Featured

1942 में साइकिल रिक्शा की शुरूआत हुई नैनीताल में

लगभग दो वर्ष पूर्व नैनीताल नगर में ई-रिक्शा की जब शुरूआत हुई तो स्थानीय लोगों में जबर्दस्त उत्साह देखने को मिला, वहीं अब माननीय उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में जब नैनीताल की मालरोड से पैडल रिक्शा सदा के लिए विदा लेंगें तो पैडल रिक्शा से जुड़ी खट्टी-मीठी यादें उन लोगों से ताउम्र जुड़ी रहेंगी, जो इसके साक्षी रहे हैं.
(Cycle Rickshaw in Nainital)

सन् 1846 में अंग्रेजों द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सामान ढोने हेतु कुली व्यवस्था व माल रोड पर तल्लीताल से मल्लीताल के बीच आवागमन हेतु डांडी व घुड़सवारी की शुरूआत की गयी. 1858 में माल रोड के लिए हाथ रिक्शा की शुरूआत हुई. बताते हैं कि तब इन्हें रामरथ या ’विलियिम एण्ड बरेली टाइप’ भी कहा जाता था. तब मालरोड पर छोटे अथवा बड़े किसी भी वाहन का प्रवेश वर्जित था. सैलानी, जिनमें सभी अंग्रेज ही हुआ करते, इन हाथ रिक्शों की सवारी पर शान्त व सुरम्य नैनीताल के नजारों का आनन्द लिया करते थे और सवारियों के वजन के अनुरूप एक या दो हिन्दुस्तानी आगे बने हत्थों के सहारे इनको खींचा करते. दो पहियों वाले इन हाथ रिक्शों के पिछले हिस्से में दो सवारियों की आराम से बैठने की सीट हुआ करती तथा बरसात व धूप से बचाव के लिए तिरपाल की सुविधा हुआ करती थी.

नैनीताल शहर चर्चा में आने के लगभग एक शताब्दी के बाद सन् 1942 में साइकिल रिक्शा या पैडल रिक्शा की शुरूआत हुई. जिसे तल्लीताल व मल्लीताल के बीच समतल सड़क पर चलाया गया. स्वतंत्रता के उपरान्त अंग्रेज धीरे-धीरे नैनीताल से रूखसत करते गये और हाथ रिक्शों की जगह साइकिल रिक्शे ही स्थानीय तथा पर्यटकों में पसन्द किये जाने लगे. हाथ रिक्शा अब सामान ढोने तथा तल्लीताल व मल्लीताल के बीच सब्जी आदि ढोने में प्रयोग किये जाने लगे. यदा-कदा इनका उपयोग माइक लगाकर किसी कार्यक्रम की उद्घोषणा,चुनावी प्रचार-प्रसार तथा शोभायात्राओं के लिए अस्सी के दशक तक बदस्तूर जारी रहा. लेकिन आज हाथ रिक्शा नैनीताल के लिए अतीत की बात हो चुकी है.

धीरे-धीरे पैडल या साइकिल रिक्शा ने ऐसी पैंठ बनायी कि वह नैनीताल वासियों की धड़कन बन गया. स्कूली बच्चे हों या सरकारी मुलाजिम, शहर के आमनागरिक अथवा बाहरी सैलानी मालरोड में आवागमन का यह एक अभिन्न जरिया बन गया. मल्लीताल से तल्लीताल की लगभग 2 किमी की दूरी का किराया इतना वाजिब की हर आम और खास के जेब के अनुकूल. संभवतः नैनीताल ही एक ऐसा शहर है, जिसमें बाकायदा रिक्शे के लिए टिकट सिस्टम है और किराया निर्धारित है. सवारी एक बैठे अथवा दो किराया पूरे रिक्शे का लिया जाता है. सन् सत्तर के दशक में तल्लीताल से मल्लीताल के बीच एक तरफ का रिक्शा किराया मात्र 60 पैसे हुआ करता था, यदि रिक्शे में एक सवारी हो तो अन्य सवारी आधा यानि 30 पैसे भुगतान कर रिक्शा शेयर कर लिया करता. ये बात दीगर है कि कभी कभी लोभवश रिक्शा पूलर दो के बजाय तीन सवारी बैठाकर एक सवारी का किराया अलग से वसूल ले, लेकिन कानूनन यह मान्य नहीं है. महंगाई के साथ रिक्शा दरें एक रूपया, दो रूपये, पांच रूपये, दस रूपये और वर्तमान में 20 रूपये प्रति रिक्शा है. अगर दूसरे शहरों की रिक्शा दरों से इसकी तुलना करें तो यह किराया नगण्य सा लगता है.
(Cycle Rickshaw in Nainital)

