गिर्दा का केदारनाद
विगत कुछ सालों से महानगरों में खप रहे युवाओं के बीच पहाड़ लौटकर कुछ कर गुजरने का एक नया, सकारात्मक चलन देखने में आ रहा है. ये युवा बहुत उम्मीद के साथ पहाड़ लौटते हैं और खुद पहाड़ की उम्मीद बन ज... Read more
किसने आख़िर ऐसा समाज रच डाला है
हमारा समाज -वीरेन डंगवाल यह कौन नहीं चाहेगा उसको मिले प्यार यह कौन नहीं चाहेगा भोजन वस्त्र मिले यह कौन न सोचेगा हो छत सर के ऊपर बीमार पड़ें तो हो इलाज थोड़ा ढब से बेटे-बेटी को मिले ठिकाना द... Read more
न हों ज्ञान से बड़ी किताबें
संजय चतुर्वेदी की कविता पुस्तक मेले हुईं ज्ञान से बड़ी किताबें अर्थतन्त्र के पुल के नीचे रखवाली में खड़ी किताबें जंगल कटे किताब बनाई लेकिन चाल ख़राब बनाई आदम गए अक़ील आ गए आकर अजब शराब बनाई श्रम... Read more
मंटो क्यों लिखता था
आज मशहूर अफसानानिगार सआदत हसन मंटो (Manto)की बरसी है. इस मौके पर प्रस्तुत है अपने लेखन को लेकर उनका लिखा हुआ एक बेबाक और प्रेरक आलेख. मैं क्यों लिखता हूँ -सआदत हसन मंटो मैं क्यों लिखता हूँ?... Read more
चार कहानियाँ मंटो की
आज विख्यात कहानीकार सआदत हसन मंटो (Manto) की मृत्यु को 64 साल हो गए. साधारण मनुष्य की छोटी-बड़ी हार-जीतों को अपनी कहानियों का विषय बनाने वाले मंटो भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्रसिद्ध और चर्चित... Read more
इतने भले नहीं बन जाना साथी
वीरेन डंगवाल (Viren Dangwal) हिन्दी के आधुनिक कवियों की सूची में ऊंचा स्थान रखते हैं. वीरेन डंगवाल (5 August 1947 -27 September 2015) की रचनाओं में गहरी जनपक्षधरता, समाज की गहरी समझ और भाषा-... Read more
हिन्दी सिनेमा में नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने एक बेहतरीन अभिनेता के तौर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों में ब्लैक फ्राइडे (2004), न्यू यॉर्क (2004), पीपली लाइव (2009), क... Read more
लच्छू कोठारी और उसके सात बेवकूफ बेटे
अभी पिछले दशक तक की बात थी जब कुमाऊं के स्कूलों में मास्टर बच्चे की मूर्खतापूर्ण हरकत पर ताना देकर कहता – “तुझसे भली तो लच्छू कोठारी की संतान.” लच्छू कोठारी की संतानों के किस्से पहाड़ क... Read more
बीसवीं सदी में सबसे ज़्यादा पढ़े गए लेखकों में शुमार रोआल्ड डाल ने उपन्यास लिखे, बच्चों के लिए किताबें लिखीं और सबसे महत्वपूर्ण यह कि एक से एक अविस्मरणीय कहानियां लिखीं. नॉर्वेजियन मूल के माता... Read more
चचा ग़ालिब के जन्मदिन पर उनकी हवेली से एक रपट
सुबह जब गली मीर क़ासिम जान पहुंचा तो उनकी हवेली, जिसे अब एक स्मारक में तब्दील कर दिया गया है, के आसपास कुछ ख़ास नज़र नहीं आया. बाहर उनके पोते के साथ अपने बच्चे को मदरसे ले जाने के लिए रिक्शे का... Read more