हिमालय और उसके जन-जीवन की गहन पड़ताल है ‘दावानल’
अब ताला क्या लगाना!तो क्या कोठरी खुली ही छोड़ दे?असमंजस में वह बंद दरवाजे के सामने खड़ा रह गया. (पृष्ठ-9) ‘दावानल’ उपन्यास की उक्त शुरूआती लाइनों में व्यक्त लेखक नवीन जोशी का असमंजस व्यवहारि... Read more
शैलेश मटियानी की कहानी ‘कठफोड़वा’
पूरे दो वर्षों के अंतराल पर आज चंदन का तिलक माथे पर लगाया धरणीधरजी ने, तो लगा, किसी तपे तवे पर ठंडे पानी की एक बूंद लुढ़का दी है. थोड़ी देर तक उन्हें अपने माथे के इर्द-गिर्द ही नहीं, बल्कि भ... Read more
गिर्दा की कविता ‘मोरि कोसि हरै गे कोसि’
आज जनकवि गिरीश चन्द्र तिवारी ‘गिर्दा’ की पुण्यतिथि है. 22 अगस्त 2010 को अपने सभी प्रियजनों को अलविदा कहने वाले ‘गिर्दा’ एक जनकवि के साथ लोक के मयाले कवि हैं. उनकी यह... Read more
अनुपमा का प्रेम
ग्यारह वर्ष की आयु से ही अनुपमा उपन्यास पढ़-पढ़कर मष्तिष्क को एकदम बिगाड़ बैठी थी. वह समझती थी, मनुष्य के हृदय में जितना प्रेम, जितनी माधुरी, जितनी शोभा, जितना सौंदर्य, जितनी तृष्णा है, सब छ... Read more
वह एक प्रेम पत्र था
तहसील का मुख्यालय होने के बावजूद शिवपालगंज इतना बड़ा गाँव न था कि उसे टाउन एरिया होने का हक मिलता. शिवपालगंज में एक गाँव सभा थी और गाँववाले उसे गाँव-सभा ही बनाये रखना चाहते थे ताकि उन्हें टा... Read more
बिश्नु : पहाड़ की कहानी
‘होई नाती जा पै आपण ख्याल करिये मेरी चिन्ता झन करिये भेटण हूँ कै औने रयै, आपण बाप रन्कर जस झन करिये’ कहते हुऐ बुढ़िया आमा; दादी के आँसू टपक पड़े जिन्हें वो रोकने का प्रयास वह कर रही थी. ‘हिट... Read more
तीसमारखां : नवीन सागर की कहानी
नगरपालिका बनी तो सरकार ने प्रशासनिक अधिकारी भेजा. अधिकारी युवा था. लम्बे बाल रखता था और गजलें गाता था. बोलता कम था. उसकी आंखों का भाव अच्छा नहीं था. जब से यहां नगर-पालिका बनी है, बस्ती भर के... Read more
आज वीरेन डंगवाल का जन्मदिन है
वीरेन डंगवाल (5.8.1947,कीर्ति नगर,टिहरी गढ़वाल – 28.9.2015, बरेली,उ.प्र.) हिंदी कवियों की उस पीढ़ी के अद्वितीय, शीर्षस्थ हस्ताक्षर माने जाएँगे जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जन्मी और सुमित्रा... Read more
विद्यासागर नौटियाल की कहानी ‘जंगलात के सरोले’
ये चिपको वाले चैन नहीं लेने देंगे. पिछले कुछ वर्षों से पहाड़ पर तैनात डी.एफ.ओ. (डिविज़नल फॉरेस्ट ऑफीसर, प्रभागीय वनाधिकारी) शिव मंगल सिंह राणा की परेशानियाँ आजकल कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी है... Read more
निर्मल वर्मा की कहानी ‘परिंदे’
अंधेरे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गयी. दीवार का सहारा लेकर उसने लैम्प की बत्ती बढ़ा दी. सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बैडौल कटी-फटी आकृति खींचने लगी. सात नम्बर कमरे में लड़कियों की बातचीत और... Read more