुगाड़ औजारों से ही चल रहा था.
दो साल पहले विधायक धन सिंह नेगी ने दिनेश की तिबारी मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र को भेंट की. फिर क्या था मीडिया ने मुद्दा लपका और दिनेश लाल की लोकप्रियता प्रदेश भर में फैल गयी. इसके बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से राज्य स्थापना दिवस के लिये 40 तिबारियों की मांग का चौथाई भी वह पूरी नहीं कर पाये. आज अपने हस्तशिल्प से दिनेश आजीविका कमा लेते हैं. आजीविका और शौक के सम्मिलन ने अवसाद को खदेड़ दिया है.
दिनेश कहते हैं “अगर में चाहूं तो बहुत कुछ उकेर सकता हूँ मगर मेरी प्रतिबद्धता अपने लोक के लिए है, मैं उत्तराखंडी लोकजीवन को अपने शिल्प के माध्यम से जिंदा रखना चाहता हूँ.” दिनेश उन सभी का आभार जतलाना नहीं भूलते जिन्होंने इस यात्रा में अपना योगदान दिया.
-सुधीर कुमार
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