इस तरह द्वाराहाट में द्वारिका नगरी न बन सकी
इन दिनों स्याल्दे कौतिक के चलते द्वाराहाट खूब खबरों में हैं. स्याल्दे कौतिक इस इलाके का बड़ा कौतिक है जिसमें कई पट्टी के लोग आज भी आते हैं. स्याल्दे कौतिक के विषय में लम्बी पोस्ट यहाँ पढ़िये... Read more
क्या 1940 में शुरू हुआ थल मेला
कुमाऊं का थल मेला न जाने कितने पहाड़ियों की स्मृतियों का हिस्सा होगा. रामगंगा नदी के किनारे लगने वाले इस मेले को जीने वाली एक पूरी पीढ़ी है जो आज देश और दुनिया के अलग-अलग कोनों में बस चुकी ह... Read more
सूखे आटे का स्वाद
पिछली कड़ी – घुघुति-बासूती आज बारिश बहुत तेज है, सर्दियों में इतनी तेज बारिश पहाड़ों में कभी नहीं सुनी/देखी गई. लगातार तीन दिनों से इंद्रदेव शिवालिक पर्वत श्रेणी के इस क्षेत्र पर अपनी क... Read more
पहाड़ की ठण्ड में चाय की चुस्की
बचपन से ही में मुझे शिकार खेलने का बहुत शौक था जो किशोरावस्था तक आते-आते और भी चरम सीमा पर चढ़ गया. शहर से जब भी गांव आना होता था मैं दूसरे दिन बंदूक उठा कर शिकार की तलाश में जंगल की ओर निकल... Read more
कुमाऊनी जागर शैली में शिव सती विवाह की कहानी
1937 में जन्मे मार्क गैबेरिओ दर्शन, अरब और इस्लाम पर अपने अध्ययन के लिये जाने जाते हैं. 1963 में मार्क नेपाल में आये. नेपाल में 1967 तक उन्होंने फ्रेंच भाषा पढ़ाने का काम किया. नेपाल में रहन... Read more
मेघ व हिमालय चित्रावली
पोखरा नेपाल से मुस्तांग जाते बादलों की अठखेलियों में मगन हिमालय की दृश्यावलियाँ : –प्रोफेसर मृगेश पाण्डे जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी... Read more
क्वी त् बात होलि
सुदि त क्वी नि देखदु कै सणी… विशुद्ध रूप से चेष्टा-भाव पर आधारित इस गीत में युवती की चेष्टाओं को देखकर युवक के हृदय में जो आकर्षण-विक्षोभ उत्पन्न होता है, उसका निहायत सजीव चित्रण हुआ ह... Read more
आलू, चने और रायते का यह अनुपम जादू
तश्तरी के ऊपरी हिस्से में जो काले चने दिखाई दे रहे हैं उन्हें रात भर चीड़ की लकड़ी की आँच में गलाया जाता है. बिल्कुल बेसिक मसालों में भूने गए आलू हमारे कुमाऊँ में गुटके कहलाते हैं. इन दोनों... Read more
कुमाऊँ में वस्त्र उद्योग का इतिहास
ऐसा प्रतीत होता है कि कुटीर उद्योग के रूप में वस्त्र निर्माण समूचे हिमालयी क्षेत्र में विद्यमान था. प्रत्येक गाँव में कृषक अपने गाय-बैलों के साथ भेड़ भी पालते थे, जिनके ऊन से कंबल व वस्त्र ब... Read more
मेरी आवाज़ सुनो…
पहाड़ की कराह निकली… वह बोला मैं टूट रहा हूँ, बचा लो मुझे! मैं धंस रहा हूँ, देखो संभालो मुझे! उसके तन-मन से जुड़े नदी, चट्टानों, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों में उथल-पुथल मची... Read more