वह वन डे क्रिकेट का सबसे काला क्षण था
अगर टेस्ट क्रिकेट का सबसे शर्मनाक अध्याय बॉडीलाइन सीरीज़ के रूप में इंग्लैण्ड के कप्तान डगलस जार्डीन ने १९३० के दशक में लिखा था तो वन डे सीरीज़ में यह काम करनेवाले और कोई नहीं भारत के पूर्व को... Read more
सोने के बालों वाली सूना और उसके बीरा की कथा
बर्फ पड़ने के बाद की सुरसुराहट अब कम होने लगी थी. डाँडी-काँठी में जमा ह्यूं सर्दीले घाम के मद्धिम ताप से धीरे-धीरे पिघलने लगा. झड़े पत्तों की मार से भूरे नंगे पेड़ों की टहनियों में रस बहने लगा.... Read more
साझा कलम: 6- प्रियंका पाण्डेय
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से... Read more
हिंदी की नई पौध के लिए एक चिट्ठी : नसीहत नहीं, ‘हलो’ मेरे नए रचनाकार दोस्तो! आज से करीब पचपन साल पहले मैंने हिंदी लेखकों की दुनिया में प्रवेश किया था. वो पिछली सदी के साठ के दशक का आरंभिक दौ... Read more
माता महेश गिरि
मोहिनीदी से फिर मुलाकात की उम्मीद कम होती जा रही है. अब कहां भेंट होगी! हमसे गांव कबके छूट गया. वह भी क्या करने जाएगी गांव. उसकी ईजा, हमारी जेड़जा, जिंदा थी तो वर्षों में कभी एक चक्कर लगा लेत... Read more
दिल्ली से तुंगनाथ वाया नागनाथ – 4
(पिछली क़िस्त – दिल्ली से तुंगनाथ वाया नागनाथ – 3) मैं दूकानों से थोड़ा आगे निकला और नीचे जंगल की ढलान की ओर देखा. वह प्लास्टिक के कचरे से अटा पड़ा था. दूकानों के आगे साफ सड़क और उनके पिछवाड़े इत... Read more
विशाल हृदय वाले गुरूजी और हिरन का आखेट
हेडमास्टर साहब, मस्तमौला आदमी थे. टेंशन बिल्कुल नहीं पालते थे. बरसात के दिनों को छोड़कर, सालभर कक्षाएँ बाहर लगती थीं. स्कूल- बिल्डिंग के आगे एक खुला सा मैदान था. पहाड़ के हिसाब से अच्छा-खासा... Read more
प्रगतिशीलता का दुपट्टा और सुंदरता का कीड़ा
प्रगतिशीलता का दुपट्टा तह करके आलमारी में रख दूं तो इस सुंदरता वाले कीड़े ने मुझे भी कम नहीं काटा. जब तक दुपट्टा ओढ़े रहती, कीड़ा कुछ दूर-दूर से ही मंडराता था. दुपट्टा हटाते ही उसको खुला मैद... Read more
वीरेन्द्र डंगवाल : कविता और जीवन में सार्थक भरभण्ड -नवीन जोशी गरुड़ बटी छुटि मोटरा, रुकि मोटरा कोशिअघिला सीटा चान-चकोरा, पछिला सीटा जोशि हमारी गाड़ी कोसी पहुंची ही थी कि मेरे मुंह से बचपन में... Read more
साझा कलम: 5 – कौशल पन्त
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से... Read more