रंग उसे बीजगणित की जटिल वीथियों में ले जाते थे
मून फ्लोरिस्ट वो जब भी इस दुकान के आगे से गुज़रता, हल्का सा ठिठक जाता.. . और सोचने लगता कि चाँद पर उगने वाले फूल किस तरह के होते होंगे. उनका रंग क्या धरती पर उगने वाले फूलों जैसा ही होता होगा... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 2
पिछली कड़ी गुडी गुडी डेज़ -अमित श्रीवास्तव बतकुच्चन मामा फैल गए थे. ये बात उनको नागवार गुज़री थी. वैसे तो अपने ख़िलाफ़ चूं भी उनको नागवार गुज़रती थी ये तो चों थी. उन्होंने फनफनाते हुए लौंडों को दे... Read more
मीटू इज स्वीटू
गुजरात के शहरों और कस्बों से हिंदी बोलने वाले बिहार, यूपी, एमपी के भइया लोग देसी गालियां और लात देकर भगाए जा रहे हैं. सबको गुजराती अस्मिता के डंडे से हांकने का बहाना एक कुंठित युवा द्वारा एक... Read more
माफ़ करना हे पिता – 4
(पिछली क़िस्त: माफ़ करना हे पिता – 3) उन्हीं दिनों कभी मैंने पिता से पूछा कि क्या इंदिरा गांधी तुमको जानती है ? क्योंकि वे खुद को सरकारी नौकर बताते थे और लोग कहते थे कि सरकार इंद्रा गांध... Read more
रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 4
(पिछली क़िस्त का लिंक – रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 3) वेदनी बुग्याल को पार करते हुए हम घोड़ा लौटानी की ओर निकल गये और वहाँ से पाथरनचुनिया जायेंगे. जहाँ हमारा आज का कै... Read more
रामी बुढ़िया ( लोककथा )
एक गांव में रामी नाम की बुढिया रहती थी, उसकी बेटी का विवाह दूर एक गांव में हुआ था जहाँ जाने के लिये घना जंगल पार करना पड़ता था. रामी का बहुत मन हो रहा था कि वह अपनी बिटिया से मिल कर आये. (Fol... Read more
सूरज की मिस्ड काल – 8
धूप का चौकोर टुकड़ा सुबह का समय है. कमरे के बाहर बरामदे में धूप का चौकोर टुकड़ा अससाया सा लेटा है. धूप के टुकड़े को देखते ही मन किया कि इस चतुर्भुज का क्षेत्रफ़ल निकाला जाये. लम्बाई करीब ढेड़ मीट... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 2
पिछली कड़ी वे संगी-साथी हां तो सुनो, कक्षा में मेरे एक-दो दोस्त बन गए, लेकिन निवास पर मैं अलग-थलग-सा पड़ गया. भीतर के कमरे के सीनियर कुछ अलग जैसे रहते थे. उनके और मेरे कमरे के बीच कांच लगी एक... Read more
माफ़ करना हे पिता – 3
(पिछली क़िस्त: माफ़ करना हे पिता – 2) एक दिन सुबह के वक्त मैं खेलता हुआ मकान मालिक के आँगन में जा पहुँचा. सामने रसोई में श्रीराम कुछ तल-भुन रहा था और मुझ से भी बतियाता जा रहा था. तभी अचा... Read more
रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 3
(पिछली क़िस्त का लिंक – रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 2) सुनसान बुग्याल में मुझे दो युवा चरवाहे भेड़ चराते दिखे. मैंने हँसते हुए पूछा – बस एक ही भेड़. उनमें से एक न... Read more