4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – तेइसवीं किस्त
पिछली क़िस्त का लिंक: कामी और लम्पट पुरुषों की निगाहें अस्तित्व तक को भेद देती हैं
तुम्हें नहीं पता होगा शायद लेकिन तुमने अभी से (जबकि अभी तुम सिर्फ पांच महीने का भ्रूण हो) मेरे पेट में हलचल शुरू कर दी है. लगभग दो सप्ताह पहले मेरे पेट में कुछ अजीब सा होना शुरू हुआ था, कुछ उठापटक सी. तब मैंने नहीं पहचाना था, कि ये तुम हो जो गड़बड़ कर रही हो. उस दिन अल्टासाउंड के वक्त डॉक्टर ने बताया कि अब तुमने पूरा घूमना शुरू कर दिया है मेरे पेट में, मतलब कि 360 डिग्री…! ओह मेरे बच्चे…!
अभी तुम्हारी दुनिया कितनी नन्ही सी है ठीक तुम्हारी ही तरह, कि तुम उसी में 360 डिग्री घूम लेते हो कुछ ही पलों में! लेकिन बाहर की दुनिया इतनी बड़ी, इतनी ज्यादा बड़ी है मेरी जान कि उसमें 360 डिग्री घूमने के लिए शायद एक जीवन भी कम पड़े और ढेर सारा पैसा और युद्ध स्तर की तैयारी चाहिए होगी बाहर की दुनिया घूमने के लिए. दुनिया में घूमना, पेट में चक्कर लगाने जितना आसान नहीं है मेरे बच्चे, कि जब मन हुआ, मूड बना निकल पड़े!
मुझे नहीं पता कि तुम इस वक्त किस तापमान में हो मेरे भीतर, लेकिन बाहर का तापमान इस वक्त जानलेवा है. भयानक लू चल रही है यहां इस वक्त. तुम फिलहाल बहुत सुरक्षित हो मेरी जान, बाहर आने के बाद तो तुम्हें भी ये तपिश झेलनी पड़ेगी. बस सिर्फ यही नहीं बहुत तरह की तपिश. बस चार महीने और तुम उस गीली, काली, घुप्प अंधेरी, कोठरी में हो. तुम अकेली हो वहां, लेकिन बाहर से कहीं ज्यादा सुरक्षित हो. तुम्हारी सुरक्षा के लिए बचे-कुचे उपाय भी शुरू हो चुके हैं.
आज मुझे टिटनेस का दूसरा इंजेशन लगा. मेरे हाथ में अभी भी दर्द है और थोड़ी सूजन भी. कल-परसों से इसमें खुजली भी शुरू हो जाएगी, पिछली बार भी हुई थी. दवा तो मेरी गर्भनाल से होकर तुम तक पहुंच गई होगी मेरी बच्ची, लेकिन दर्द और तकलीफ सिर्फ तुम्हारी मां के शरीर तक ही रह गया है. मां के शरीर से दर्द छनकर कभी बच्चे तक नहीं पहुंचता! मां से बच्चे को सिर्फ दवा और दुआ ही मिलती है हमेशा, दर्द नहीं. समझी तुम?
अभी हवा इस कदर बंद है कि पेड़ों के नन्हें-नन्हें पत्ते भी बिल्कुल निर्जीव से हो गए हैं. जैसे मैंने इन सब पेड़-पौधों को स्टेचू बोल दिया हो और ये मेरा कहना मानकर सच में बच्चों की तरह स्टेचू ही बन गए हों या फिर सबको फेविकॉल से चिपका दिया हो.
6.45 पी.एम. /28.4.09
ओह मेरे बच्चे! कल तो कुछ अलग ही आनंद आया. रात सवा बारह बजे मैं जब पढ़ने बैठी तो अचानक मुझे याद आया कि ‘अरे क्या हुआ…आज, इस वक्त तुम्हारे मूवमेंट शुरू नहीं हुए…सब ठीक तो है न?‘ मेरा ये सोचना भर था, कि जैसे तुमने सुन लिया और मेरे पेट में नाभी के थोड़ा दाएं तरफ जोर का धमाका जैसा हुआ. शायद तुमने एक जोर की लात जमाई हो मुझे! लेकिन मैं खुश हुई. रात सवा बारह बजे तुम्हारा समय बिल्कुल तय है मूवमेंट करने का. लगता है तुम भी निशाचर ही बनने वाले हो.
