साझा कलम – 2 – हेम पन्त
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से... Read more
शोला था जल बुझा हूं
मेहदी हसन को हम किस तरह याद करेंगे ये सोचना मुश्किल नहीं है क्योंकि उन्हें सुनते रहिए तो भूलने की हिमाकत हो ही नहीं पाएगी. मुश्किल तो ये सोच पाना है कि उन्हें भुलाया कैसे जाएगा. कोई रंग, कोई... Read more
आकाशमुखी लेखन का एंड्रॉयड युग
कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद, स्कूल-इंस्पेक्टर थे. वे अक्सर देहातों में दौरों पर रहते थे. आवागमन के साधन तब बहुत सीमित होते थे. मजबूरन उन्हें वहीं रुकना पड़ता था. कामकाज के बाद, जन जीवन को गहरे... Read more
उस कमरे में रामलीला का साजो सामान पड़ा रहता था. शाम के वक्त वह कमरा मोहल्ले के लड़कों के अड्डेबाजी के काम आता था. उसका नाम रामलीला क्लब पड़ गया जो कि बाद में घिसकर मात्र क्लब रह गया. लड़के श... Read more
ओ परुआ बौज्यू की गायिका बीना तिवारी के साथ मुलाकात
पिछली सदी के अंत तक जब टीवी का प्रचलन बहुत ज्यादा नहीं था, तब तक रेडियो ही आमजन के मनोरंजन का साधन था. जैसे-जैसे टीवी का प्रचलन बढ़ा, तथाकथित मनोरंजक चैनलों की बाढ़ आई और उसमें पारिवारिक दैन... Read more
परम भ्रष्टाचार विरोधी, अन्ना भक्त, भाई साहब !
भाई साहब, भ्रष्टाचार को अपने पतीत-पावन देश के लिए बहुत बड़ी बीमारी मानते थे. वे इसे देश के ऊपर कलंक के तौर पर देखते थे. वे मानते थे कि जिम्मेदार जगहों पर बैठे लोग जनता की मुसीबतों को दूर करने... Read more
साझा कलम – 1 – लोकेश पांगती
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर आज से हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार... Read more
शहरी संकटों की मांद में जच्चाघर
बीतती बारिश के दिनों में हम सामने पड़े खाली प्लॉट में कुत्तों को गदर मचाते देख रहे थे. प्लॉट में दुनिया भर की अवाट-बवाट चीजें पड़ी हैं. कुछ घास-पात उगा है और सुबह-शाम किनारे-किनारे गाड़ियां... Read more
तुम प्रेम में इतने डरे डरे क्यों हो
तुम प्रेम में इतने डरे डरे क्यों हो ? … और इसके उत्तर में काफ़ी देर शून्य में ताकता रहा. फिर जैसे उसने बहुत गहरे कुँए से अपनी आवाज़ को खींचा और बोला- मैं पश्चाताप का आदिपुरुष हूँ. कहीं भी कुछ... Read more
दिल्ली से तुंगनाथ वाया नागनाथ – 3
(पिछली क़िस्त – दिल्ली से तुंगनाथ वाया नागनाथ – 2) कहे अनुसार सुबह ठीक छह बजे परशु गिलास भर कर चाय दे गया. मैं छत पर गया तो देखा, चारों ओर पहाड़ों पर सुनहरी धूप खिल रही थी. पीछे बहुत बड़े मैदान... Read more