4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 40 (Column by Gayatree arya 40)
पिछली किस्त का लिंक: युद्ध की तैयारी में अपना जीवन खपा देने वाले तमाम सैनिक भी अंततः युद्ध नहीं चाहते
25 दिसम्बर 2009 को तुम पहली बार आवाज करते हुए बहुत देर तक हंसे रंग. उफ्फ्फ! तुम्हारी हंसी में एक नशा था मेरे बच्चे, जिसने पूरी तरह से मुझे अपने में डुबा लिया था. लगा जैसे अनंत काल तक हंसाती ही जाऊं और अपलक देखती रहूं तुम्हें. 26 दिसम्बर को तुमने रात में बहुत देर तक जीभ बाहर निकाली पहली बार. तुम नई-नई चीजें सीख रहे हो. इधर पिछले दो-तीन दिन से तुम करवट भी लेने लगे हो. कितने प्यारे लगते हो तुम करवट लिए हुए. अरे तुमने दोनों होठों को जोड़कर ‘तुर्र-तुर्र‘ करना भी सीख लिया है.
आज पहली बार तुमने ‘इयर बड़’ का पैकेट पकड़ा पहले बाएं हाथ से, फिर दोनों हाथों से. फिर अचानक से वो तुम्हारी नाक पर गिर गया, तुम हैरान-परेशान. तुम्हें समझ ही नहीं आया कि क्या करो, बस परेशान हो गए. बहुत प्यार आया मुझे. उफ्फ! मेरा बच्चा अभी कितना मासूम है अभी, कि उसे ये भी नहीं पता कि हाथ से पकड़कर वो उस चीज को अपने मुंह से हटा भी सकता है. मैंने जल्दी से उसे तुम्हारे मुह से हटाया.
तुम अभी मेरी बगल में सो रहे हो. अपने दोनों हाथ एक सीधी रेखा की तरह फैलाकर, जैसे कि तुम्हें सोते हुए ‘T’ बनाने को कहा गया हो. मैं सोचती हूं, ‘मेरा बच्चा अपने डैने फैलाकर, पूरे खोलकर सोता है’. अब तुम्हारी अनुपस्थिति में भी मुझे तुम्हारे ऊपर प्यार आने लगा है. मैं बता नहीं सकती तुम मुझे कितने प्यारे लगने लगे हो मेरे बच्चे. बेशुमार प्यार हो गया है मुझे तुमसे. तुम आवाज करके, तो कभी बिना आवाज किये हंसते रहते हो. बिना आवाज किये इतनी देर तक सिर्फ बच्चे ही हंस सकते हैं. तुम्हारी आवाज वाली हंसी तो मुझे पागल ही कर देती है मुझे.
9 पी.एम / 28.12.09
इसी चार जनवरी को तुम चार महीने के हो गए मेरे बच्चे. इस वक्त तुम जे.एन.यू. के साबरमती हॉस्टल में मेरे साथ हो. मुझे सिंगल रूम मिल गया है. अभी यहां कड़ाके की ठंड पड़ रही है. तुम्हारी नानी दिन-रात तुम्हें ठंड से बचाने के इंतजाम में अपना दिन बिताती हैं. तुम इस वक्त नीले रंग के ऊनी कंबल में पूरी तरफ लिपटे हुए मछली या कहूं जलपरी लग रहे हो. कितने प्यारे उफ्फ्फ! ओह लाइट चली गई यार!
12.55 ए.एम / 13.01.10
तुम अभी नन्ही सी जान हो, पर मेरे वक्त में तुमने ऐसे सेंध लगा रखी है, कि वक्त कहां उड़ जाता है पता ही नहीं चलता रंग. आज से चार दिन पहले यानी 10 जनवरी को पहली बार मैंने तुम्हारी जीभ को नमक का स्वाद चखाया था. मैंने दाल का पानी चटाया था तुम्हें और तुम बिना मुंह बनाए चुस-चुस करके चाटते ही गए. मुझे खुशी हुई कि नमक का स्वाद तुम्हें बुरा नहीं लगा. 11 जनवरी को मैंने तुम्हें पहली बार दही और किन्नू का जूस चटाया, आश्चर्य कि तुम वो भी बिना बेकार मुंह बनाए चाट गए. ऐसे जैसे पता नहीं तुम कितने बड़े खगोड़ हो अभी से. काश! जब तुम्हारा खाने का समय आए, तब भी तुम ऐसे ही खुश होकर खाते जाओ सब कुछ गपागप.
तुम चार महीने के हुए नहीं हो, कि अभी से तारीफें बटोरने लगे हो मेरे बच्चे. हॉस्टल की एक लड़की ने मुझे सुबह-सुबह कहा ‘योअर बेबी इज वेरी जोली, ही आलवेज स्माइल.’ सच में तुम सबसे मिलकर हमेशा मुस्कान ही बिखेरते रहते हो. क्या तुम्हारा नाम ‘मुस्कान‘ रख दूं मेरी जान?
12.50 ए.एम / 14.01.10
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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आपके बच्चे से जुड़े सारे आर्टिकल पढ़ने के बाद अब मुझे भी इससे प्यार होने लगा है । ❤️