शिकायत करो कि शिकायत करना धर्म है
शिकायत मनुष्य का मौलिक गुण धर्म है. वह जिसे किसी से शिकायत न हो उसके आदमी होने में संदेह की संभावना रहती है (Complaint Culture in Offices). अल्मोड़े में ऐसा न था. यहां शिकायतें उतनी ही विविध... Read more
जिसके हम मामा हैं – शरद जोशी के बहाने
“बाढ़ और अकाल से मुर्गा बच जाए मगर वह हमसे सुरक्षित नहीं रह सकता” कमिश्नर ने कहा और इस मजा पर सब जोर से हंसने लगे. बाहर बाढ़ और अन्दर लंच चल रहा है. भारतीय दर्शक कुछ समय तक मंच पर... Read more
देश का कपाल गृह नक्षत्रों की चाल
गैरीगुरु की पालिटिकल इकानोमी : अथ चुनाव प्रसंग-6 पिछली कड़ी : उठती है हर निगाह खरीदार की तरह स्वस्ति श्री सर्वोपमा योग्य श्री ३ चेले गिरिजा नामधारी गैरीगुरु आशीष पहुंचे. अत्र कुशलम तत्रास्तु.... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 34 (पिछली कड़ी:वो दिनभर किराए की साइकिल चलाना और बतौर कप्तान वो फुटबॉल मैच में मेरा अविश्वसनीय गोल) आजकल के माता-पिता अपने बच्चों को कलेजे से लगाकर रखते हैं. उन्हें कुछ भ... Read more
कौसानी के कवि सुमित्रानंदन पंत -जन्मदिन पर विशेष
20 मई 1900 को जन्मे इस सुकुमार कवि के बचपन का नाम गुसांई दत्त था. स्लेटी छतों वाले पहाड़ी घर, आंगन के सामने आड़ू खुबानी के पेड़, पक्षियों का कलरव, सर्पिल पगडण्डियां, बांज, बुरांश व चीड़ के पेड़ों... Read more
मसूरी में राहुल सांकृत्यायन
25 सितम्बर को बैरिस्टर श्री मुकुन्दीलाल ली आये. मुकुन्दीलाल जी अपने क्षेत्र में वही स्थान रखते हैं, जो कि जायसवाल जी बिहार में. दोनों आक्सफोर्ड के स्नातक और बैरिस्टर है. जायसवाल जी बैरिस्ट्र... Read more
अल्मोड़ा के दो पेड़ों का खूबसूरत मोहब्बतनामा
यह एक ऐसी प्रेम कहानी है जो आपने पहले शायद ही कहीं पढ़ी या सुनी हो. यह कहानी पिछले तकरीबन 100 सालों से अल्मोड़ा की माल रोड में चल रही है और हमें उम्मीद है की आने वाले कई सालों तक ऐसे ही जारी... Read more
ये कौन आया…
छह-सात दशक पहले, हिंदी सिनेमा में रोमानी उत्थान के गीतों की जो धारा बहनी शुरू हुई, लंबे अरसे तक उनका प्रभाव बना रहा. इन गीतों के जरिए सिनेप्रेमियों को लौकिक प्रेम को अभिव्यक्त करने के कई रंग... Read more
महसूस तुम्हें हर दम फिर मेरी कमी होगी
मेलोडेलिशियस-3 (पोस्ट को रुचिता तिवारी की आवाज़ में सुनें) ये ऑल इंडिया रेडियो नहीं है. ये ज़हन की आवाज़ है. काउंट डाउन नहीं है ये कोई. हारमोनियम की ‘कीज़’ की तरह कुछ गाने काले-सफेद... Read more
कहां थे मेरे उजले दिन
कहो देबी, कथा कहो – 44 पिछली कड़ी – तोर मोनेर कथा एकला बोलो रे सांझ ढल गई थी और अंधेरा घिरने के साथ-साथ ट्रेन से दिखाई देते गांवों और नगरों में बिजली की बत्तियां जगमगाने लगीं. शताब्दी ट... Read more