कुमाऊंनी लोकसाहित्य में अनेकानेक पक्षियों का उल्लेख है. मोनाल, तीतरी, शुक, कव्वा, गौतेली, कफुआ, हुट-हुटिया आदि. लेकिन घुघुत का उल्लेख कुमाऊंनी लोकसाहित्य में खुल कर हुआ है. एक लोकगीत में घुघ... Read more
उत्तराखण्ड की लुप्त होती पारंपरिक लोककलाओं के दौर में ही ऐपण के अच्छे दिन चल रहे हैं. कुमाऊं की चित्रकला ऐपण के गांवों से शहरों, कस्बों और महानगरों तक पैर पसारने का सिलसिला चल निकला है. हेमल... Read more
रैदास के वंशज हैं उत्तराखण्ड के दास
यूं तो हिंदी भाषा में दास शब्द का सामान्य अर्थ है किसी के अधीन रहने वाला सेवक नौकर— दास के कई रूप हुआ करते हैं. लेकिन उत्तराखण्ड में दास ताल वाद्य बजाने और देववाणी गाने वाले ख़ास जनों को कहा... Read more
रामजन्म से उनकी जलसमाधि तक
हमरी सीता हैं रात अँजोरी तोहरे राम हैं कारा भँवरवा जब कवि अपनी बोली -भाषा या कहें कि मातृभाषा में कविता रचता है ,तो वह मात्र कविकर्म ही नहीं कर रहा होता है, अपितु वह अपनी लोकपरंपरा, संस्कार... Read more
लोककथा : शेरू और श्याम
सावित्री ने आज घर पर ही रहने का फैसला किया. थकाऊ खेती के काम से आज उसे फुरसत मिली थी. हफ्ते दस दिन से वह इतनी व्यस्त हो गयी थी कि अपने बेटे को समय नहीं दे पा रही थी. चाहती थी कि आज वह अपने ब... Read more
लोककथा : ह्यूंद की खातिर
पुरानी बात है जब दो वक्त की रोटी जुटाना ही बड़ी बात थी. उन्नत बीज और सही जानकारी न होने की बजह से खेतों में कठिन परीश्रम करने के बावजूद भी पैदावार कम ही होती. परन्तु लोग अभाव में रहते हुये भ... Read more
लोककथा : दुबली का भूत
सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्रों में स्थायी निवास के साथ-साथ प्रायः एक अस्थाई निवास बनाने का चलन है, जिसे छानी या खेड़ा कहा जाता है. इन छाानियों में कभी खेती-बाड़ी बढ़ाने के लिए तो कभी हवा पानी बद... Read more
युगमंच नैनीताल : रंगमंच और सिनेमा जगत को नामचीन कलाकार देने वाला थिएटर ग्रुप
उत्तराखण्ड में रंगमंच के विकास की गरज से साल 1976 में ‘युगमंच’ की स्थापना की गयी. चार दशक के अपने सफर में युगमंच हिन्दी रंग जगत की उन चुनिंदा संस्थाओं में गिना जाता है जो पूरी प्रतिबद्धता, स... Read more
गढ़वाल से ग्लोब तक मेरे कैसे-कैसे कमरे
तुम्हें अपने कमरे से जाने की ज़रूरत नहीं है. अपनी मेज के पास बैठे रहो और सुनो. बल्कि सुनो भी मत, बस इंतज़ार करो, ख़ामोश रहो, स्थिर और अकेले. तुम्हारे सामने ये दुनिया ख़ुदबख़ुद अपना नक़ाब उता... Read more
ऐपण उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल की बहुप्रचलित लोककला है. कुमाऊँ के हर घर की महिलाएं मांगलिक अवसरों पर इसे सदियों से बनाती हैं. कुमाऊँ की हर महिला एक ऐपण आर्टिस्ट है कहा जाए तो गलत नहीं होगा. व... Read more