4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 35 (Column by Gayatree arya 35)
पिछली किस्त का लिंक: मैं लड़के की पैदाइश से होने वाली दंभ भरी खुशी को कुचलना चाहती हूं
मेरे लिए तुम लड़का हो या लड़की मुझे बराबर ही प्यारे रहोगे. मां जो हूं मैं तुम्हारी. कितनी तकलीफों से मैं तुम्हें जन्म देने जा रही हूं. गर्भ के नौ महीनों में सिर्फ तुम्हारे मूंवमेंट ही हैं जो खुशी देते हैं तकलीफ नहीं, वर्ना तो कभी उल्टी, कभी गैस, कभी दर्द, कभी खुजली. सच तो यह है कि गर्भावस्था में बीमारी का घर बना रहता है शरीर पूरे नौ महीने! (Column by Gayatree arya 34)
तुम्हें तो पता भी नहीं चला होगा कि जिस पेट के भीतर तुम उछल-कूद मचा रहे हो, उसी पेट की बाहरी चमड़ी पर नौंवे महीने के शुरू में मुझे कितनी घमौरिया हुई थी. खुजली और इरिटेशन का क्या आलम था क्या बताऊं मैं तुम्हें? एक बार तो बर्फ भी रगड़ी थी मैंने अपनी तोंद पर. लेकिन सोचा कहीं तुम्हें अंदर ही ठंड न लग जाए, पर फिर सोचा तुम तक ये ठंड नहीं पहुंचेगी. खांसी, जुकाम, बुखार और अन्य तमाम बीमारियां तो जन्म लेने के बाद के रोग हैं, गर्भ में तो तुम बिल्कुल सुरक्षित हो मेरे ‘रंगैया!’
पता है मैंने ‘रंग‘ नाम से तुम्हारे कितने ही नाम निकाल लिए हैं अभी से. रंगीली, रंगैया, रंगम्मा, रंगकुट्टी, कलर और आज तो मैंने तुम्हें ‘रंगरूट‘ भी कह दिया! एक दिन मैं सोच रही थी कि किसी दिन तुम स्कूल से लौटकर मुझसे शिकायत करोगी कि ‘‘कैसा नाम रखा है रंग? सब मुझे ‘कलर‘ कहकर चिढ़ाते हैं!” हो सकता है बच्चे तुमसे ये भी पूछे ‘‘तू कौनसा रंग है?‘‘ और फिर किसी खास रंग का नाम लेकर तुम्हें बुलाएं. तुम कभी चिढ़ना मत मेरे बच्चे! तुम्हारी किसी बात पर यदि कोई हंसे तो तुम खुद को खुशनसीब समझना, कि तुम अपनी किसी बात पर दूसरों को हंसा पा रहे हो. तुम भी उनके साथ खुलकर हंसना, तुम्हें अच्छा लगेगा. आज के समय में हंसना-हंसाना किसी नेमत से कम नहीं है मेरे बच्चे. इतनी तनाव भरी जिंदगी में हंसी संजीवनी बूटी जैसी है.
अब धीरे-धीरे तुम्हारे मूवमेंट मेरे पेट के निचले हिस्से की तरफ ज्यादा होने लगे हैं. कभी-कभी तुम कुछ ऐसे घूमती हो पेट में, कि बाहर से देखने पर लगता है जैसे भीतर वाशिंग मशीन चल रही हो. और कभी-कभी तो तुम मेरे पेट की शक्ल बिल्कुल डंबल जैसी बना देती हो. इन दिनों जो नाभी बाहर को निकल कर फूली रहती है हमेशा, वो बीच में धंस जाती है और नाभी के दोनों तरफ गोल-मोल गुंबद से उठ जाते हैं. बड़ा मजा आता है मुझे ये पेट का डंबल देखने में. कभी-कभी लगता है जैसे कोई चूहा इधर से उधर सरक गया!
कभी जब तुम अपने दोनों हाथों की मुठ्ठियां जब ऊपर तानती हो मैं हाथ की उंगलियों से तुम्हारी तनी हुई मुठ्ठी को छूती हूं, उसे पकड़ना चाह़ती हूं, लेकिन पकड़ कहां पाती हूं. तुम फिसल जाती हो मेरी पकड़ से. तुम्हारे पैर/हाथ के मूवमेंट तो मैं पेट पर हथेली रखकर बिल्कुल साफ महसूस कर पाती हूं मेरी रंगीली. तुम यदि कोई रोतड़ा बच्चा नहीं हुई, हंसमुखलाल हुई तो मुझे कितना ज्यादा अच्छा लगेगा और सहूलियत भी रहेगी.
