4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 57 (Column by Gayatree Arya 57)
पिछली किस्त का लिंक: ज्यादातर लड़के लड़कियों से ‘झूठा प्रेम’ जताकर सिर्फ सेक्स करने की इच्छा रखते हैं
तुम कभी-कभी जिस तरह से मुझे देखते हो न रंग! वो प्यार, वो पैशन, वो एकाग्रता, वो ठहराव, वो विश्वास, वो गहराई, उफ्फऽऽ! जैसे कोई परम भक्त अपने अराध्य देव को देखता हो, ऐसी गहराई. जैसे शेर या कोई भी जानवर अपने शिकार को देखता है, ऐसी एकाग्रता. जैसे गहरे प्यार में डूबा युगल एक-दूसरे को देखता है. तुम्हारी मुझे देखती नजर, चीरती हुई सी भीतर बहुत गहरे उतर जाती है, तुम्हारा ऐसे देखना मुझे कितना-कितना स्पेशल महसूस करवाता है मेरे बच्चे!
ऐसी ही और कई चीजें हैं जिनके चलते तुम मुझे ‘खास’…‘बेहद खास’ बना देते हो. जैसे मेरी गोद में आकर तुम कुछ ज्यादा ही, कुछ अलग ही खुश होते हो. कुलांचे भरते हो रह-रह के, हिरनौटे से लगते हो तुम उस वक्त. यदि मैं तुम्हारी किसी बात से परेशान हूं और गुस्से में तुम्हें गोद भी नहीं ले रही होती, तो भी तुम मेरे पास ही आने के लिए रोते हो. बचपन में बच्चा मां से जितना प्यार करता है, खासतौर से जिस तरह से करता है, वैसे फिर कभी भी नहीं करता, कभी भी नहीं. उसका कारण है, अभी तुम्हारी जिंदगी में मां से अलग और कोई चाहत, कोई इच्छा, कोई जिम्मेदारी, कोई कमिटमेंट नहीं है.
प्यार तो बच्चे बड़े होकर भी मां से बहुत ज्यादा करते हैं, लेकिन तब उन्हें आजादी भी चाहिए होती है. तब कुछ ऐसी इच्छाएं भी पैदा हो जाती हैं जो तुम मुझे नहीं बताना चाहोगे, क्योंकि शायद वे मुझे पसंद न हो. तब तुम अपनी सोच और पसंद के मुताबिक ऐसे कुछ काम भी करना चाहोगे जिनके लिए मैं तुम्हें रोकूं. तब तुम्हें पढ़ाई, मस्ती, खेलकूद, दोस्ती, प्यार, नौकरी, घूमने, और अपने पैशन को भी तो वक्त देना होगा न, जाहिर है तब तुम्हारे पास मेरे लिए बहुत कम समय होगा. तुम नौकरी करोगे, प्रेम करोगे, तुम्हारी शादी हो जाएगी और धीरे-धीरे मेरे ऊपर तुम्हारी निर्भरता और भी कम, लगभग खत्म हो जाएगी.
मैं अभी से समझ सकती हूं मेरे बच्चे, कि बेटे की जीवनसाथी आने पर मांएं खुद को बिल्कुल अलग-थलग, तन्हा और गैरजरूरी सा क्यों महसूस करने लगती है. क्योंकि कल तक लड़का जिस मां के चारों तरफ चक्कर लगाता था, आज वो उसे छोड़कर अपनी जीवनसाथी को केन्द्र में ले आया है. जो कि गलत नहीं है, क्योंकि एक लड़की अपने मां-बाप, भाई-बहन, घर, दोस्त, पूरा परिवेश छोड़कर आपके पास आती है. वो केन्द्र में रहना डिजर्व भी करती है. दरअसल वो समय बेटों के लिए दोधारी तलवार जैसा होता है क्योंकि उसे मां और पत्नी दोनों के बीच संतुलन बना के चलना होता है और ज्यादातर बेटे इस काम को ठीक से नहीं निभाते. न ही बेटों को इस बारे में कभी कुछ सिखाया जाता है, न ही उनसे इस बारे में कभी तसल्ली से बात की जाती है. जिस संतुलन को बेटे को सिखाया जाना चाहिए, उसकी उम्मीद सिर्फ बहू से की जाती है.
