मार्कण्डेय की कहानी ‘गरीबों की बस्ती’
यह है कलकत्ता का बहूबाज़ार, जिसके एक ओर सरकारी अफ़सरों तथा महाजनों के विशाल भवन हैं और दूसरी ओर पीछे उसी अटपट सड़क के पास मिल मज़दूरों तथा दूसरे प्रकार के श्रमजीवियों की बस्ती है.(Gareebon K... Read more
आज से कोई 40-45 साल पहले एक रहस्यमय घटना अखबारों की भी सुर्खियां बनी थी कि बेतालघाट के बेताल नकुवा बूबू के बेटे की शादी काकड़ीघाट के बेताल की बेटी से होनी है. तब स्थानीय लोंगो के बीच यह काफी... Read more
‘चाकरी चतुरंग’ की समीक्षा
बहुत सारे मुखौटे हैँ एक दूसरे से अलग -थलग. सबकी सोच भी जुदा-जुदा सी. इनके पीछे छिपे चेहरे व्यवस्था की बागडोर संभालते हैं. चाकर हैं तो सबकी जिम्मेदारी कहीं न कहीं कुछ मान्यताओं और संकल्पनाओं... Read more
महात्मा गाँधी को चिट्ठी पहुँचे : परसाई
यह चिट्ठी महात्मा मोहनदास करमचंद गाँधी को पहुंचे. महात्माजी, मैं न संसद-सदस्य हूँ, न विधायक, न मंत्री, न नेता. इनमें से कोई कलंक मेरे ऊपर नहीं है. मुझमें कोई ऐसा राजनीतिक ऐब नहीं है कि आपकी... Read more
बीती शाम उत्तराखंड के लोकगीत ‘छाना बिलौरी’ की धुन पर पूरा देश एक साथ झूमा. मौका था बीटिंग रिट्रीट 2022 के समारोह का. दिल्ली में रायसीना हिल्स की ठंडी शाम में जब ‘छाना बिलौरी’ की धुन बजी तो म... Read more
बिन ब्याही लड़की की चिता
पुराने समय की बात है. गोपिया एक दिन घर के आंगन में बैठे-बैठे अपनी दो-ढाई वर्ष की लड़की कुसुमा का हाथ पकड़ कर उसे नचाते हुए गाना गा रहा था- म्यरि होंसिया बालि कुसुमा, छुम रे छुमा छुम,हाजुरी क... Read more
बर्फ में बिनसर: फोटो निबंध 2022
कुछ जगहें आप के दिल के इतने करीब होती हैं, इतनी मनपसंद होती हैं कि बार-बार वहां जाने पर भी दिल नहीं भरता. बिनसर और बिनसर का जंगल भी कुछ ऐसी जगहों में से है जहां पिछले कई सालों से जा रहा हूं.... Read more
लपूझन्ना जादू है!
किताब उठाते ही लगता है किसी जादूगर ने काले लंबे हैट में हाथ डालकर एक कबूतर निकाल दिया हो. किताब पढ़कर आप ख़त्म नहीं कर पाते. कबूतर के पंख हाथ में फड़फड़ाते हैं. किताब के सफ़हे दिलो-दिमाग पर... Read more
भारतवर्ष में सर्वप्रथम सन् 1921 ई० में “जयहिन्द” नारे का उद्घोष करने वाले महान देशभक्त श्री रामसिंह धौनी का जन्म 24 फरवरी सन् 1893 ई० में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल... Read more
अमरूद का पेड़
घर के सामने अपने आप ही उगते और फिर बढ़ते हुए एक अमरूद के पेड़ को मैं काफी दिनों से देखता हूँ. केवल देखता ही नहीं, इस देखने में और भी चीजें शुमार हैं. तीन-चार साल में बड़े हो जाने, फूलने और फ... Read more