जीवन में सफलता के लिए चाणक्य नीति श्लोक बार-बार दोहराए जाते हैं. यहां चाणक्य नीति श्लोक का कुमाऊनी में भावानुवाद किया गया है. बालम सिंह जनौटी द्वारा किया गया यह भावानुवाद पुरवासी पत्रिका में 1992 के अंक में प्रकाशित हुआ था.
(Chanakya Niti Shlokas Kumaoni)
धन जाणी प्राण जाणी
चला लक्ष्मीश्चला:
घर जाणी जान जाणी
दुनि में सब जाणिये जाणी
एक धरम छू कभै नि जाणी
प्राणश्चले जीवितमन्दिरे
चला चले च संसारे
धर्म एको हि निश्चलः
(Chanakya Niti Shlokas Kumaoni)
धनॅक नाश मनॅक दुःख,
अर्थनाशं मनस्ताप
घरै बुराइ कैं नि बतौण चैन
धूर्त धैं ठगी, मौ लगे बेर
के थें नि कोण चैन
गृहे दुश्चरितानि च
वम्चन चापमानं च
मतिमान्न प्रकाशयेत
निर्धन चानी धन
अधमा धनमिच्छन्ति
पशु चानी बुलाण
मनख चानी सरुक जाण
द्याप्त चानी मोक्ष पाण
वाचं चैव चतुष्पदाः
मानवा स्वर्गमिच्छन्ति
मोक्षमिच्छन्ति देवताः
नि देख कभै, कभैं निसुण
न निर्मिता चैव न दृष्टपूर्बा
दुनी में हुनी सुनुक हिरण
उजड़ण बखत उल्टी मति
रामज्यू कर्नी कंस परण
न श्रूयते हेममय कुरङ्गः
तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य
विनाश काले विपरीत बुद्धिः
दिन में नि देखीन आँख उल्लू कैं
नोलूकोप्यवलोक्यते यदि दिवा
तो सूरज कैं के दोष
द्यो नि पड़न चातका मुख में
तो बादव के के दोष
सूर्यस्य कि दूषणम
वर्षानैव पतन्ति चातक मुखे
मेघस्य किं दूषणम
(Chanakya Niti Shlokas Kumaoni)
आग और वामण हव और बल्द
विप्रयोविंप्रवहन्योश्च
इनार बीच निहुन ठाड़
नौकर मालिक स्यैणि और बेग
इनार बीच कभै नि जाण
दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः
अन्तरेण न गन्तव्यं
हलस्य बृषभस्य च
दगड़ू हुनी
विद्यामित्रं प्रवासे च
परदेश में विद्या, घर में घरवाइ
दगड़ू हुनी
मरण में धरम, बीमार में दवाइ
भार्यामित्रं गृहेषु च
व्याधित औषधममित्रं
धर्मो मित्रं मृतस्य च
पराय स्यणि मै समान
मातृवत् परदारेषु
पराय धन ल्वत समान
सबौं पराण आपुं समान
जो समजों उ पण्डित महान
परदन्येषु लोष्ठवत
आत्मबत्सर्वभूतेषु
य पश्याति स पण्डितः
जादे सिद हुण निभै
नात्यन्त सरलैर्भाव्यं
जै भे चाओ बण उज्याणि
सिद बोट तड़कै हालीं
ट्याड़नकि फौज ठाड़ि
गत्वा पश्य वनस्थलीम
छिद्यन्ते सरलास्तत्र
कुब्जा तिष्ठति पादपः
(Chanakya Niti Shlokas Kumaoni)
यह लेख श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब अल्मोड़ा द्वारा प्रकाशित पुरवासी पत्रिका से साभार लिया गया है.
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