सर्द मौसम में ‘इंस्पिरेशन सीनियर सेकेंडरी स्कूल,’ काठगोदाम के हॉल के माहौल में तपिश का अहसास था. इस गर्मी की वजह थी वे नाट्य प्रस्तुतियां जिन्हें नन्हे और युवा कलाकार अंजाम दे रहे थे. कलाकारों ने ऐसा समां बाँधा कि इन प्रस्तुतियों की शुरुआत से आखिर तक दर्शकों के बीच चुप्पी पसरी रही. (Colors of Theater in Haldwani)
मौका था ‘काफल ट्री’ और ‘द शक्ति ऑनसेम्बल’ की 15 दिनी थिएटर वर्कशॉप में तैयार नाट्य प्रस्तुतियों के मंचन का. मामूली संसाधनों के बीच मान्या, आराध्य और विशालाक्षी ने शो की शुरुआत की. तीनों बच्चियों ने रोआल्ड डाल द्वारा लिखे ‘द बीएफजी’ की ऐसी मनमोहक प्रस्तुति दी कि सभागार में बैठे हर शख़्स के भीतर छिपे बच्चे के दिल के तार छिड़ गए.
प्रस्तुतियों का सिलसिला चलता रहा. फांस, अंधों का हाथी, द डाईंग मैन, रश्मिरथी, खुशिया आदि लघु नाटकों का मंचन किया गया. इन नाटकों के लेखक रहे प्रभा पंत, शरद जोशी, रामधारी सिंह दिनकर और मंटो.
इन नाट्य प्रस्तुतियों को आराध्या सती, आशा पाण्डेय, अंकित चौधरी, विशालाक्षी तिवारी, प्रियांशी त्रिपाठी, विमला बिष्ट, करन जोशी, रक्षा सिन्हा, मुकुल कुमार, मान्या नयाल, हरेन्द्र रावत, श्रीनिवास कोहली, मलयराज सिंह मटवाल आदि ने अपने जीवंत अभिनय से संवारा था.
वर्कशॉप डायरेक्टर ‘द शक्ति ऑनसेम्बल’ की संस्थापक लक्षिका पाण्डे ने 15 दिनों की छोटी सी वर्कशॉप में इन कलाकारों को तराशने का काम किया. मूल रूप से बागेश्वर की रहने वाली लक्षिका पिछले डेढ़ दशक से थिएटर कर रही हैं. भारतनाट्यम से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने छाओ, बुथो आदि नाट्य विद्याओं के साथ योगा में भी प्रशिक्षण लिया. ‘ट्रिनिटी लबान कंज़रवेटॉयर’ लंदन से ‘परफॉर्मेंस मूवमेंट स्टडीज’ का प्रशिक्षण लेने के बाद वे देश के कई इलाकों, ख़ास तौर से मुम्बई, में थिएटर डायरेक्टर के रूप में काम करती रहीं. वे आईआईटी मुम्बई, ड्रामा स्कूल मुम्बई, जेबीसीएन इंटरनेशनल स्कूल, फ्लेम यूनिवर्सिटी, पुणे, एकोले मोंदिअले वर्ल्ड स्कूल, एक्टिंग अड्डा चैनल ऑफ टाटा स्काई, शाकुंतलम फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट, देहरादून में थिएटर शिक्षक, प्रशिक्षक के तौर पर काम कर चुकी हैं.
हाल-फिलहाल जब उनका हल्द्वानी रहना हुआ तो उन्होंने अपनी मुट्ठी में बंद नाट्य संस्कृति के बीज यहां भी बिखेरने का निश्चय किया. नतीजा ‘काफल ट्री’ और ‘द शक्ति ऑनसेम्बल’ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘संवाद’ नाम की थिएटर वर्कशॉप में प्रशिक्षित कलाकारों और उनकी शानदार प्रस्तुतियों के रूप में सामने आया.
यूँ तो हल्द्वानी के पास अपनी मजबूत सांस्कृतिक विरासत रही है लेकिन गांव से क़स्बे और शहर में तब्दील होते जाने के साथ ये प्रॉपर्टी डीलरों, कई तरह के माफियाओं और व्यापारियों का शहर बनता चला गया. एक समय यहां अनियमित ही सही, थिएटर का सिलसिला भी बना रहता था, जो अब ठप्प सा पड़ गया है. पीछे छूट चुके सिरे को पकड़ कर रंगमंच संस्कृति को आगे बढ़ाना ही इस वर्कशॉप का मकसद था. उम्मीद से ज्यादा पहुंचे दर्शकों ने जिस तरह दम साधे कलाकारों का हौसला बढ़ाया वह उत्तराखण्ड में थिएटर के उज्जवल भविष्य का संकेत है.
‘काफल ट्री’ के पाठकों के लिए पेश है इन प्रस्तुतियों की झलकियाँ. ये वादा है कि जल्द ही आप वीडियो भी देखेंगे.
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