उत्तराखंड में गायी जाने वाली होली मूलतः ब्रजभाषा से प्रभावित है. गढ़वाल और कुमाऊं दोनों ही हिस्सों में अनुवादित होली ही अधिकांशतः गायी जाती हैं हालांकि कुमाऊं क्षेत्र में मौलिक होली भी गायी जाती है. आज पढ़िये कुमाऊं में सामान्य रुप से गायी जाने वाली पांच होलियां- सम्पादक
1. होली खेलें गिरजा नंदन
सिद्धि को दाता विघ्नविनासन
होली खेलें गिरजा नंदन
गौरी को नंदन मूसा को वाहन
ला हो भवानी अछ्यत चन्दन
होली खेलें गिरजा नंदन
ला हो भवानी अछ्यत चन्दन
होली खेलें गिरजा नंदन
गज मोतिन से चौक पुराऊं
ताल बजावे अंचन कंचन
होली खेलें गिरजा नंदन
डमरू बजावें भोले शंभू
नाच रहे हैं विघ्न विनाशक.
होली खेलें गिरजा नंदन
2. जल कैसे भरूं
जल कैसे भरूं जमुना गहरी
ठाड़ी भरूं राजा राम जी देखें.
बैठी भरूं भीजै चुनरी.
जल कैसे भरूं जमुना गहरी
धीरे चलूं घर सासु बुरी है
धमकि चलूं छलकै गागर.
जल कैसे भरूं जमुना गहरी
गोदी में बालक सिर पर गागर
परवत से उतरी गोरी
जल कैसे भरूं जमुना गहरी
3. छनकारो हो छनकारो
छनकारो हो छनकारो
गोरी प्यारो लगो तेरो छनकारो
छनकारो हो छनकारो
तुम हो ब्रज की सुन्दर गोरी
मैं मथुरा को मतवारो
छनकारो हो छनकारो
चुनरी चादर सभी रंगे हैं
फागुन ऐसो रसवारो
छनकारो हो छनकारो
सब सखियाँ मिल खेल रही हैं
दिलबर की दिल न्यारी
छनकारो हो छनकारो
अब के फागुन अरज करति हूँ
दिल को कर दे मतवारो
छनकारो हो छनकारो
ब्रज मंडल में धूम मची है
खेलत सखियाँ सांवरो
छनकारो हो छनकारो
लपकि झपकि वो बांह मरोरे
फिर पिचकारी दे मारो
छनकारो हो छनकारो
घूँघट खोलि गुलाल मलत है
वनज करै यो वन जारो
छनकारो हो छनकारो
नीलाम्बर सखि विनति करत है
तन मन धन उन पर वारो
छनकारो हो छनकारो
4. होरी कैसे खेलूं री मैं
बिरज में होरी कैसे खेलूं री मैं साँवरिया के संग
कोरे-कोरे मटक मगाये
ता पर घोला रंग
भर पिचकारी सन्मुख मारी
अँगिया हो गई तंग-
बिरज में होली कैसे खेलू री में साँवरिया के संग
अबीर उड़ता गुलाल उड़ता
उड़ते सातो रंग
भर पिचकारी सन्मुख मारी
अँगिया हो गई तंग-
बिरज में होली कैसे खेलू री में साँवरिया के संग
लहँगा तेरा घूम-घुमैला अँगिया तेरी तंग
खसम तुम्हा रे बडे़ निखट्टू
चलो हमारे संग-
बिरज में होली कैसे खेलू री में साँवरिया के संग
(मशहूर जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ के होलीगीत-संकलन ‘रंग डालि दियो अलबेलिन में’ से साभार)
5. जब रसिया अंगना पर बैठो, भूंक उठी दुश्मन कुतिया
शहर सुनो जा गो रसिया
शहर सुनो जा गो रसिया
जब रसिया अंगना पर बैठो,
भूंक उठी दुश्मन कुतिया
जब रसिया देहली पर बैठो,
खांस पड़ी बैरन बुढ़िया
जब रसिया कुर्सी पर बैठो,
देखि पड़ी है तब बिटिया
जब रसिया पलंगा पर बैठो,
दनक पड़ी दुश्मन खटिया
जब रसिया छतिया पर बैठो,
बहुत भई हूँ मैं सुखिया
जब रसिया पलंगा उठि बैठो,
बैठ गयी मैं तब सठिया
शहर सुनो जा गो रसिया
शहर सुनो जा गो रसिया.
सभी तस्वीरें नैनीताल की सबसे पुरानी नाट्य संस्था युगमंच के 23वे होली महोत्सव की हैं. सभी तस्वीरें पिथौरागढ़ के रहने वाले अखिलेश बोहरा ने ली हैं.
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1 Comments
Manoj Pandey
अच्छा लेख। ये गीत सैकड़ौं बार गा-सुन लिए पर हर बार नये लगते हैं ।