Related Articles

4 Comments

  1. Anonymous

    शानदार विश्लेषण

  2. Anonymous

    दरअसल भाईसाहब…की इसमे गलती कम और उनके परिवेश की ज्यादा प्रतीत होती है… वास्तव में कितना विरोधाभास है…हमारे समाज मे…
    बढ़िया आलेख…

  3. Anonymous

    भाई साहब।की तरह हम अधितर लोग अपने अपने तरीके से।डरे हुये है ।इसीलिये अपने खोल।से बाहर आने मैं संकोच व डर लगने लगता है ।चाहे हम भाई साहब की तरह।अपने निडर होने के सबूत क्यो न दे ।डरे लोग कितना अपने मन का जी पायेगे करना तो वैसे भी जब अधिकतर।के बस का भी नही ।हालांकि इस बीमारी की दवा आखिरी पैरा मे मिल जाती है ।

  4. दिनेश कर्नाटक

    आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए आभार…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2024©Kafal Tree. All rights reserved.
Developed by Kafal Tree Foundation