काश! इस वक्त तुम आसमान देख पाती. नीले रंग के आसमान पर झक सफेद बादलों के ढेर. उफ्फ! क्या लग रहे हैं न रंग. ऐसा लग रहा है मानो कोई बच्चों की किताब का व्यापारी कैरक्टर, धुनी हुई रूई के ढेर को लिए दौड़कर कहीं जा रहा हो. इतने सफेद और बड़े बादल के ढेर को देखकर मन करता है, कि एक जोर की छलांग लगाकर बादल को खींचकर नीचे ले आऊं और आंगन में उसे रखकर जोर-जोर से उसमें कूद लगाऊं कितना मजा आएगा न. तुम तो खो ही जाओगी उस बड़े ढेर में. सिर्फ तुम्हारी हंसी की आवाज आएगी बादल के ढेर से और तब तुम्हारी हंसी से हिलते बादल के टुकड़े को देखकर मैं तुम्हें धर दबोचूंगी. हाहाहाहा… कितना मजा आएगा न यदि ऐसा हो ही जाए किसी रोज… नहीं रंग?
2पी.एम./26.08.09
कल तुम दिनभर खूब सोये हो हल्की-फुल्की एक-दो हरकतों को छोड़कर तुमने ज्यादा उछल-कूद नहीं मचाई. इसी से मैं दिन भर परेशान रही कि पता नहीं तुम्हें क्या हो गया. दिन और रात भर मुझे चिंता रही. रात में जब भी मेरी आंख खुली मुझे चिंता हुई तुम्हारे हरकत न करने के कारण. फिर सुबह चार बजे जब मैं बाथरूम गई तो लौटकर काफी देर तक मैं पेट में जगह-जगह तुम्हें हल्की-हल्की थपकियां देती रही. तुम थोड़ी-बहुत हरकत करते तो मैं थोड़ी निश्चिंत होती. अभी पिछले एक घंटे से तुम अच्छी तरह से मूव कर रहे हो, अब जा के मेरी जान में जान आई.
आज एक सितम्बर हो गया है तुम्हारे जन्म के लिए दी गई दोनों तारीखें 25 व 30 अगस्त जा चुकी हैं. परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों के फोन पर फोन आ रहे हैं तुम्हारे जन्म की सूचना लेने के लिए सबकी बेसब्री बढ़ती जा रही है. जहां तक मेरा सवाल है मुझे सच में कोई बेसब्री नहीं है क्योंकि जिस दिन प्रकृति चाहेगी तुम इस दुनिया में आ ही जाओगी और वैसे भी पता नहीं क्यों मुझे पहले से ही लग रहा है कि तुम सितम्बर से पहले-दूसरे सप्ताह में आओगी. मेरे सब्र का बांध सितम्बर का पहला-दूसरा सप्ताह बीतने के बाद टूटेगा. तब तक कम से कम मैं तो निश्चित हूं.
कहीं तुम डर तो नहीं रहे हो इस क्रूर और कर्कश दुनिया में आने से? लेकिन तुम्हें डरना नहीं चाहिए मेरे बच्चे! अब तो सिर्फ जीने के लिए हिम्मत, सब्र और विश्वास बटोरने का समय है. तुम्हारे माता-पिता दोनों हाथों में तुम्हें थामे, हमेशा तुम्हारे साथ होंगे. कैसे एक दिन तुम झटके से इस कैद से बाहर निकल आओगे और मेरे हाथों में, मेरी गोद में होओगे. मुझे ये सोच के गुदगुदी सी होती है मन में रोमांच सा भर जाता है.
यूं दुनिया में कोई भी इंसान, अपने शरीर में दर्द नहीं होने देना चाहता, फिर दर्द का इंतजार करना तो अकल्पनीय है. लेकिन मैं प्रसव-पीड़ा का इंतजार कर रही हूं! कब मेरी कमर में दर्द की लहरें उठेंगी? मुझे भी अभी ही पता चला है कि दर्द पेट की बजाए कमर में पहले होगा. पेट में भी होगा, लेकिन कमर में ज्यादा होगा.
