कहानी : धनिया की साड़ी
लड़ाई का ज़माना था, माघ की एक साँझ. ठेलिया की बल्लियों के अगले सिरों को जोडऩे वाली रस्सी से कमर लगाये रमुआ काली सडक़ पर खाली ठेलिया को खडख़ड़ाता बढ़ा जा रहा था. उसका अधनंगा शरीर ठण्डक में भी... Read more
लीला गायतोंडे की कहानी : ओ रे चिरुंगन मेरे
माँ की मौत के दो दिन गुज़रे थे. उसकी याद में मुझे बार-बार रोना आ रहा था. पिता जी दिन-रात सिर पर हाथ रखे कोने में बैठे रहते. उन्हें देख कर तो मुझे माँ की याद और भी सताती थी. हर रात माँ मुझे ब... Read more
ज्ञानरंजन की कहानी ‘छलांग’
श्रीमती ज्वेल जब यहाँ आकर बसीं तो लगा कि मैं, एकबारगी और एकतरफा, उनसे फँस गया हूँ और उन्हें छोड़ नहीं सकता. एक गंभीर शुरुआत लगती थी और यह बात यूँ सच मालूम पड़ी कि दूसरे साथियों की तरह, मैं ल... Read more
हीरे का हीरा : चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी
आज सवेरे ही से गुलाबदेई काम में लगी हुई है. उसने अपने मिट्टी के घर के आँगन को गोबर से लीपा है, उस पर पीसे हुए चावल से मंडन माँडे हैं. घर की देहली पर उसी चावल के आटे से लीकें खैंची हैं और उन... Read more
काली कुमाऊँ का शेरदा
पिछले कुछ दिनों जैसा उदास और रूखा-सूखा दिन था. बारिश न होने के कारण मौसम खुश्क हो चला था. जनवरी का महीना ढलान पर था, लेकिन अभी से धूप में बैठना मुश्किल होता जा रहा था. मौसम की इस बेरुखी ने ल... Read more
कहानी : नदी की उँगलियों के निशान
नदी की उंगलियों के निशान हमारी पीठ पर थे. हमारे पीछे दौड़ रहा मगरमच्छ जबड़ा खोले निगलने को आतुर! बेतहाशा दौड़ रही पृथ्वी के ओर-छोर हम दो छोटी लड़कियाँ. मौत के कितने चेहरे होते हैं अनुभव किया... Read more
कहानी : ‘वह भूखी और गन्दी लड़की’
पहली नजर में मैंने उसे पहचाना ही नहीं, पहचानती भी कैसे उसकी तब्दीली की तो सपने में भी कल्पना नहीं कर सकती थी मैं, वैसे भी कल्पना करने की जरूरत ही नहीं थी. उसे तो तभी मैं अपनी स्मृति की कन्दर... Read more
जागो प्यारे : अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
उठो लाल अब आँखे खोलोपानी लाई हूँ मुँह धो लो (Jago Pyare) बीती रात कमल दल फूलेउनके ऊपर भंवरे झूले चिड़िया चहक उठी पेड़ परबहने लगी हवा अति सुंदर नभ में न्यारी लाली छाईधरती ने प्यारी छवि पाई भो... Read more
‘बिद्दू अंकल’ शैलेश मटियानी की प्रतिनिधि कहानी
लोग हमें गाँव में भी ‘बिद्दू’ ही पुकारते थे, दिल्ली शहर तो दिल्ली ही हुआ. यहाँ गाँव भनौरा, तहसील पट्टी, जिला-प्रतापगढ़, यू०पी० के न सिर्फ ये कि गरीब, बल्कि करीबन अनाथ गवई लरिका क... Read more
लोककथा : तपस्या का फल
विरेन आज घर से बाजार के लिये यह कहकर निकला था कि वह पूरा सामान खरीद कर लायेगा. एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी और फिर चौथी. पत्नी भी साथ में थी. बेटा चौदह साल का हो गया था, उसका यज्ञ... Read more