कुमाऊँ में प्रचलित ऐतिहासिक वीरगाथाओं में से एक है अस्कोट की रानी धना (Dhana, Warrior Kumaon) की वीरगाथा.
धना डोटी के रैंका शासक कालीचंद के पिता की भांजी और कुमाऊँ की अस्कोट रियासत के राजा नारसिंह की पत्नी थी.
नार सिंह काली कुमाऊँ पर अधिकार प्राप्त करना चाहता था. इसी नियत से उसने काली पार के डोटी इलाके पर कब्ज़ा करने का मन बना लिया. उस समय डोटी पर धना के मामा का बेटा कालीचंद शासन कर रहा था.
जब नार सिंह ने अपना इरादा रानी धना को बताया तो उसने ऐसा करने को मना किया. उसने कहा कि काली के उस पार से जिन्दा लौट आना बहुत मुश्किल है, अतः ऐसा दुस्साहस न किया जाये तो बेहतर है. लेकिन नार सिंह ने सोचा धना अपने मायके को ज्यादा आंककर ही ऐसी बात कर रही है. नार सिंह ने रानी धना को आश्वस्त करते हुए कहा कि में जल्द ही कालीचन्द का सर काटकर वापस आऊंगा या फिर वहीँ मृत्यु का वरण कर लूँगा.
इसके बाद रजा नार सिंह युद्ध के लिए चल पड़ा. काली नदी को कटे हुए पेड़ों से पाटकर वह तल्ली डोटी पहुँच गया. उसके बाद वह कालीचन्द को हराने के इरादे से मल्ली डोटी पहुँच गया और उसे जीत भी लिया.
लम्बे युद्ध से थककर वह वापसी में तल्ली डोटी की सीमा पर आराम करने लगा.
कालीचन्द को इस बात की भनक लग गयी और वह तल्ली डोटी पहुँच गया. यहाँ पहुंचकर उसने आराम करते नारसिंह पर हमला कर दिया. घमासान लड़ाई हुई. नार सिंह लम्बे सफर और युद्ध से थके हुए थे अतः पस्त होने लगे. मौका पाकर कालीचन्द ने उनके दोनों हाथ काट दिए. नार सिंह ने वहीँ दम तोड़ दिया.
अस्कोट में यह समाचार सुनकर धना ने डोटी जाकर राजा की मृत्यु का बदला लेने और शव को काली पार लाकर पंचेश्वर में उसका अंतिम संस्कार करने का निश्चय किया.
अपने पति का राजसी बाना धारण कर धना पुरुष के वेश में काली पार चल पड़ी. वह सर में पगड़ी पहने हुए हूणदेशी घोड़े पर सवार थी.
मल्ली डोटी पहुंचकर धना ने भीषण हमले से लोगों के बीच हाहाकार मचा दिया. जब तक कालीचन्द को धना के हमले की खबर लगती वह महल तक पहुँच चुकी थी. गुस्से से फुंफकारते कालीचन्द ने धना को ललकारते हुए कहा कि अभी एक कुमय्ये को ठिकाने लगाया ही है अब तुझे भी ठिकाने लगाकर अस्कोट से रूपसी धना को लेकर आऊंगा. कालीचन्द धना के मामा का लड़का था, अतः उसके मुंह से ऐसी बात सुनकर धना और भी ज्यादा प्रचंड गुस्से से भर उठी.
दोनों के बीच भीषण रण हुआ और इसमें धना की पगड़ी उतर गयी और वस्त्रों के भी छिन्न-भिन्न हो जाने से उसका नारी रूप प्रकट हो गया. उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
काली चन्द ने उसे अपनी महारानी बन जाने को कहा. इस पर धना ने यह प्रस्ताव इस शर्त के साथ स्वीकार कर लिया कि पहले वह नार सिंह के शव को पंचेश्वर ले जाकर उसका अंतिम संस्कार करेगी. ताकि राजा नारसिंह की आत्मा कभी भी कालीचन्द और धना को परेशान न करे. कालीचन्द इसके लिए राजी हो गया.
कालीचन्द कई डोटीयालों के साथ चल पड़ा. काली नदी का प्रचंड वेग देखकर किसी ने भी पार जाने का साहस नहीं किया. धना ने कालीचन्द की वीरता का हवाला देकर उसे नदी पार करने के लिए उकसाया, वह राजी हो गया. अब दोनों ने तुम्बियों के सहारे नदी पार करने के लिए उसमें छलांग लगा दी.
धना ने चतुराई दिखाते हुए कालीचन्द की कमर में बांधी गयी तुम्बियों में पहले ही छेद कर दिए थे. अतः कालीचन्द डूबने लगा और उसने धना को मदद की पुकार लगायी. नदी के प्रवाह के बीच ही धना ने कालीचन्द का सर अपनी कटार से काट दिया.
पंचेश्वर पहुंचकर उसने अपने पति का दाह संस्कार किया और स्वयं भी सती हो गयी.
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Talla Askot or Malla Askot or waha ke Raajgharane ke baare me bhi koi post banaye,
Although there are many great stories of the kingdom but a movie can be made on the story of King Mahendra Of Askote.