संतुलन बिठाने की सारी समझाइश सिर्फ बहू की होती है कि उसे ही समझदारी से काम लेना है. वैसे तो सभी लोगों की समझदारी ही मिलकर किसी भी रिश्ते को ठीक से चला सकती है. लेकिन इस सिचुएशन में लड़के की जिम्मेदारी घर में आने वाली लड़की से कहीं ज्यादा बड़ी होती है, क्योंकि नए और पुराने रिश्ते की बीच की वही एक इकलौती कड़ी है, जो चीजों को सही दिशा में ले जा सकता है. लेकिन अफसोस की ऐसी कोई बात किसी लड़के को कभी नहीं समझाई जाती, कि उसे रिश्तों को बेलेंस करने में ज्यादा ऊर्जा और ध्यान लागाना है. लगभग सारे लड़के इस चीज को नहीं समझते और बेलेंस करने की हर संभव कोशिश नहीं करते, इसी का परिणाम होता है सास-बहू के बीच तनातनी. तुम्हें नए और पुराने रिश्ते के बीच सबसे अच्छा संतुलन बैठाने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए मेरे बेटे. अपनी तरफ से मैं इसमें तुम्हारी हरसंभव मदद करूंगी, ये तुम्हारी मां का तुमसे वादा है.
पता है मैं भी शुरू-शुरू में तुम्हारे पिता से अक्सर पूछती थी ‘‘तुम्हारी जिंदगी में सबसे पहले कौन. सबसे ऊपर कौन?’’ और अपने आप को उनकी मां के बाद दूसरे नम्बर पर पाकर मैं भीतर से बेचैन और नाखुश सी होती थी. लेकिन धीरे-धीरे मैं इस चीज को समझ गई, कि यह सबसे ऊपर या सबसे पहले वाला मामला नहीं है. असल में ये वैसा ही सवाल है कि जीने के लिए धड़कन ज्यादा जरूरी है या सांस? सबसे बड़ा सच यही है मेरे बच्चे, कि जीवन में हर चीज की अपनी अहमियत है, कोई किसी की जगह नहीं ले सकता, किसी की भरपाई नहीं कर सकता.
ओह, मैं तुमसे कैसी बड़ी-बड़ी बातें करने लगी, बोरिंग बातें. अपनी रौ में बह गई मैं. मेरी जान मैं तुम्हें सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूं कि इस वक्त तुम्हारा खेलकूद, दोस्ती, प्यार, अच्छी-बुरी चाहत, आजादी, सपना सब मैं ही हूं, तुम्हारी मां. तुम कितने खुश और संतुष्ट होते हो और चहक जाते हो सिर्फ इस बात से, कि ‘मां’ ने तुम्हें गोद में उठा लिया, कि मां तुम्हारे पास है, कि मां तुम्हारे साथ शैतानी कर रही है, खेल रही है. इतनी तृप्ति तो किसी को कोई मुराद पूरी होने पर भी शायद नहीं होती होगी, जितनी तुम्हें खुद को मेरी गोद में पाकर, मुझे छूकर, मेरा दूध पीकर मिलती है.
अक्सर मजाक में मैं लोगों से कहती हूं तुम्हारे लिए, ‘‘कि इस वक्त ये जीरो इन्वेस्टमेंट में फुल रिटर्न है, बाद में फुल इनवेस्टमेंट होगा और रिटर्न की कोई गारंटी नहीं.”
तुम्हारी खिलखिलाहट, तुम्हारी बिना आवाज की हंसी, तुम्हारा पाऽऽ पाऽऽ पाऽऽ, बाऽऽ बाऽऽ बाऽऽ बोलना या ‘तुर्रऽऽ तुर्रऽऽ तुर्रऽऽ‘ करना, जादू है इस सबमें. तुम्हारी हंसी की आवाज मुझे ऐसे खुश और आनंदित करती है जैसे मैं ‘फूलों की घाटी’ में पहुंच गई होऊं. मेरे रंगरूट तुम पूरा दिन बस ‘पापा’ और ‘बाबा’ शब्द ही बोलते रहते हो. जब मैं ‘मां’ शब्द बोलती हूं तुम्हारे सामने, तो तुम कान ही नहीं धरते. गुस्सा हूं मैं तुमसे, जाओ तुम! तुम्हें क्या पता कि तुमसे मां शब्द सुनने को कितना तरस रही हूं मैं.
तुम लिखने नहीं दे रहे थे अभी मुझे. मेरी डायरी को ललचाई नजरों से देख रहे थे और इस पर झपट भी पड़े थे. पैन को तो तुम हमेशा ही ललचाई नजरों से दखते हो, क्योंकि इसे तुम्हें अपने जबड़ों से काटना जो पसंद है.
1पी.एम. 24/ 05/ 10
उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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