हर शुभ की पहचान गेरू और बिस्वार की जोड़ी गायब है
पहाड़ में कोई भी त्यौहार हो पारम्परिक कुमाऊनी घर गेरू की भिनी सुगंध से सरोबार हो जाया करते. एक समय ऐसा भी था जब दिवाली के समय के समय गेरू और बिस्वार की जोड़ी से सजे घर कुमाऊं की अपनी पहचान ह... Read more
लोककला पर मोहन उप्रेती का एक महत्वपूर्ण लेख
विगत लगभग तीस-चालीस वर्षों से भारत के विद्वजनों का ध्यान लोक-परम्परा की ओर आकर्षित हुआ है, विशेषकर आज के तेजी से बदलते राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक परिवर्तनों के अनुरूप लोक कला को अपनाने की सम... Read more
उत्तराखण्ड में मृतात्माओं से जुड़े लोकविश्वास
उत्तराखण्ड अद्वितीय प्राकृतिक सुन्दरता और अनूठी लोकसंस्कृति से समृद्ध है. यहाँ के समाज में प्रचलित ढेरों किस्से-कहानियाँ मन को आनन्दित तो करते ही हैं, ये अलिखित इतिहास भी हैं. रोमांच से भर द... Read more
विरासत में मिलने वाली लोक कला ‘ऐपण’
उत्तराखंडी लोक कला के विविध आयाम हैं. यहाँ की लोक कला को ऐपण कहा जाता है. यह अल्पना का ही प्रतिरूप है. संपूर्ण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में लोक कला को अलग-अलग नामों जैसे बंगाल में अल्पना, उ... Read more
कुमाऊं क्षेत्र में अब सिर ढकने की परम्परा पूरी तरह समाप्त हो चुकी है. कम लोग ही जानते हैं एक समय ऐसा भी था जब पूरे कुमाऊं क्षेत्र में सिर ढकने की परम्परा हुआ करती थी. सिर ढकने की इस परम्परा... Read more
लोकपर्व सातों-आठों पर कही जाने वाली कथा
कुमाऊं में सातों-आठों की खूब धूम रहती है. कुमाऊं क्षेत्र में एक बड़े समाज द्वारा सातों-आठों का पर्व मुख्य पर्व के रूप में मनाया जाता है. अलग-अलग क्षेत्र के लोग अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार... Read more
सातों-आठों में आज घर आयेंगी गौरा दीदी
पहाड़ में आज उत्सव का माहौल है. सुबह से ही घर की साफ-सफाई लिपा-पोती का जोर है क्योंकि आज गौरा दीदी अपने मायके आने वाली हैं. लोक की सबसे बड़ी विशेषता ही यह है कि यहां के आराध्य भी मानवीय रितो... Read more
सातों-आठों में गाये जाने वाले गीत और परम्पराएं
भादों शुक्ल पक्ष पंचमी को बिरुड़ पंचमी मनती है.घरों में लिपाई पुताई की जाती है. ताँबे के बर्तन में गोबर गणेश बनता है. उस पर गाय का दूध डाल अक्षत पिठ्या फूल चढ़ाते हैं. पञ्च अनाजों के बिरुड़... Read more
घ्यूं त्यार क्यों मनाया जाता है
अपनी विशिष्ट लोक परम्पराओं से उत्तराखंड के लोग अपने समाज को अलग खुशबू देते हैं. शायद ही ऐसा कोई महिना हो जब यहां के समाज का अपना कोई विशिष्ट त्यौहार न हो. ऐसा ही लोकपर्व आज घी त्यार या घ्यूं... Read more
अब तो पहाड़ में घर ही कम बचे हैं. बचे हुये घरों में भी बुजुर्ग दम्पति अधिक हैं या फिर ऐसे लोग जिनको आधुनिक समाज में पिछड़े और मजबूर कहा जाता है. कमजोर और मजबूर कहे जाने वाले इन कन्धों ने ही... Read more