पोस्टमैन : शैलेश मटियानी की कहानी
लिफाफे के बाहर पता यों लिखा हुआ था :सोसती सिरी सरबोपमा – सिरीमान ठाकुर जसोतसिंह नेगी, गाँव प्रधान – कमस्यारी गाँव में, बड़े पटबाँगणवाला मकान, खुमानी के बोट के पास पता ऊपर लिखा, प... Read more
कहानी – पहाड़ की याद
जून के महीने की भरी दोपहरी. इतना भरा पूरा गांव आराम की मुद्रा में था. इसलिए चारों ओर खामोशी सी पसरी थी. इस खामोशी को अगर कभी-कभी तोड़ रहे थे तो वे तीन प्राणी थे— अम्बर, धरा और कालू नाम का भो... Read more
कहानी : बाहर कुछ नहीं था
मेरा एक सीक्रेट है, जिसे मैं किसी से शेयर नहीं कर सकता. मुझे डर है कि जानते ही लोग मुझ पर हँसेंगे. दरअसल खुद मैंने इसे अभी अभी ईजाद किया है. तभी, जब पहलेपहल ऑफिस में यह खबर फैली कि कंपनी का... Read more
हरि मृदुल की कहानी ‘कन्हैया’
वह विरल दृश्य था. सड़क पर एक युवक बांसुरी बजाता जा रहा था. सैकड़ों कान उसका पीछा कर रहे थे और मुग्ध हो रहे थे. पचासों आंखें उसे खोज रही थीं और व्याकुल लग रही थीं. जिस सड़क से वह गुजर रहा था... Read more
चंद्रकुंवर बर्त्वाल की कविता ‘काफल पाक्कू’
हे मेरे प्रदेश के वासीछा जाती वसन्त जाने से जब सर्वत्र उदासीझरते झर-झर कुसुम तभी, धरती बनती विधवा सीगंध-अंध अलि होकर म्लान, गाते प्रिय समाधि पर गानएक अंधेरी रात, बरसते थे जब मेघ गरजतेजाग उठा... Read more
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता
तुम्हारी निश्चल आंखेंचमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश मेंप्रेम पिता का दिखाई नहीं देताईथर की तरह होता हैजरूर दिखायी देती होंगी नसीहतेंनुकीले पत्थरों-सी दुनिया भर के पिताओं की लम्बी कतार... Read more
ज्ञानरंजन की कहानी ‘पिता’
उसने अपने बिस्तरे का अंदाज लेने के लिए मात्र आध पल को बिजली जलाई. बिस्तरे फर्श पर बिछे हुए थे. उसकी स्त्री ने सोते-सोते ही बड़बड़ाया, ‘आ गए’ और बच्चे की तरफ करवट लेकर चुप हो गई.... Read more
शेखर जोशी की कहानी ‘बदबू’
एक साथी ने उसकी परेशानी का कारण भाँप लिया था, “ऐसे नहीं उतरेगा मास्टर. आओ, तेल में धो लो”, कहकर उस साथी ने उसे अपने साथ चले आने का संकेत किया.(Badboo Hindi Story Shekhar Joshi) घटिया किस्म क... Read more
मुझे अपने बूबू (दादा जी) की खूब याद है. अब तो उन्हें गुजरे हुए भी चालीस साल के ऊपर हो गए हैं. उनका चेहरा अब मेरी स्मृति में थोड़ा धुंधला जरूर पड़ता जा रहा है, लेकिन उनकी कितनी ही बातें अभी त... Read more
गाली में भी वात्सल्य छलकता है कुमाउनी लोकजीवन में
किसी भी सभ्य समाज में गाली एक कुत्सित व निदंनीय व्यवहार का ही परिचायक है, जिसकी उपज क्रोधजन्य है और परिणति अपने मनोभावों से दूसरों के दिल को चुभने वाले शब्द कहकर मानसिक रूप से प्रताड़ित करना... Read more