नैनीताल के चिलम सौज्यू की दास्तान
बड़ा बाज़ार के पास वाले मोड़ पर ही, जहाँ किसी जमाने में घोड़ा स्टेंड था, उसी तिराहे पर, स्टेट बैंक की बगल में हल्की-सी दिखाई देती शिला के नीचे हमेशा दुबके रहते हैं चिलम सौज्यू. आप लोग उन्हें देख... Read more
गगास के तट पर : उत्तराखंड की समाजार्थिकी पर केन्द्रित हिंदी का पहला उपन्यास
गगास के तट पर : जगदीश चन्द्र पांडे (1968) (इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : सोलहवीं क़िस्त) हिंदी समाज की विडंबना है कि पाठक साहित्यिक जानकारी को लेकर इतना लापरवाह है कि वह न तो अपने... Read more
कब बन जाते हैं आदमी के दो चेहरे
इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार – पंद्रहवीं क़िस्त क्या आपने इलाचंद्र जोशी के ‘प्लेंचेट’ और परामनोविज्ञान का नाम सुना है? 1965-66 के दौरान ‘धर्मयुग’ में संपादक धर्मवीर भारती ने परा-मन... Read more
इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : चौदहवीं क़िस्त शैलेश मटियानी, मनोहरश्याम जोशी, शिवानी, राधकृष्ण कुकरेती, गोपाल उपाध्याय, स्वरूप ढौंडियाल और विद्यासागर नौटियाल के बाद उत्तराखंड से एक... Read more
नई कहानी के नए प्रेरक : शैलेश मटियानी और ज्ञानरंजन
इतने बड़े हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : तेरहवीं क़िस्त 1966 में नैनीताल से इलाहाबाद के लिए रवाना हुआ तो मैं एक तरह से हवा में यात्रा कर रहा था. क्यों यात्रा कर रहा हूँ, यह तो मालूम था, मगर कह... Read more
मानकीकरण से हिंदी की टांग मत तोड़ो भाषा, मानकीकरण और व्याकरण का रिश्ता बहुत पुराना है हालाँकि बाहर से देखने पर यह जितना सहज दिखाई देता है, व्यवहार में उतना है नहीं. देखा यह गया है कि कुछ देर... Read more
हमारे ब्रह्माण्ड की पहली भारतीय कहानी ( एक विदेशी का लिखा हिन्दू लोक-मिथकों का इतिहास : ‘क’ ) सृष्टि के जन्म और विकास को लेकर भारतीय लोक मानस में मौजूद कथाएँ लेखक – रॉबर्तो... Read more
अनुवाद पढ़कर बनता है गंभीर और स्थायी पाठक भारत जैसे महादेश में जितनी भाषाएं बोली जाती हैं, उन्हें देखते हुए कोई भी अनुमान लगा सकता है कि यहाँ के लोग कितनी तो भाषाएँ जानते होंगे. मगर वास्तविकत... Read more
किशोर उत्तराखंड की जकड़
उत्तराखंड अगर मानव शरीर होता तो आज किशोर होता और स्कूल छोड़कर कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा होता. कल्पना कीजिये कि 9 नवम्बर, 2018 के दिन वो कैसा दिखाई दे रहा होता? हमारे गाँवों का रूपाकार आज कु... Read more
असंख्य पाठ्यपुस्तकों के बीच अदृश्य हिंदी पाठक अगर आप देश-विदेशों में हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या पर जायेंगे तो जरूर चकरा जायेंगे. बीते कुछ सालों से हिंदी पढ़ने का फैशन कम होता जा... Read more