ब्रह्मपुर चौथी व छठी-सातवीं शताब्दी के मध्य में उत्तराखण्ड के पर्वतीय राज्य की राजधानी हुआ करती थी. इतिहासकारों के अनुसार गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तरी भारत में पैदा हुए छोटे-छोटे राज... Read more
उत्तराखण्ड में स्थित अल्मोड़ा जनपद का पश्चिमी सीमावर्ती इलाका सल्ट कहलाता है. तीखे ढलान वाले रुखे-सूखे पहाड़, पानी की बेहद कमी, लखौरी मिर्च की पैदावार और पशुधन के नाम पर हष्ट-पुष्ट बैल इस इल... Read more
चंदवंश के संस्थापक के विषय में बहस क्यों है
कुछ साल पहले यूके.एस.एस.सी ने एक प्रतियोगी परीक्षा में चंद वंश का संस्थापक पूछा था. इसके जवाब में दिए विकल्पों में सोमचंद और थोहरचंद, के साथ दो अन्य शासकों के नाम दिये थे. यूके.एस.एस.सी द्वा... Read more
उत्तराखण्ड के स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के सूत्रपात में प्रमुखतया महात्मा गांधी की भूमिका मानी जाती है. राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के कार्यक्रमों व अधिवेशनों में उत्तराखण्ड के व्यक्तियों की... Read more
2 सितम्बर मसूरी गोलीकाण्ड के शहीद
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के आन्दोलन में मसूरी का ख़ास योगदान रहा है. इस आन्दोलन में मसूरी निवासियों के बलिदानों को कभी भुलाया नहीं जा सकता. 1 सितम्बर को 1994 को खटीमा में हुए बर्बर गोलीकांड... Read more
आज ही के दिन हुआ था खटीमा गोलीकांड
1 सितम्बर, 1994 की सुबह खटीमा में हमेशा की तरह एक सामान्य सुबह की तरह शुरू हुई. लोगों ने अपनी दुकानें खोली थी. सुबह दस बजे तक बाजार पूरा खुल चुका था. तहसील के बाहर वकील अपने-अपने टेबल लगा कर... Read more
मोटर गाड़ियों के आने के काफी पहले काठगोदाम और नैनीताल के बीच यातायात की समस्याओं से निबटने के लिए अंग्रेजों द्वारा अनेक योजनाएं बनाई गयी थीं. इनमे सबसे पहली थी इन दो जगहों के बीच सामान के ढुल... Read more
उस रात नौगांव में हम लोग एक मकान में योजना बना रहे थे कि पटवारियों ने हमें घेर लिया और 14 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. जब हमें दाडिमी गांव ले जाया गया तो गांव वालों ने हमें छोड़ देने के लिए कहा... Read more
1942 में आज ही के दिन हुई थी सालम क्रांति
‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में कुमाऊं के जनपद अल्मोड़ा में स्थित सालम पट्टी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. अल्मोड़ा जनपद के पूर्वी छोर पर बसे सालम क्षेत्र को पनार नदी दो हिस्सों में बांटती है. यहां क... Read more
गुमानी और गौर्दा का देशप्रेम
कुमाऊं अंचल में हिंदी की खड़ी बोली में साहित्य की परंपरा लम्बे समय तक मौखिक रही. कुमाऊं में हिंदी की खड़ी बोली में साहित्य का लिखित रूप प्रायः सन 1800 के बाद ही दिखाई देता है. (Nationalism... Read more