मुखबा गांव का आतिथ्य
पहाड़ों की सुबह मेरे लिए कभी भी बिछुड़ी हुई अंतिम सुबह नहीं रही,यह हर साल आबो-हवा बदलने के लिए पहाड़ जाने के एवज में वही चिर-परिचित सुबह ही है जिसको हमेशा मैं अपने ज़ेहन में करीने से रखती हू... Read more
प्रकृति व महामाया का पर्व नवरात्रि
प्रकृति शब्द में तीन अक्षर हैं जिनमें ‘प्र’ अक्षर पहले से आकर्षित प्राकृष्ट सत्वगुण, ‘कृ’ अक्षर रजोगुण एवं ‘ति’ तमोगुण का प्रतीक है. इन तीनों अक्षरों से म... Read more
प्रसूताओं के लिए देवदूत से कम नहीं ‘जसुमति देवी’
आज विज्ञान और तकनीक की मदद से स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में नित नए आयाम जुड़ रहे हैं. पिछले एक दशक में ही स्वास्थ्य सुविधाओं में आशातीत उन्नति हुई है. भले ही पहाड़ आज भी उस सुविधाओं क... Read more
असोज की घसियारी व घास की किस्में
पहाड़ के लोगों का पहाड़ सा जीवन महीना असोज के लगते ही हिमालय के तलहटी में बसे गाँवों में घास की कटाई प्रारम्भ हो जाती है जो कार्तिक माह के आते आते खत्म होने लगती है. कृषि व पशुपालन पहाड़ की... Read more
ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी
ब्रह्माण्ड अनेक रहस्यों से भरा है. इनके बारे में जानने के लिए उत्सुकता लगातार बनी रही है. आदि काल से ही मानव ने आकाश में सूर्य, चंद्र व तारों को देखा. इनकी गतियों का निरीक्षण किया. धीरे-धीर... Read more
परम्परागत घराट उद्योग
वस्तुतः घराट को परम्परागत जल प्रबंधन, लोक विज्ञान और गांव-समाज की सामुदायिकता का अनुपम उदाहरण माना जाता है. सही मायने में ये घराट ग्रामीण आत्मनिर्भरता और पर्यावरण सम्मत कुटीर उद्योग के प्रती... Read more
‘गया’ का दान ऐसे गया
साल 1846 ईसवी. अवध के कैंसर से जूझते नवाब अमजद अली शाह अपने अंतिम दिन गिन रहे थे. कभी समृद्धि की चकाचौंध से भरे अवध के विशाल साम्राज्य के भी अंतिम दिन शुरू होने वाले थे. 1801 की संधि के अनुस... Read more
कोसी नदी ‘कौशिकी’ की कहानी
इस पहाड़ से निकल उस पहाड़कभी गुमसुम सी कभी दहाड़यूं गिरते-उठते, चलते मिल समंदर से जाती हैहर नदी अपनी मंजिल यूं ही तो पाती है. जिस प्रकार शरीर में धमनियां हैं, ठीक उसी प्रकार प्रकृति में नदिय... Read more
यो बाटा का जानी हुल, सुरा सुरा देवी को मंदिर…
मुनस्यारी में एक छोटा सा गांव है सुरिंग. गांव से कुछ तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर नंदा देवी का मंदिर है. बचपन में पिताजी हर साल अपने साथ नंदाष्टमी पर सुरिंग ले जाया करते थे. पिताजी का पूरा... Read more
कुमौड़ गांव में हिलजात्रा : फोटो निबन्ध
हिलजात्रा एक ऐसी परंपरा जो पिछले 500 सालों से पिथौरागढ़ के कुमौड़ गाँव में चली आ रही है जिसे कुमौड़ के महर अपने पुरखों के समय से मनाते हैं. हिलजात्रा की यात्रा के सूत्र तिब्बत से शुरू हो नेप... Read more