तुम्हारे आने का इंतजार करके मेरी मालिश वाली भी 30 अगस्त को आ चुकी. तुम्हें जन्म देने के बाद मेरे शरीर से सारी ताकत बिल्कुल ऐसे निचुड़ जाएगी जैसे गन्ने का रस निकलने के बाद खोई बचती है! वापस ताकत जुटाने के लिए मुझे मालिश भी करानी होगी अपने पूरे शरीर की. सो मैंने एक मालिश वाली का इंतजाम किया है.
तुम्हारे पेट में आने से लेकर तुम्हारे बाहर निकलने तक मेरा वजन 20 किलो बढ़ चुका है. 54 किलो से मैं 74-75 किलो की हो चुकी हूं, तुमने मुझे गोलू-मोलू बना दिया है. तुम्हारे जन्म के साथ सिर्फ 6-7 किलो वजन शरीर से कम होगा. मुझे अपने शरीर पर चढ़ी ये गैर जरूरी चर्बी जरा भी अच्छी नहीं लग रही है मेरी रंगीली. यहां तक की मेरी हाथ-पैर की उंगलियां, कलाई, पिंडली, थाईज, चेहरा, इन सब पर भी मैं साफ तौर पर बढ़ा हुआ मांस देख रही हूं. मुझे बहुत अजीब सा है अपने शरीर के हिस्सों को ऐसे मोटा होते हुए देखना. बल्कि सच कहूं तो जरा भी अच्छा नहीं लग रहा मुझे ये मोटापा, जो कि बिना किसी चाहत के मेरे शरीर पर चढ़ गया है. लेकिन इस चर्बी को गलाने, खत्म करने के लिए मुझे कितनी-कितनी मेहनत करनी पडे़गी. बाप रे!
मेरे पेट और थाईज पर स्ट्रैच मार्क्स भी पड़ गए हैं. मेरी थाईज चलते हुए आपस में टकराने लगी हैं. शुरू-शुरू में जब ऐसा होना शुरू हुआ था तो चलते वक्त मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही बात रहती थी कि ‘उफ्फ मेरी थाईज आपस में टकरा रही हैं,’ सिर्फ और सिर्फ मेरी थाईज की टकराहट मेरे दिमाग में गर्मी पैदा करती रहती थी. मुझे गुस्सा आता रहता था. मां बनने की एक जरूरी और क्रूर शर्त. आपको अपना पहले जैसा शरीर, शेप नहीं वापस नहीं मिलेगा! अपवाद हो सकते हैं, पर ज्यादातर महिलाओं का दुखद सच यही है मेरी लाड़ली!
ज्यादातर औरतों का तो पेट ही हमेशा के लिए बढ़ जाता है, कितना बुरा लगता है. आदमी बिना अपनी शेप खराब किये, बिना अपनी स्मार्टनेस खोए, बिना किसी शारीरिक कष्ट, कमजोरी या शारीरिक परिवर्तन के ही बाप बनने का सुख ले लेते हैं. कितना अच्छा विकल्प है न उनके पास. उनके आकर्षण में कहीं कोई कमी नहीं होती और लड़कियां एक ही बच्चे के बाद ऐसी तोंदू और अनाकर्षक हो जाती हैं. क्या आकर्षक व्यक्तित्व के शरीर का कोई विकल्प है भला? नहीं है मेरी जान, जब तुम बड़ी होओगी तब तुम खुद ही समझोगी कि मैं कोई बकवास नहीं कर रही.
आत्मविश्वासी होने में आकर्षक और अच्छी शेप वाले शरीर का बहुत बड़ा रोल है. परिवार, रिश्तेदारों और समाज के व्यवहार के कारण लड़कियों में पहले से ही बेहद कम आत्मविश्वास होता है और मां बनने के बाद मोटा पेट और फूले हुए शरीर के चलते तो वे एक झोला ही बन के रह जाती हैं. अफसोस कि बच्चा मां को अनंत सुख तो देता है, लेकिन शरीर के अनाकर्षक होने से पैदा हुए हीनताबोध को बच्चा खत्म तो क्या, कम भी नहीं कर पाता है!
मुझे दुख और चिंता है कि प्रकृति ने जो ताकत और शरीर मुझे दिया है मैं उसे वैसा ही बनाए रखने का अपना अधिकार खो रही हूं धीरे-धीरे. दुखद नहीं है क्या ये?
12.15 पी.एम./01.09.09
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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