कभी तुम फिसलकर नाभी के बिल्कुल बीच में आ रहे थे, कभी नाभी के थोड़ा दाहिनी तरफ. बीच-बीच में जोर-जोर से मेरा पेट दाहिनी तरफ से उछल रहा था. कभी नाभी के पास पेट ऐसे हिल रहा था जैसे किसी रोते हुए बच्चे का निचला होट सिसकने के कारण देर तक हिल रहा हो. कभी लगता कि जैसे जोर की गर्जना के बाद, दूर तक और देर तक आसमान में हल्की-हल्की बिजली चमकती रही हो, हल्की गड़गड़ाहट के साथ या फिर जैसे कंबल के भीतर घुस के कोई बच्चा अंदर ही अंदर इधर-उधर उछल-कूद कर रहा हो और मैं उसे बाहर से देख रही होऊं. तुम्हारा हर एक मूवमेंट मेरे पेट की सतह पर साफ-साफ उभर कर आ रहा था. वो बहुत ही अच्छी फीलिंग थी मेरे बच्चे! कल पहली बार मेरे पेट में तुम्हारी उपस्थिति ने मुझे ‘आनंदित’ किया. एक हाथ में खुली किताब लिए मैं अपलक अपने पेट को देख रही थी, मुस्कुरा रही थी.
मैं सच में कल रात बेहद खुश और आनंदित थी तुम्हारे मूवमेंट देखकर. लग रहा था जैसे कोई शैतान चूहा चद्दर के नीचे इधर से उधर उछल-कूद कर रहा हो. लगभग दो-तीन सप्ताह पहले तुमने मेरे पेट में घूमना शुरू कर दिया था. शुरू में भीतर ही भीतर मुझे कुछ अजीब सा अहसास हुआ था, तब तक पेट की बाहरी सतह तक तुम्हारी हलचल नहीं पहुंच रही थी. लेकिन जल्द ही तुम्हारी उठापटक भी बढ़ गई और पहले से ज्यादा जोशीली और ताकतवर भी हो गई, इसीलिए पेट की बाहरी सतह तक तुम्हारे मूवमेंट पहुंचने लगे.
यह एक अदभुत अहसास है मेरे बच्चे! सच में ये घोर आश्चर्यजनक है, लेकिन शुक्र है कि इस बार मैं आश्चर्य की नहीं खुशी कि गिरफ्त में हूं. कुदरत की तो हर चीज ही आश्चर्यचकित कर देने वाली है मेरी चिड़िया! जब मैंने पहली बार पेट के एक हिस्से को उछलते हुए देखा, तो मैं बरबस ही मुस्कुरा दी थी. अपने पेट के भीतर तुम्हारी हलचल को देखना सच में आंख बांधने वाला अनुभव है मेरी जान. पता है जब पहली बार मैंने देर तक अपने पेट के भीतर तुम चूहे को उछलते हुए स्क्रीन पर देखा, तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे तुम इस पेट की दीवार को जगह-जगह से ठोककर देख रहे हो कि कहां इसकी परत जरा कमजोर है और मैं वहीं से इस दीवार को तोड़कर निकल भागूं!
मुझे सच में यही लग रहा था मेरे बच्चे जैसे तुम छैनी-हथोड़ी से इस अंधेरी गुफा का कमजोर हिस्सा तलाश रहे हो उसे तोड़कर यहां से भागने के लिए. ये सोचकर मैं अपने पेट की उछलती चमड़ी को देखती रही और मुस्कुराकर मन ही मन कहती रही ‘ना-ना, यहां से बचके निकल भागना असंभव है बच्चू!’ अब तुम सिर्फ नौ महीने बाद ही इस घुप्प अंधेरी और गीली कोठरी से बाहर निकल सकोगे. तब तक इंतजार.
अभी तुम मेरे पेट के प्लेग्राउंड में कितना भी दौड़ो न तो तुम्हें प्यास लगेगी, न ही तुम पसीने से तर-ब-तर होओगे, न तुम्हें चोट लगेगी, न मुझे तुम्हारा घुटना या सिर फूटने का डर है, न ही तुम्हारे कपड़े गंदे होने का डर और न तुम्हारी सांस ही फूलेगी. सांस तो तुम अभी ले ही नहीं रहे हो फूलेगी कहां से! पहली सांस तो तुम मेरे पेट से निकलकर लोगे, जब डॉक्टर या नर्स तुम्हें उल्टा लटकाकर, तुम्हारे गग्गू पर एक चट्टू मारकर तुम्हें रूलांएंगे. समझे बच्चू! इस दुनिया में आते ही तुम्हें सबसे पहले रोना ही होगा मेरी जान! रोना तुम मेरे पेट के भीतर से ही सीख कर आओगे और हंसना तुम्हें मैं सिखाऊंगी. खुल के हंसना, बुक्का फाड़ के हंसना.
कल रात जिस वक्त मैं बिल्कुल एकचित्त होकर तुम्हें अपने पेट में उमड़ते-घुमड़ते देख रही थी उस वक्त मैं तुमसे बातें कर रही थी. तुम्हें खत लिख रही थी, लेकिन मन ही मन. क्योंकि लेटने के बाद मैं आलस के मूड में थी सो उठकर डायरी तक पहुंचना मेरे वश से बाहर था. और भी तो बहुत बार ऐसा हुआ है जबकि मैंने मन ही मन तुम्हें खत लिखा. कभी गुस्सा दर्ज किया अपना, तो कभी चिंता.
उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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