एक समय था, जब मालरोड पर चैबीसों घण्टे साइकिल रिक्शा दौड़ाने पर छूट थी, लेकिन दो-तीन दशक पूर्व पर्यटकों की आवक को देखते हुए, सांयकाल मालरोड पर पर्यटकों को भ्रमण में असुविधा न हो और किसी दुर्घटना की आशंका न रहे, सांयकाल 6 से 8 अथवा 9 बजे तक मालरोड में रिक्शों की आवाजाही पर पूर्णतः रोक लगायी गयी. इन दो तीन घण्टों की रोक से ही स्थानीय नागरिकों व सैलानियों को जो असुविधा महसूस हुई, उसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है, कि साइकिल रिक्शा की नैनीताल के लिए कितनी अहमियत है.

नैनीताल में साइकिल रिक्शा संचालन की अनुमति नगरपालिका द्वारा प्रदान की जाती है. जिसमें दो तरह के रिक्शे संचालित होते हैं. पहले कोआपरेटिव द्वारा संचालित तथा दूसरे निजी रिक्शा स्वामियों द्वारा. शहर के कई लोगों द्वारा रिक्शे का परमिट लेकर रिक्शा पूलरों को दिये गये हैं, जिनमें एक तरफ का किराया रिक्शा पूलर के हिस्से आता है, जब कि दूसरी तरह का रिक्शा मालिक के हिस्से में. लगभग यहीं व्यवस्था कोआपरेटिव द्वारा संचालित रिक्शों की भी है. वर्तमान में 60 पैडल रिक्शों सहित 11 ई-रिक्शा नैनीताल की माल रोड में अपनी सेवाऐं दे रहे हैं.

जुलाई 2021 में जब मालरोड पर ई-रिक्शा की शुरूआत हुई तो लोगों में इसके प्रति भारी उत्साह देखा गया. उत्साह इसलिए भी इसकी सवारी साइकिल रिक्शा से ज्यादा आरामदेह होगी, स्पीड अच्छी होने से समय की बचत होगी तथा रिक्शों के लिए लम्बी लाइन से थोड़ी राहत मिलेगी. लेकिन अब जब माननीय उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने दो सप्ताह के भीतर पैडल रिक्शों को बाहर करने व ई-रिक्शों की संख्या 11 से बढ़कर 50 करने का फैसला लिया है, तो पैडल रिक्शा नैनीताल के इतिहास में अतीत की बात हो जायेंगे.

पैडल रिक्शा जिस तरह शहरवासियों की जिन्दगी का एक अभिन्न हिस्सा बन चुके थे, स्वाभाविक है कि उससे जुड़े कई किस्से-कहानियां, मीठी यादें प्रत्येक व्यक्ति के जेहन में रहेंगी और साइकिल रिक्शों का इस तरह अचानक विदा होना किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को ’नराई’ तो लगायेगा ही. आज की पीढ़ी के लोग तब उसी तर्ज पर आने वाली पीढ़ी को नैनीताल के साइकिल रिक्शों की दास्तां बयां करेंगे, जैसे हम हाथ रिक्शों की कर रहे हैं.
(Cycle Rickshaw in Nainital)

अलविदा पैडल रिक्शा बाय-बाय!

– भुवन चन्द्र पन्त

भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.

इसे भी पढ़ें: लोकगायिका वीना तिवारी को ‘यंग उत्तराखंड लीजेंडरी सिंगर अवार्ड’ से नवाजा गया

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago