जीवन और जीविका की सुनहरी राह बनाते विनीता-अरविंद
कोरोना महामारी ने समाज के बहुसंख्यक लोगों की जीवन-दिशा को बदला है. जीवन में अचानक आये इस संकट ने लोगों को हताश-निराश तो किया परन्तु उनके मन-मस्तिष्क में अन्तर्निहित शक्तियों और हुनर को उभारा... Read more
उत्तराखंड में खेती
खेती के इतिहास का सभ्यता के विकास के साथ अटूट सम्बन्ध है. इसी के आधार पर मनुष्य अपने समाज की संरचना कर पाया. परन्तु दुर्भाग्यवश इतिहासकारों का ध्यान भारतीय खेती के इतिहास, विशेषकर हिमालयी खे... Read more
बेहद ख़ास है कुमाऊनी रायता
रैत यानी कि रायता. कुमाऊं में इसका ख़ास महत्व है. जिस तरह मैदानों में पनीर की किसी सब्जी या दाल मखनी के बगैर कोई भी थाली अधूरी है, उसी तरह कुमाऊं की थाली भी रैत के बिना अधूरी है. कुमाऊनी राय... Read more
कुमाऊनी भाषा में एक लोकप्रिय लोककथा
भौत पैलिये बात छु. एक गौं में एक बुड़ और एक बुड़ी रौंछी. उ द्वियनै में हइ-निहई कजी लागिये रोनेर भै. नानतिन उनर क्वे छी नै. एक चेलि छी वीक ले भौत पैली ब्या है गोछी.(Folklore in Kumaoni Langua... Read more
यह उत्तराखंड की एक आम तस्वीर है
तस्वीर में कुछ ग्रामीण एक गर्भवती महिला को अस्पताल को ले जा रहे हैं. इससे पहले दो दिन तक महिला प्रसव पीड़ा से तड़पती रही. जब गांव वालों ने महिला की मदद करनी चाही तो गर्भवती महिला को अस्पताल... Read more
सर्वप्रथम पाली पछाऊँ शब्द की व्युत्पत्ति कत्यूरी शासन काल में हुई. उत्तराखण्ड में कत्यूरी शासनकाल के दौरान कत्यूरी शासकों की एक शाखा यहाँ आकर बस गई और लखनपुर कोट अपनी राजधानी बनाई. इसकी स्था... Read more
आप काफल ट्री की आर्थिक मदद कर सकते हैं . बीते दिन भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली और उनकी पत्नी अनुष्का शर्मा के अचानक उत्तराखंड पहुंचने की खबर वायरल हुई. भवाली हैलीपैड के पास दोनों की अपनी बेटी... Read more
भैरव शिव के उग्र रूप हैं. पशुपतिनाथ मंदिर, काठमांडू में भैरव के दो स्वरूपों उन्मुक्त भैरव व कीर्तिमुख भैरव के मुख्य दर्शन होते है. नेपाल की समृद्ध धरा शिव भूमि वर्णित है. वह जितनी मनमोहक दृश... Read more
सिद्ध साधकों की कर्मस्थली : उत्तराखंड
उत्तराखण्ड का प्राकृतिक सौन्दर्य आध्यात्मिक शान्ति का जन्मदाता रहा है. उच्च हिमाच्छादित शिखर, कल-कल करती हुई धवल नदियाँ और देवभूमि ने साधकों को अपनी ओर आकर्षित किया. इसी पर्वत प्रदेश की कन्द... Read more
नदी-पुत्र : पिथौरागढ़ की एक लोककथा
पीपल पलवृक्ष के नीचे ढोल रख धरमदास ने अंगौछे से पसीना पोछा और गोरी नदी की ओर मुँह कर एक चौड़े पाथर पर बैठ गया. कैलास-मानसरोवर की दुर्गम यात्रा की थकान के स्थान पर एक बहुत बड़ी उपलब्धि का आनन... Read more