4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – बीसवीं किस्त
पिछली क़िस्त का लिंक: इस दुनिया में असंख्य लोग भूखे जी रहे हैं
इस वक्त रात के सन्नाटे में मैं अकेली जगी हूं मेरी जान. नींद नहीं आ रही थी सो मैं पढ़ने बैठ गई. मैक्सिम गोर्की की आत्मकथा का पहला भाग पढ़ रही थी. मुझे साहित्य में आत्मकथाएं, पत्र, डायरी और यात्रावृत्तांत पढ़ना सबसे ज्यादा पसंद है.
खैर, पता है पिछले छः दिनों से मैं ‘खुशबुओं के बेर’ खा रही हूं. मतलब ये मेरी नट्टू, कि तुम्हारी मां बेर की खूशबू सूंघ-सूंघ के अपनी जीभ को बेर का स्वाद दे रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि पहले ही दिन जब हम लोग बेर लेकर आए तो मैंने सारे खूब बेर खाए. खट्टे-मीठे बेर खा-खाकर मेरे दांत इतने खट्टे हो गए, कि मैं मुश्किल से ही ब्रश कर पा रही थी. इसी के चलते मैंने बचे हुए बेर उठाकर रख दिए, फेंके नहीं, ताकि मैं खुशबू में ही सही उनका स्वाद तो ले सकूं. बस ऐसी ही है तुम्हारी मां बेवकूफ सी हरकतें करने वाली.
कई दिनों से तुम्हें लिखने का मन था. मन ही मन लिखती भी जाती हूं. कल मैं तुमसे पक्का बात करूंगी मेरी बच्ची, मेरा वादा है. कल मैं तुम्हें अपनी जिंदगी की सबसे ज्यादा अविश्वस्नीय चीज के बारे में बताऊंगी. इतना हैरान मुझे किसी बात ने नहीं किया अभी तक. अभी मेरा सिर्फ पढ़ने का मन है, सो अभी तुम मेरे पेट के भीतर खेलो-कूदो, झटके लो, सोओ या जो भी करने में तुम मगन हो करती रहो. शुभरात्रि मेरी बच्ची. ( 26.02.2009)
हां! तो अपने वादे के मुताबिक मैं तुमसे वो अदभुत और अविश्वसनीय अनुभव बांटने जा रही हूं मेरी जान! आज से एक सप्ताह पहले यानी 20 फरवरी 2009 को तुम्हारे पिता और मैं अल्ट्रासांउड कराने गए थे. उससे एक दिन पहले ही मैंने पढ़ा तो था कि दो महीने के (गर्भस्थ) बच्चे के मुख्य शारीरिक अंग सिर, धड़, हाथ-पैर, विकसित हो चुके होते हैं. पर मैं उसकी कल्पना नहीं कर पा रही थी. लेकिन जैसे ही अल्ट्रासाउंड करने वाले डॉक्टर ने कम्पयूटर के स्क्रीन पर देखने को कहा – बाप रे! मैंने तुम्हें देखा उस स्क्रीन पर मेरी बच्ची! अविश्वसनीय! घोर अविश्वसनीय! मैंने तुम्हारा सिर, धड़, हाथ-पैर, और दिल धड़कते हुए देखा…हे भगवान!
ऐसा कैसे संभव है कि तुम मेरे भीतर इस रूप में हो और मुझे जरा भी अहसास नहीं. मुझे खबर ही नहीं. मेरी नजर तो तुम्हारे चेहरे से हट ही नहीं रही थी. तुम उस पानी जैसे तरल के घेरे में थी. तुम तैर रही थी उसमें. तुम झटके ले रही थी. मैं बिस्तर पर लेटी हुई तुम्हें देख रही थी और तुम्हारे पिता खड़े होकर. उन्होंने तुम्हें मुझसे ज्यादा देर तक स्क्रीन पर देखा. इसकी मुझे थोड़ी जलन थी उनसे. मैंने एक बार फिर से अपना पेट देखा. जिसे देखकर कोई और तो क्या मैं खुद भी नहीं कह सकती थी कि तुम. एक जिंदा हाथ-पैर चलाता हुआ बच्चा मेरे भीतर है. ओह भगवान! ये कैसे संभव है कि एक इंसान के भीतर एक दूसरा जिंदा इंसान हो? मेरे आश्चर्य का और अविश्वास का कोई ठिकाना नहीं था.
