खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर
यह 2007 की बात है. दिन-वार ठीक से याद नहीं. अक्टूबर का महीना था. उन दिनों रामलीला(एं) चल रही थीं. अल्मोड़ा से तीन जने दिल्ली के लिए रवाना हुए – बागेश्वर से केशव, अल्मोड़ा से रज्जन बाबू और मै... Read more
बड़े से लॉन में उगायी गयी अमेरिकन घास के बीच-बीच में उग आयी चलमोड़िया घास की जड़ें खोदने में खड़क सिंह इस कदर मशगूल था कि उसे बहुत देर तक झुलसाती हुई धूप का अहसास ही नहीं हुआ. सूरज की किरणें... Read more
फिल्मों का क्रेज़ और वो ज़माना
जिस तरह पुराने हीरो अब हीरो नहीं रहे, एक दम ज़ीरो हो गए हैं या दादा-नाना बनकर खंखार रहे हैं, उसी तरह अपने शहर के दो सिनेमाघरों में भी एक वीरान पड़ा है तो दूसरा मॉल बन गया है. अपने को पुराने... Read more
अल्मोड़ियापन, अल्मोड़ियत या अल्मोड़िया चाल का दस्तावेज है भूमिका जोशी की पहली किताब
‘लच्छी’ भूमिका जोशी का इसी वर्ष प्रकाशित उपन्यास है. वाणी प्रकाशन से छपा यह उपन्यास एक घर, उसके बाशिन्दों और एक शहर की कहानी है. उपन्यास में अपने को पढ़वा ले जाने की क्षमता है. छह उप-शीर्षको... Read more
अल्मोड़ा से बीबीसी रेडियो की भीनी-भीनी यादें
शम्भू राणा का यह लेख नैनीताल समाचार में वर्ष 2011 में तब छपा था जब हिंदी समेत कई भाषाओं में बीबीसी रेडियो के बंद होने की खबरें आई थी. शंभू राणा का यह लेख नैनीताल समाचार से साभार लिया गया है... Read more
अल्मोड़ा में सार्वजनिक ब्लैक-बोर्ड की गाथा
अल्मोड़ा शहर में दो-तीन सार्वजनिक जगहों पर ब्लैक-बोर्ड बने हैं. एक है बस स्टेशन पर, कचहरी को जाने वाली सीढ़ियों के नीचे. दूसरा लाला बाजार में किशन गुरुरानी की दुकान के आगे. तीसरा बावन सीढ़ी... Read more
एक अल्मोड़िया शगल ऐसा भी
अमूमन हर आदमी को कोई न कोई शौक-शगल-खब्त-आदत-लत होती है. फेहरिश्त काफी लंबी हो सकती है. इसमें कचहरी जाना भी शामिल है. बड़ी ही जानदार लत है. तंबाकू जैसी असरदार. कब गिरफ्त में ले लेती है, पता न... Read more
लिखता हूँ ख़त खून से स्याही न समझाना
ख़तो-किताबत-शंभू राणा क़ासिद के आते-आते ख़त एक और लिख रखूं, ... Read more
जनार्दन बाबू का कायाकल्प
आज विश्वास करना मुश्किल होता है कि जनार्दन बाबू कभी ऐसे न थे जैसे अब हो गए हैं. लगभग सालभर पहले कुछ और ही आदमी थे. उनके कई जानने वालों को आज भी यकीन सा नहीं होता कि वे इतने बदल गए हैं. तब वा... Read more
ईश्वर के नाम शम्भू राणा का ख़त
प्रिय ईश्वर, आज जमाने भर बाद किसी को पत्र लिखने बैठा हूं. तुम तो जानते ही हो कि अर्सा हुआ खतो—किताबत का चलन तकरीबन खतम हो गया. अब संवाद के दूसरे त्वरित माध्यम मौजूद हैं. मगर चिट्ठी लिखने का... Read more