4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 37 (Column by Gayatree arya 37)
पिछली किस्त का लिंक: आज पहली बार तुमने मेरी आंखों में आंखें डाल के देखा
इस वक्त रात का पौने एक बजा है और तुम 12 बजे से बिस्तर पर लेटकर खेल रहे हो. बातें कर रहे हो अपनी भाषा में, बहुत जोश से दोनों हाथ-पैर चला रहे हो. तुम्हारे चेहरे की हंसी और मुस्कान ने मेरे हाथों से किताब छीन ली, पढ़ते वक्त मुझे लगा कि इन किताबों में खपकर मैं कुछ मिस कर रही हूं. सो, मैं किताब एक तरफ रखकर तुम्हें देखने लगी, तुमसे बातें करने लग. तुम्हें गाना सुनाने लगी. तुम्हें गाना सुनना बहुत पसंद है अभी से. तुम बहुत मुस्कुराते हो गाना सुनते वक्त. मेरी जान, तुम्हें इस रंग में देखना कितना अदभुत है. तुम अगर खुद को देख सकते अभी, तो तुम्हें भी से खुद से बेइंतहा प्यार हो जाता मेरे बच्चे!
तुम प्रकृति का एक नायाब तोहफा हो, तुम मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत तोहफा हो मेरी जान! तुमने काफी समय पहले से अपनी मुट्ठियाँ चूसनी शुरू कर दी हैं. लेटने के बाद ये काम तुम्हें बहुत पसंद है. या फिर अपने स्वेटर का कोना ही मिल जाए. अभी कुछ देर पहले तुम कंबल का कवर ही चूसने लगे थे. तुम्हारी चुस-चुस की आवाज सुनकर तुम्हारे पिता को लगा कुछ गड़बड़ है, जब देखा, तो पता चला कि तुम कंबल के कवर के काफी हिस्से को गीला कर चुके थे!
तुम्हारी शक्ल मेरे ऊपर गई है रंग. मेरे एक दोस्त ने तो तुम्हारी फोटो देखकर यहां तक कहा कि क्या मैं फोटोस्टेट की मशीन पर बैठ गई थी! कभी-कभी तुम्हारे पिता की झलक भी तुम्हारे चेहरे में दिखती है. तुम सोने वाले हो रंग, अब मैं भी सोती हूं मेरे बच्चे.
1.10 ए.एम. 15.11.09
आज से ठीक 12 दिन बाद तुम तीन महीने के हो जाओगे रंग. तुम जग गए, हो गया लिखना तो अब.
6.30 पी.एम. 21.11.09
आज से ठीक एक साल पहले शायद इसी महीने में मैं मां बनने की प्रक्रिया से जुड़ गई थी. मां बनने से एक लड़की की जिंदगी में कितने और कैसे-कैसे अजीब से बदलाव आ जाते हैं. इन दिनों मेरा पूरे दिन का लक्ष्य होता है, कि तुम कम से कम नैपियां और बिस्तर गीला करो! इसलिए मौका मिलते ही तुम्हें बिस्तर से नीचे लटका देती हूं सुस्सू करने के लिए. यदि तुम्हारा पेट भरा हो, नींद पूरी हो, तो तुम बिस्तर से नीचे सुस्सू कर लेते हो, लेकिन कभी-कभी बहुत रोते भी हो तुम ऐसा करने पर. तुम्हें पता है, फर्श पर बहता हुआ तुम्हारा सुस्सू दिन की उपलब्धि का अहसास देता है मुझे!
तुम कम से कम रोओ, ज्यादा से ज्यादा खुश रहो, खेलो, साफ-सुथरे रहो, कम से कम कपड़े गीले करो अब बस यही मेरे हर दिन का लक्ष्य होता है. हर रोज इसी लक्ष्य की पूर्ति में दिन खत्म हो जाता है. बाकि समय तुमसे बातें करने, तुम्हारे साथ खेलने, तुम्हें दूध पिलाने, मालिश, नहलाने, तुम्हें थपकी देकर, लोरी गाकर सुलाने और तुम्हारी हंसी देखकर खुद खिलखिलाने, तुम्हारी नैपियां धोने और घर के कामों में बीत जाता है. दिन हवा हो चुके हैं मेरे बच्चे. कहां से आते हैं, किधर उड़ जाते हैं मुझे कुछ नहीं पता!
अभी तक की सबसे हसीन बात ये है मेरे बच्चे, कि जब तुम मेरी आंखों में आंखें डालकर हंसते हो, तो उसके आगे बाकि दुनिया खत्म लगती है. तुम इतने प्यारे, इतने सुंदर हो चुके हो रंग, कि क्या ही कहूं. कहीं तुम्हें मेरी नजर न लग जाए. पर सबसे दुखद बात ये है कि तुम्हारी मां अभी भी ठीक से बैठ नहीं पाती मेरे बच्चे. मुझे बैठने में अभी भी दर्द होता है. खड़े होने पर कभी भी मुझे हिप्स में बेहद खिंचाव होने लगता है. मैं दोनों हिप्स पर बराबर वजन डालकर, अभी भी नहीं बैठ पाती हूं. एक हिप से दूसरे हिप पर वजन शिफ्ट करने में मुझे काफी तकलीफ होती है. मैं इस शारीरिक कष्ट से बहुत दुखी हूं मेरी जान, कुछ जादू कर दो न.
मेरा घाव अभी तीन महीने बाद तक भी पूरा सूखा नहीं है. सोचो जरा उसमें से अभी तक हल्के पीले रंग का, चिपचिपा और बदबूदार डिसचार्ज होता है. मेरा हर दिन इसी इंतजार में निकल रहा है बेटू, कि किस दिन वो डिसचार्ज न हो और जख्म मुझे पूरी तरह से सूखा हुआ और ठीक मिले. पता नहीं वो शुभ दिन कब आएगा, जब मेरे सारे दर्द ठीक हो चुके होंगे और जख्म सूख चुके होंगे? जिस भयानक तरीके से मेरी डिलीवरी हुई है, मुझे अब विश्वास नहीं कि मैं बिल्कुल पहले जैसी ठीक हो पाऊंगी कभी. लेकिन मैं तड़प रही हूं रंग, बिल्कुल पहले जैसी ठीक होने के लिए. दर्द और जख्म के तीन महीने, सिर्फ तीन महीने नहीं होते मेरे बेटू. तीन सदियां होती हैं,तुम्हारी मां तीन सदी से दर्द में जी रही है मेरी रूह!
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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