बैरासकुण्ड की यादें
गाँव के अपने घर से निकल कर मंदिर की ओर का रास्ता लेता हूँ . वापिस देहरादून लौटने के पहले एक बार अपने ईष्टदेव के दर्शनों के लिए. मगर एक और लालच खींच लिए जा रहा था. बचपन के अपने पाँवों के कितन... Read more
कोई दुख न हो तो बकरी ख़रीद लो: प्रेमचंद की कहानी
उन दिनों दूध की तकलीफ थी. कई डेरी फर्मों की आजमाइश की, अहीरों का इम्तहान लिया, कोई नतीजा नहीं. दो-चार दिन तो दूध अच्छा, मिलता फिर मिलावट शुरू हो जाती. कभी शिकायत होती दूध फट गया, कभी उसमें स... Read more
जुरमाना : प्रेमचंद की कहानी
ऐसा शायद ही कोई महीना जाता कि अलारक्खी के वेतन से कुछ जुरमाना न कट जाता. कभी-कभी तो उसे ६) के ५) ही मिलते, लेकिन वह सब कुछ सहकर भी सफाई के दारोग़ा मु० खैरात अली खाँ के चंगुल में कभी न आती. ख... Read more
पुस्तक समीक्षा – भंवर: एक प्रेम कहानी
भंवर: एक प्रेम कहानी- अनिल रतूड़ी का हाल ही में प्रकाशित उपन्यास है. उपन्यास में लेखक ने लोक-जीवन से भरपूर जितने चित्र और चरित्र उकेरे हैं, कुदरत के चित्र उससे कहीं कमतर नहीं दिखते. लेखक को... Read more
पहाड़ की स्मृति : यशपाल की कहानी
अब तो मण्डी में रेल, बिजली और मोटर सभी कुछ हो गया है पर एक ज़माना था, जब यह सब कुछ न था. हमीरपुर से रुवालसर के रास्ते लोग मण्डी जाया करते थे. उस समय व्यापार या तो खच्चरों द्वारा होता था या फ... Read more
फ़ोटोग्राफ़र : क़ुर्रतुल एन हैदर की कहानी
मौसमे-बहार के फलों से घिरा बेहद नज़रफ़रेब1 गेस्टहाउस हरे-भरे टीले की चोटी पर दूर से नज़र आ जाता है. टीले के ऐन नीचे पहाड़ी झील है. एक बल खाती सड़क झील के किनारे-किनारे गेस्टहाउस के फाटक तक प... Read more
प्रेमचंद की कहानी ‘मंदिर और मस्जिद’
चौधरी इतरतअली ‘कड़े’ के बड़े जागीरदार थे. उनके बुजुर्गों ने शाही जमाने में अंग्रेजी सरकार की बड़ी-बड़ी खिदमत की थीं. उनके बदले में यह जागीर मिली थी. अपने सुप्रबन्धन से उन्होंने अपनी मिल्कियत... Read more
गुन्दरू आज भी घर की देली पर खड़ा है : लोककथा
एक बार गाँव के थोकदार जी ने अपने शहर जाते चौदह साल के बच्चे गुन्दरू को वापस आते समय अच्छा गुड़ ले आने को कहा. जाड़ों के दिन है यह तो चाहिए ही और शहर से गुन्दरू गुड़ तो लाया पर कुछ इस तरह-(G... Read more
गुरूजी और जोंक
बीसवीं शताब्दी के पहले साल में अपर गढ़वाल में आधुनिक शिक्षा की अलख जगाने वाले इसी ख्याति प्राप्त विद्यालय में छायावादी कवि चंद्रकुँवर बर्त्वाल भी पढ़े थे. यहाँ के सुदीर्घ बांज-वृक्षों को वो... Read more
कोतवाल के हुक्के की एफआईआर
“देख शेखू ये बात कुछ ठीक नहीं लग रई!” कार्यक्रम शुरु हुए आधा घण्टा हुआ था और मुझे शेखू दुबे से कही गई अपनी बात रह-रह के याद आ रही थी. तब शेखू दुबे ने कहा था- फिकर की कोई बात न है. पर अब फ़िक... Read more