समाज

भाभर की बिल्ली को पहाड़ ले जाने की एक याद

बात वर्ष 1990-1992 की होगी जब बाबूजी के साथ पहली बार बाजपुर जाने का मौका मिला. मौका था छोटे दाज्यू (ताऊ जी के छोटे बेटे) की शादी में शामिल होने का. पहली बार अल्मोड़ा देखा था अल्मोड़े का बाजार और मकान बाल मिठाई के पुराने डिज़ाइन वाले डिब्बे से ज़हन में वर्षों तक लाल-लाल हरे-हरे घूमते रहे. जेठ का महीना भाभर की लू से पहाड़ का कोमल बालक कुम्हला सा गया जैसे पहाड़ से लाया घी हल्द्वानी आते-आते पिघल कर अक्सर परदेशियों के बैग से बाहर आ जाता था. पहाड़ी घी की खुशबू से बस में सभी को मालूम पड़ जाता था अमुक के बैग में घी जा रहा है.
(Childhood Memoir by Mohan Joshi)

भाभर पहली बार देखा था चारों और लम्बे-लम्बे खेत खलिहान, हर घर के आगे खेतों में पानी के लिए ट्यूबवैल, ट्यूबवैल से निकलता बेसुमार पानी. घर के आगे आम से लदे पेड़ों को देखकर अजब अनुभूति हुई. भाभर के आम के पेड़ों में आम कुछ ज्यादा ही दिख रहे थे शायद पेड़ छोटे-छोटे फलदार होने से.

पहाड़ में आम के पेड़ भी पहाड़ जैसे होने वाले हुए, ऊंचे-ऊंचे. नियत तिथि को बारात हो गयी 2-3 दिन रुकने की जिद्द ताऊजी ने बाबूजी से की पर बाबूजी पहाड़ का कारबार अपने उद्यम से बंधे थे. जब से सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त किया सारे खेत खलिहानों में जीवन गुजार दिया था. जिस मेहनत से बाबूजी खेतों में मुनिटोप कर लगे रहते वैसे ही फसल साग भाजी त्यार होने को आतुर रहती.

ताऊजी के कहने पर 1 दिन और रुक गए बाबूजी बाजपुर में. पर मेरे को लग गयी भाभर की लू. मेरी आँखें गर्मी से लाल हो गई. किसी ने बताया कच्चे आम को चूल्हे में डाल कर उसके गूदे को पानी में मिलाकर इससे पिलाओ और वो बेस्वाद पानी मेरे को जेठजा (ताई जी) और बड़ी भाभी बार-बार पिला देते नयी जगह नए लोग न भी नहीं कह सकता था हां भी नहीं. सो बेस्वाद पानी न चाहकर भी पीना ही पड़ा. और यह घरेलू चिकित्सा काम आयी शाम तक मेरी आँखें ठीक भी हो गयी थी.

शादी ब्याह भीड़-भाड़ से हटकर मैं वहां की बिल्ली और उसके 3 सफ़ेद लाल धारी वाले बच्चों के साथ खेलकूद में मगन था. कुछ भी मांगने कहने में संकोच कर रहा था पर जाने कैसे हिम्मत हुई और मैंने ताईजी को बोल ही दिया, ताई एक बिल्ली का बच्चा मेरे को दे दोगे मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा. ताई थोड़ा मुस्कुरायी तभी ताऊजी आ गए वही बोले सब ले जा. ताई बोली अपने बोज्यू से पूछ ले और ले जाना एक. इतने में शायद मेरा हम उम्र या थोड़ा छोटा बड़े दाज्यू के बेटे ने यह बात सुन ली उसने उसी वक़्त सारे बिल्ली के बच्चे बंद कर दिए अलग घर में. वो एक भी बिल्ली का बच्चे देने को बिल्कुल राजी न था. उससे देख गुस्सा बड़ा आ रहा था पर करता भी क्या.

कल सुबह बाजपुर से पहाड़ वापसी थी पर बिल्ली के बच्चे रात भर ज़हन में घूमते रहे नींद शायद ही आयी होगी उस रात मुझे. थोड़ी सी खट्ट की आवाज आती में झटपट देखता कहीं बिल्ली अपने बच्चों को लेकर मेरी चारपाई के नीचे तो नहीं आ गयी. वह कहां से आती वह तो दाज्यू का बेटा बंद कर आया था कहीं.

