नवरात्र का समय था. हम कुछ दोस्त माँ के दर्शन के लिए गार्जिया मन्दिर गए थे. मन्दिर में दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी थी. हम सब भी उस कतार में शामिल हो गये. मौसम सुहाना था. बहुत... Read more
उत्तराखंड के कवि पार्थसारथी डबराल का जन्मदिन है आज
हिंदी साहित्य में छायावाद के प्रमुख कवियों में पंत, प्रसाद, निराला व महादेवी वर्मा का नाम सभी जानते हैं लेकिन छायावादोत्तर काल में जिन पर्वतीय कवियों ने अपनी कालजयी रचनाओं से हिंदी कविता को... Read more
पहाड़ की लड़कियों का पहाड़ सा जीवन
आंगन की भीढ़ी में बैठे-बैठे हरूवा सुबह से पांच बीड़ी फूंक चुका था. बेटी की शादी में महज 10 दिन रह गए थे. पहाड़ियों का एक अलग ही लॉजिक होता है, टेंशन के समय में बीड़ी फूकने से काम करने की थोड... Read more
अरे! तुम तो एक हफ्ते में निबटा देने वाले ठैरे ‘वैलन्टाइन डे’ का जश्न, हमारे टैम पर तो सालों भी लग जाने वाले हुए ‘वैलेन्टाइन डे’ के इन्तजार में. किसम-किसम की सेरेमनी और रिचुवल्स होने वाले हु... Read more
बीबीसी की तिलिस्मी आवाज़ वाली रेडियो सेवा का अंत
जरा अतीत की बिसरी गलियों में जाइए और भारत का वह दौर याद करने की कोशिश कीजिए, जब घर-घर में टीवी की स्क्रीन नहीं आए थे. लोग देश-दुनिया की ख़बरें सुनने के लिए रेडियो का सहारा लिया करते थे और बी... Read more
हिट तुमड़ि बाटे-बाट, मैं कि जानूं बुढ़िया काथ : कुमाऊं की एक लोकप्रिय लोककथा
किसी गांव में एक बुढ़िया थी. बूढी और निर्बल बुढ़िया एक अकेले घर में रहती थी. एक साल जाड़ों के दिनों बुढ़िया को लगा कि शायद वह इस साल मर जायेगी. मृत्यु के भय से उसने सोचा कि क्यों न अपनी बेटी के... Read more
कल्पनीय सच का विधान : चंदन पांडेय के उपन्यास ‘वैधानिक गल्प’ के बहाने ‘आज’ से जिरह
सबकुछ सायास है वैधानिक गल्प में. उसके इस तरह से होने पर बहस होनी चाहिए क्योंकि जान बूझकर किसी घटना, व्यक्ति या विचारधारा को उजागर करने के उद्देश्य के लिए बुनी गयी चीज़ में वो मात्रा सबसे निर... Read more
सैंणी के दबाव में किशनी शहर में किरायेदार बन गया
किशनी बचपन से होशियार चालाक बच्चा था, गांव वाले बचु पदान को कहते भगवान किसी को औलाद दे तो किशनी जैसा, किशनी व्यवहार कुशल मिलनसार सबके सुख-दुःख का साथी सारथी रहता क्या नाते-रिश्ते क्या गाँव... Read more
बचपन में गौरेया हमारे जीवन में रची-बसी थी
देहरादून में घर के पीछे दीवार पर जो लकड़ी के घोसले मैंने टाँगे थे उनमें गौरेयों ने रहना स्वीकार कर लिया है. लकड़ी के ये घोसले मैं देहरादून की जेल से लाया था, जो वहाँ पर कैदियों द्वारा तैयार... Read more
पहाड़ के स्कूलों में जाड़ों की छुट्टियां और बचपन
को ऑफिस से ज़रा जल्दी रुखसत होने की खुशी ज़रूर होती मगर बाहर कदम रखा तो देखा कि अच्छी खासी बारिश हो रही थी. बारिश मे रानीखेत की माल रोड किसी नई नवेली दुल्हन सी दिलकश हो जाती है. सड़क के एक त... Read more