व्यापारिक केन्द्र की शक्ल में उभरता कैंची धाम
पांच दशक पूर्व तक ख्यातिप्राप्त कैंचीधाम महज 10-15 परिवारों का एक छोटा सा गांव हुआ करता था. तब बाहरी व्यक्ति जब इस गांव का नाम सुनता तो हैरत में पड़ जाता. कैंची – यह भी भला किसी गांव का नाम... Read more
समधी-समधिन की प्रतिकृति बनाने की अनूठी परम्परा
समधी-समधिन मतलब दो अनजान परिवारों को एक सूत्र में पिरोने का रिश्ता. समधिन यानी पुत्र रत्न एवं पुत्री रत्न को परस्पर वर-कन्या के रूप में सर्मपण. याद रखें, समर्पण केवल पुत्री का नहीं होता, पुत... Read more
उत्तराखंड के इस गांव का नाम अमरीका क्यों पड़ा
यदि आपके पास पासपोर्ट और वीजा नहीं है, कोई टेंसन की बात नहीं, आप बेखौफ अमरीका की सैर कर सकते हैं. यहां तक कि आपकी जेब खाली हो तो भी. चौंक गये न! लेकिन चौंकने वाली बात कुछ नहीं है. यदि आप देव... Read more
पहाड़ी मूली नहीं है मामूली
‘किस खेत की मूली’ (कमजोर या अधिकारविहीन, ‘मूली-गाजर समझना’ (कमजोर) और ‘खाली मूली में’ (व्यर्थ में) जैसी लोकोक्तियां अथवा वाक्यांश यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि मूली को बेहद मामूली, कम... Read more
1880 की त्रासदी से भी सबक नहीं ले पाये नैनीतालवासी
सन् 1880 का वह दौर, जब नैनीताल में मानवीय दखल न के बराबर थी. 1841 में खोजे गये इस शहर को आबाद हुए 40 साल से भी कम का समय गुजरा था. तब महज 10,054 की कुल जनसंख्या वाले इस नवोदित शहर में आज ही... Read more
बादलों में भवाली: भवाली की जड़ों को टटोलती किताब
अंग्रेजी वर्तनी के अनुसार भोवाली, अतीत में भुवाली और अब भवाली नाम से जाना जाने वाला यह छोटा सा कस्बा नैनीताल से 11 किमी पूर्व में राष्ट्रीय राजमार्ग 109 (पूर्व में हाईवे 87 के नाम से) पर स्थ... Read more
पहाड़ की लोक परम्पराओं, लोक आस्थाओं एवं लोकपर्वों की विशिष्टता के पीछे देवभूमि के परिवेश का प्रभाव तो है ही साथ ही यहॉ की विशिष्ट भौगोलिक संरचना भी दूसरे क्षेत्रों से इसे अनूठी पहचान देती है... Read more
चाय से जुड़े अफसाने, चाय दिवस के बहाने
चाय हमारे हिन्दुस्तानी समाज में कुछ इस तरह रच-बस चुकी है कि वह अब केवल राष्ट्रीय पेय ही नहीं रहा, बल्कि चाय के बहाने बड़े बड़े काम चुटकियों में हल करने का जरिया भी है. बाजार से लेकर दफ्तर तक... Read more
‘बेड़ू पाको बारामासा’ लोकगीत पर एक विमर्श
लोक के क्षितिज से उपजा और अन्तर्राष्ट्रीय फलक तक अपनी धमक पहुंचाने वाला कुमाऊॅ के सुपर-डूपर लोकगीत ‘बेड़ू पाको बारामासा’ से भला कौन अपरिचित है. गीत का मुखड़ा किसने लिखा और कब से यह लोकजीवन क... Read more
पहाड़ चढ़ना जितना मुश्किल होता है, उस पर जिन्दगी बसर करना भी किसी चुनौती से कम नहीं होता. जीवन की मूलभूत सुविधाओं की दुश्वारियों के दंश उन्हीं पाषाणों में पुष्प खिलाने के गुर भी उन्हें सिखात... Read more