कोई अहसास नहीं. बाहर कोई लक्षण नहीं. कोई खबर नहीं और तुम मेरे भीतर न सिर्फ आ गई बल्कि पलने लगी. बिल्कुल खामोशी से. किसी और को तो क्या होती, तुम्हारी मां को भी तुमने कानो-कान खबर नहीं होने दी. उस मशीन की मदद से मेरा तुम्हें अपने पेट के भीतर झटके लेते देखना, मेरी जिंदगी का सबसे ज्यादा अविश्वस्नीय और ख़ुशी से भरा अनुभव था मेरी बच्ची. खुशी से भी ज्यादा अविश्वास और आश्चर्य था. ऐसा कैसे हो सकता है कि एक जिंदा बच्चा चुपचाप में शरीर के भीतर दाखिल हो गया? ऐसा कैसे संभव है कि तुम्हें मेरे बंद शरीर के भीतर घुटन नहीं हो रही थी? ऐसा कैसे संभव है कि तुम मेरे शरीर के भीतर लगातार हिल रही थीं, हरकतें कर रही थीं और मुझे कोई खबर ही नहीं थीं? प्रकृति की लीला सच में अनंत है मेरी बच्ची! इस दुनिया में सबसे सुंदर, सबसे आनंदमयी, सबसे ज्यादा सुकून देने वाला कुछ है तो वो प्रकृति है मेरी बच्ची. तुम उसी की देन हो और उसी की दुनिया में आ रही हो. तुम्हारा स्वागत है मेरी बच्ची! दोनों बाहें फैलाकर तुम्हारा स्वागत है.
तुम्हारे मेरे भीतर होने के आश्चर्य से मैं निकल नहीं पा रही हूं मेरी जान! अगले कई दिनों तक मैं सोचती रही, कि इस वक्त मेरे शरीर में दो सिर हैं, दो धड़ हैं, चार हाथ हैं, चार पैर हैं, दो दिल हैं और दोनों दिल धड़क रहे हैं अपनी-अपनी रफ्तार से.क्या ये अदभुत, अकल्पनीय नहीं है, कि एक ही शरीर में दो दिल लगातर अपनी-अपनी रफ्तार से धड़क रहे हैं? एक दिल 75-80 बीट प्रति मिनट की रफ्तार से धड़क रहा है और दूसरा 150-160 बीट प्रति मिनट की रफ्तार से दौड़ रहा है. इन दोनों का एक-दूसरे की रफ्तार में कोई दखल नहीं. लेकिन है मेरी जान. दो दिल एक साथ धड़क रहे हैं मेरे भीतर. हे ईश्वर! क्या है ये? कैसा है? कैसे विश्वास करूं?
मैं चाहे कितना भी अविश्वास में रहूं, लेकिन ऐसा तो है ही. दो एक शरीर में कुछ ही दूरी पर अपनी-अपनी रफ्तार से धड़क रहे हैं, बिना एक-दूसरे के लिए बाधा बने. कुदरत का चमत्कार है. तुम्हें अपने भीतर देखने के बाद से मेरा नजरिया काफी बदल गया है. हां! मुझे तुमसे प्यार हो गया है, तुम्हारी परवाह हो गई है मेरी बच्ची! याद है मैंने तुमसे कहा था, कि तुम ही कोई उपाय करो जिससे मेरे भीतर तुम्हारे लिए प्यार उमड़ आए और देखो तुमने कर दिया. अभी मैं पहले से काफी ठीक हूं दिमागी तौर पर. शरीर तो अभी परेशानी में ही है उल्टियां कभी 3-4, कभी 4-5 रोज होती ही रहती हैं, गैस बनने में अभी भी कोई कमी नहीं है. शरीर में हो रहे दर्द और तकलीफ की कभी आदत नहीं पड़ती मेरी बच्ची. इसलिए हरेक उल्टी पर मेरा दिमाग खराब होता है, पेट दुखता है, जी खराब होता है और मैं थोड़ी डिप्रेस भी हो जाती हूं.
तुम्हें पता है लोगों ने कैसी-कैसी मान्यताएं गढ़ रखी हैं लड़का-लड़की के पैदा होने के बारे में. कोई कहता है जब ज्यादा तबियत खराब होती है, उल्टियां ज्यादा आती हैं तो लड़का ही होता है. जबकि मेरे घर में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें एक उल्टी तक नहीं आई और उन्हें लड़का हुआ. कुछ का कहना है कि पेट के नीचे जो लाइन पड़ती है, यदि वह तिरछी हो तो लड़की होती है. कुछ का मानना है कि पेट यदि सामने को बढ़ता है तो लड़का होता है और यदि नीचे की तरफ को पेट बढ़े तो लड़की होती है. कुछ का कहना है कि यदि मीठा खाने का मन करे तो लड़का होता है और यदि नमकीन व चटपटा खाने का मन करे तो लड़की होती है. और भी पता नहीं ऐसी कितनी मान्यताएं हैं. मैं अक्सर ही ऐसी मजेदार मान्यताओं के मजे लेती रहती हूं. ओह! लगता है मुझ उल्टी आने वाली है. जाती हूं.
उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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