देघाट की फ़िज़ा में आज बारूद की ‘बू’ थी
1942 का साल था और तारीख आज की थी. चौकोट की तीनों पट्टियों की एक सभा देघाट में होनी थी. देघाट में विनौला नदी के पास देवी के एक मंदिर में करीब 5 हजार लोग एकत्रित थे. पुलिस के कुछ सैनिक सभा के... Read more
पांडवों की बिल्ली और कौरवों की मुर्गी कैसे बनी महाभारत का कारण: कुमाऊनी लोक साहित्य
कुमाऊं का यह दुर्भाग्य रहा है कि यहां का लोक साहित्य कभी सहेज कर ही नहीं रखा गया. इतिहास में ऐसी कोई कोशिश दर्ज नहीं है जिसमें यहां की परम्परा और संस्कृति को सहेजने की ठोस कोशिश देखने को मिल... Read more
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का मशहूर निबंध है ‘कुटज’. गिरिकूट यानी पहाड़ों की चोटी पर पैदा होने वाला वृक्ष है कुटज. कठिन पहाड़ी परिस्थितियों के बीच पैदा होने पर भी अपने अतुलनीय सौन्दर्य से स... Read more
कुमाऊं में दाह संस्कार का पारंपरिक तरीका
मृतक संस्कार में मृत्यु के समय गोदान और दशदान कराया जाता है. मरणासन्न व्यक्ति के मुख में तुलसीदल और गंगाजल डालते हैं. फिर मृतक को स्नानोपरान्त चन्दन और यज्ञोपवीत धारण कराए जाते हैं. मृतक के... Read more
बागेश्वर से भारतीय फुटबाल टीम का उभरता सितारा
बागेश्वर जिले के एक छोटे से गांव से निकले रोहित दानू की मेहनत का परिणाम है कि आज उन्हें भारतीय फुटबाल का उभरता सितारा माना जाता है. भारत की अंडर-14, 15, 16, 17 और 19 टीम से खेल चुके 19 वर्ष... Read more
फूलों की घाटी: फोटो निबंध
गढ़वाल हिमालय में सीमांत जनपद चमोली में बद्रीनाथ धाम से बीस किलोमीटर पहले पूर्व की ओर गोविंद घाट बस्ती है. यहाँ से 17 किलोमीटर दूर पैदल चल 3658 मीटर की ऊँचाई पर हिम मंडित उपत्यका से सम्मोहि... Read more
उत्तराखंड के युवाओं के आगे घोड़े थक जाते हैं
ओलंपिक गेम्स के साथ ही खिलाड़ियों की बदहाली पर चर्चा भी खत्म हो गई है. अगले ओलंपिक में खिलाड़ियों के निराशाजनक प्रदर्शन तक सन्नाटा रहेगा. मैं भी इस पर चर्चा नहीं करता यदि फूलों की घाटी से लौ... Read more
आज पकवानों की सुंगध बिखरेगी हर पहाड़ी परिवार में
आज सावन के महीने की आखिरी रात है. आज की रात पहाड़ियों के घर पकवानों की ख़ुशबू से महक उठते हैं. पूड़ी, उड़द की दाल की पूरी व रोटी, बड़ा, पुए, मूला-लौकी-पिनालू के गाबों की सब्जी, ककड़ी का रायत... Read more
जब `स्पानी फ़्लू’ की तीसरी लहर लौटकर आई
वो वापस आई! प्रथम विश्व युद्ध अपने साथ अमरीका के तिरपन हज़ार सैनिकों को ले गया था और उसकी मृत्यु–सहोदरा पिचहत्तर हज़ार सैनिक खींच ले गई! ग्यारहवें महीने के ग्यारहवें दिन के ग्यार... Read more
ठेठ कुमाऊनी के कुछ शब्द और उनके अर्थ
पिछड़ेपन का एक सुखद पक्ष यह है कि जनजीवन की बोलचाल में ऐसी विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग होता है जो अभी तक ठेठ रूप में बची हुई है. इस शब्दावली में सम्बन्ध वाची शब्दों के अतिरिक्त भगोल सम्बन्धी,... Read more