केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा की अध्यक्षता में माब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिये वरिष्ठ अधिकारियों का एक पैनल गठित किया गया था. पैनल ने माब लिंचिंग विषय पर विचार- विमर्श करने के बाद अपनी रिपोर्ट मंत्रियों के समूह की अध्यक्षता कर रहे राजनाथ सिंह को सौंप दी है. पैनल ने लिंचिंग की विभिन्न घटनाओं का अध्ययन कर सोशियल मीडिया प्लेटफार्म को कठघरे में खड़ा कर यह निष्कर्ष निकाला कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को ‘समयबद्ध तरीके’ से कार्य करने की आवश्यकता है.
फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के संज्ञान में लाए जाने के बाद दुर्भावनापूर्ण पोस्ट और वीडियो को प्रतिबंधित नहीं करने पर उन्हें उत्तरदायी बनाया जाएगा और सरकार के आदेशों का पालन न करने पर देश में कार्यरत संबंधित मीडिया प्लेटफॉर्म के प्रमुख पर प्राथमिकी दर्ज कर मुकदमा चलाया जाएगा. समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपने से पूर्व् हितधारकों से इस संबंध में चर्चा भी की थी. कानून के मुताबिक़ सरकार को आपत्तिजनक सामाग्री हटाने, साईट को ब्लाक करने आदि के अधिकार हैं.
पैनल द्वारा इंटरनेट की निगरानी हेतु एक पोर्टल बनाने की बात भी कही गयी है. जहाँ लोगों द्वारा आपत्तिजनक सामग्री और विडियो के संदर्भ में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकेगी जिसे राष्ट्रीय अपराध ब्यूरों द्वारा संबंधित राज्य को उचित कार्रवाई के लिये भेजा जा सकेगा.
इससे पहले गोरक्षा या बच्चा चोरी के नाम पर लगातार हो रही हिंसक घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए निरोधक, उपचारात्मक और दंडात्मक दिशा-निर्देश जारी किये थे और कहा था कि राज्य सरकार हर ज़िले में एसपी स्तर के अधिकारी को नोडल अफसर नियुक्त करे जो स्पेशल टास्क फोर्स बनाए.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक ज़िले में पुलिस अधीक्षक के स्तर पर एक अधिकारी नियुक्त करने, खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिये एक विशेष कार्य बल गठित करने और बच्चों की चोरी या मवेशियों की तस्करी के संदेह में लोगों पर भीड़ द्वारा किये जाने वाले हमलों को रोकने के लिये सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के लिये कहा गया है.
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