कहानी : प्लेग की चुड़ैल
प्लेग महामारी के समय की व्यथा कहती मास्टर भगवान दास की यह कहानी 1902 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी. (Master Bhagwan Das Plague Ki Chudail) गत वर्ष जब प्रयाग में प्लेग... Read more
शेखर जोशी की कहानी ‘गलता लोहा’
मोहन के पैर अनायास ही शिल्पकार टोले की ओर मुड़ गए. उसके मन के किसी कोने में शायद धनराम लोहार के आफर की वह अनुगूँज शेष थी जिसे वह पिछले तीन-चार दिनों से दुकान की ओर जाते हुए दूर से सुनता रहा... Read more
एक शब्दहीन नदी: हंसा और शंकर के बहाने न जाने कितने पहाड़ियों का सच कहती शैलेश मटियानी की कहानी
‘माई डियर हंसा!’‘ले प्यारी, इस दफा तेरे आर्डर की मुताबिक, खुले पोस्टकार्ड की जगह पर, बंद इंगलैंड लेटर भेज रहा हूँ. हकीकत तो यही हुई कि लवलेटर जरा सेक्रिट किस्म की वस्तु ही... Read more
डूबना एक शहर का : प्रसंग टिहरी
अपने डूबने में यह हरसूद का समकालीन थाशहरों की बसासत के इतिहास को देखें तोयह एक बचपन का डूबना था(Poem Harish Chandra Pande) इतिहास से बाहर जाएँ, जैसे मिथक मेंतो यहाँ एक मुक्ति दा नदी बाँधी जा... Read more
उत्तराखण्ड की लक्ष्मी रावत बनीं ‘श्रीराम सेंटर फॉर परफार्मिंग आर्ट’ की वर्कशाप डायरेक्टर
उत्तराखण्ड मूल की थियेटर आर्टिस्ट लक्ष्मी रावत देश के बड़े थियेटर ग्रुपों में शुमार ‘श्रीराम सेंटर फॉर परफार्मिंग आर्ट’ की नयी वर्कशाप डायरेक्टर के तौर पर नियुक्त की गयी हैं. अपनी नयी भूमिका... Read more
शेरदा ‘अनपढ़’ की कविता मुर्दाक बयान
जब तलक बैठुल कुनैछी, बट्यावौ- बट्यावौ है गेपराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे(Sherda Anpadh Poem) जो दिन अपैट बतूँ छी,वी मैं हूँ पैट हौ,जकैं मैं सौरास बतूँ छी,वी म्यैर मैत हौ lमाया का मारगा... Read more
ओशो कहते हैं कि ‘संतान कितनी ही बड़ी क्यों न हो जाए, अपने माता-पिता से बड़ी कभी नहीं हो सकती.’ लेखक ललित मोहन रयाल का अपने पिता मुकुन्द राम रयाल पर लिखी किताब ‘काऽरी तु कब्बि ना हाऽरि’ का मु... Read more
मां आज भी सभी सिक्कों को डॉलर ही कहती है
ब्रह्म ने पृथ्वी के कान में एक बीज मंत्र दे दिया हैउसी क्रिया की प्रतिक्रिया मेंजब बादल बरसते हैं,तो स्नेह की वर्षा होने लगती हैऔर पृथ्वी निश्चल भीग उठती है.आज भी बादलों के गरजने औरधरती पर फ... Read more
गोविन्द वल्लभ पन्त की कहानी ‘फटा पत्र’
प्रजापति और मास्टरों के घंटों में इतनी शरारत नहीं करता था, जितनी पंडित श्रानंदरन साहित्य-शास्त्रीजी के घंटे में. वे जब लड़कों की कापियाँ शुद्ध करते थे, तब लड़के उनकी मेज को चारों ओर से घेर ल... Read more
फागुन के आखिरी दिनों में रफल्ला, गाँव के नजदीक के गधेरे में अपना घाघरा धो रही है. बसंत इन दिनों से एक हाथ आगे होता है. इन एकदम उदास मटमैले दिनों में लगभग सभी चीजें खुद-ब-खुद कहीं डूब गयी सी... Read more