सुबह नहा धोकर जल्दी जाने लगे तो मैंने एक बार फिर डरते-डरते ताई जी को कहा, मेरे को एक बिल्ली का बच्चा दे दो, मैं घर लेकर जाऊँगा. सब हंसते हुये बोले- अरे एक दे दो इसे बच्चा तब गनीमत थी की दाज्यू का बेटा सोया था. बाबूजी बोले अरे भाभर से कैसे लेकर जायेगा बिल्ली का बच्चा मैंने कहा मैं ले जाऊँगा अपने गोद में बैठाकर. मेरी जिद्द पर सब सहमत हो गए. पर मेरे लिए बिल्ली का बच्चा बाजपुर से मिला सबसे अनमोल तोहफा था. मुझे जल्दी थी वहां से जल्द से जल्द जाने की हुई न जाने कब दाज्यू का बेटा जाग जाता और मेरी खुशियों का गुड़ गोबर कर देता.

कब बाजपुर निकला कब हल्द्वानी आये पता न चला. रास्ते भर लोग मेरे को और मेरी बिल्ली को घूरते उतनी बार बाबूजी मेरे को बोलते यही छोड़ दे इसे कहीं चला जायेगा. पर मैं छोड़ने के लिए थोड़ी लाया था उसको. केमू स्टेशन से बेरीनाग वाली केमू मिली. उसमें बैठे थे कंडक्टर टिकट बनाता हुआ हमारी सीट पर आया बाबूजी को बोला रूल के हिसाब से जानवरों की बस में यात्रा निषेध है अगर लेकर जाना है तो टिकट लगेगा इस बिल्ली का भी. बस में जितने बैठे थे अगल-बगल के सब हंसने लगे. बाबू ने फिर मेरे को डराते हुऐ कहा बाहर फेंक दूं ये बिल्ली, टिकट लग रहा इसका? मैंने कहा- मेरे को शादी में जो दस रुपए मिले थे पिठ्या वाले वह दे दो इनको. आपको दिये थे मैंने सम्भालकर रखने को. मेरी बात से सब हंसने लगे. कंडक्टर भी दस रूपये का टिकट बना मुस्कुराता कानों मे बॉलपेन डाल अपनी सीट की ओर बढ़ गया.
(Childhood Memoir by Mohan Joshi)

हल्द्वानी से तपोवन का सफर कम से कम आठ से नौ घंटों का होता था और केमू की माठू माठ चाल. जैसे-तैसे तपोवन पहुंचे वहां से घर तक का सफर पैदल होता था तीन से चार घंटों का, बिल्ली के बच्चे को तपोवन दुकान से थोड़ा दूध पिला दिया था. रात को घर पहुंचे बिल्ली को साथ लेकर मैं सो गया. सुबह उठा तो सबसे पहले बिल्ली को ढूंढा फिर एक कटोरा ढूंढकर ईजा को बोला यह बिल्ली के दूध पीने का कटोरा है. आज से ये इसी में पियेगा दूध. ईजा ने सहमती दे दी.

करीब एक महीना ही मैं पहाड़ रहा था उसके बाद मेरे को आगे की पढ़ाई के लिये दीदी के पास गाजियाबाद जाना पड़ा. इस एक महीने मे जब भी खिरमांडे बाजार जाता बाबूजी को टॉफी बिस्कुट खरीदने को कहता और बड़े रौब से बोलता मैंने आपको दिए थे न वो दस रूपये बाजपुर में रखने को उससे ले लो. बाबू बार-बार बोलते तेरे पैसे को बिल्ली के किराये में दे दिए थे अब कैसे पैसे? बाबू बरसों तक कहते रहते थे दस के कितने दस बनाकर रौब जमाता रहा अब बस यादे हैं. मेरे गाजियाबाद जाने के कुछ दिनों बाद वह बिल्ली नहीं रही बीमार तो वो पहाड़ आने के बाद के कुछ दिन बाद से होने लगी थी शायद भाभर की गरम जगह में रहने की वजह से पहाड़ का मौसम बिल्ली के बच्चे के लिए अनुकूल न रहा हो.
(Childhood Memoir by Mohan Joshi)

मदन मोहन जोशी “शैल शिखर”

मूलरूप से गंगोलीहाट के रहने मदन मोहन जोशी वर्तमान में बदरपुर, नई दिल्ली रहते हैं. मदन मोहन जोशी से उनके नम्बर 9990993069 पर संपर्क किया जा सकता है.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

इसे भी पढ़ें: दिल्ली से गांव लौटने की एक पुरानी याद

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

3 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

7 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

7 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

7 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

7 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

7 days ago