उत्तराखंड में भाजपा द्वारा विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता के बाद मुख्यमंत्री के लिये बड़े-बड़े कद्दावर नेताओं के नाम आगे आने लगे. बाज़ी मारी एक लो प्रोफाइल नेता ने, नाम था त्रिवेंद्र सिंह रावत. Trivendra Singh Rawat
त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिये अब तक का सफ़र कितना कठिन रहा होगा उसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि आज सरकार बनने के तीन साल बाद जहां उनकी 12 सदस्यी कैबिनेट में तीन पद खाली हैं वहीं राज्य में कैबिनेट और राज्यस्तरी दर्जा प्राप्त मंत्रियों की संख्या पचास से अधिक है.
मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत पहली बार बड़ी मुश्किल में तब घिरे जब ट्रांसफर को लेकर जनता दरबार में उन्होंने एक महिला शिक्षिका के साथ गैर-शालीन व्यवहार किया. मामले में त्रिवेंद्र सिंह रावत की और किरकिरी तब हुई जब उनकी पत्नी के सालों से देहरादून में नौकरी की ख़बरें आई. इस मामले को मुख्यमंत्री की मिडिया टीम ने बड़े तरीके से साइड लाइन कर दिया.
इस बीच राज्य में लगातार बढ़ती बेरोजगारी और आर्थिक स्थिरता जैसे मामले राज्य में चलते रहे. बात जब 2019 के लोकसभा चुनाव की आई तो राज्य की पांचों सीटें भाजपा के जीतने से त्रिवेंद्र सिंह रावत की स्थिति और अधिक मजबूत हुई.
राज्य में लोकसभा चुनाव और नगरपालिका और पंचायती चुनावों में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की ख़बर लगातार चलती रही. दिल्ली चुनाव में हार के बाद एक बार फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व को चुनौती दी गयी.
हाल के दिनों में एक टीवी चैनल ने राज्य में मुख्यमंत्री पद की लोकप्रियता का एक पोल कराया जिसमें त्रिवेंद्र सिंह रावत को जनता ने सिरे से नकार दिया. शुरुआत से ही संघ और वीएचपी का खुला समर्थन प्राप्त त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुश्किलें उस समय और बढ़ गयी जब देवस्थानम बोर्ड के कारण वीएचपी ने उनका समर्थन कमज़ोर कर दिया. वीएचपी ने इसे मंदिरों का राष्ट्रीयकरण कहकर सिरे से ख़ारिज कर दिया है. Trivendra Singh Rawat
इस बीच ख़बर आने लगी कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ हमेशा से खड़ा हरिद्वार का संत समाज भी नाराज है. हाल ही में जब कुंभ को लेकर मुख्यमंत्री ने हरिद्वार में मीटिंग की तो पहले आधे घंटे कोई भी संत मीटिंग में नहीं आया. बाद में संतों के नजदीकी एक प्रशासनिक अधिकारी के कहने पर संत समाज मीटिंग में शामिल हुआ. यह एक खुला हुआ राज है कि हरिद्वार का संत समाज उत्तराखंड के नेतृत्व से बेहद खफ़ा है.
पिछले हफ्ते त्रिवेंद्र सिंह रावत दिल्ली पार्टी अध्यक्ष से मिलने गये जहां से उन्हें आगे भी नेतृत्व संभाले रहने की हरी झंडी मिली है. ख़बरों के अनुसार हमेशा की तरह इस बार भी संघ ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को बचा लिया.
त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि वह कभी जनता से ख़ुद को जोड़ ही नहीं पाये हैं. पिछले साल पवन सेमवाल के ‘झांपू दा’ गीत को जिस तरह जनता ने हाथों हाथ लिया, यह बताने को काफ़ी है कि राज्य की जनता के बीच मुख्यमंत्री को लेकर कितना असंतोष है. पिछले तीन सालों में राज्य में घोषणाओं के अतिरिक्त कुछ न होने के कारण लोगों में भी गहरा असंतोष है.
संघ से नजदीकी के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड राज्य में कितने दिनों तक बने रहते हैं यह देखना रोचक होगा क्योंकि आने वाले महिनों में राज्य में संघ द्वारा जनता के रुझान से जुड़ा आंतरिक पोल किया जाना है. Trivendra Singh Rawat
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