दीप पर्व में रंगोली
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक स्त्री की होती है जो त्योहार की व्यस्तता से थोड़ा समय निकालकर या संभवतः अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा करने ह... Read more
गुम : रजनीश की कविता
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी… तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी, तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। एक सन्नाटा सा मौजूद रहता है मेरे कमरे में। खालीपन सा रहता है छागल (मोटे कपड़े या चमड... Read more
विसर्जन : रजनीश की कविता
देह तोड़ी है एक रिश्ते ने… आख़िरी बूँद पानी का भी न दे पाया. आख़िरी सांस की आवाज भी ना सुन पाया उसकी. देह पड़ी है सीने मैं, जो पूरा सीना खाली कर देगी. चलो विसर्जन के लिए चलें. कुछ... Read more
चप्पलों के अच्छे दिन
लंबे अरसे से वह बेरोज़गारों के पाँव तले घिसती हुई जिन्स की इमेज ढोती रही. उसका हमवार जूता, हर राह, हर मंज़िल पर अपनी चमक-धमक के लिए नामवर हुआ. मगर अब लगता है चप्पल के दिन फिर गए हैं. जूते के... Read more
विश्व साहित्य के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो कई कवि ऐसे हुए हैं जिन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपने द्वारा रचित साहित्य से अपना ऊँचा मकाम बनाया है. बहुत कवियों ने मार्मिक प्रेमगीत लिखे हैं, विरह... Read more
व्यवस्था के चूहे से अन्न की मौत: हरिशंकर
इस देश में आदमी की सहनशीलता जबर्दस्त और तटस्थता भयावह है. पूरी व्यवस्था में मरे हुए चूहे की सड़ांध भरी हुई है. चूहे सरकार के ही हैं और मजे की बात यह है कि चूहेदानियां भी सरकार ने चूहों को पक... Read more
कश्मीरी सेब : मुंशी प्रेमचंद
कल शाम को चौक में दो-चार ज़रूरी चीज़ें ख़रीदने गया था. पंजाबी मेवाफ़रोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं. एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार, गुलाबी सेब सजे हुए नज़र आये. जी ललचा उठा. आजकल शि... Read more
कुन्चा : रं (शौका) समुदाय की एक कथा
-प्रताप गर्ब्याल सूरज ने अपने सातों अश्वों को अस्तबल में बांध लिया है किन्तु उत्ताप अभी भी बरकरार है. सांझ ढ़लने के बाद भी वातावरण में बीथीं ऊष्मा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है. चैत्र बैश... Read more
खेतों-बगीचों के बीच से गांव की तरफ जाने वाली पगडंडियों को चित्रकारों और कैमरामैनों की नजर से आपने खूब देखा होगा. हरियाली के बीच जगह बनाते हुए लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले ये रास्ते म... Read more
तैमूर लंग की आपबीती
“मैं उल्लू की आवाज़ को अशुभ नहीं मानता, फिर भी इस आवाज़ से अतीत और भविष्य की यादों में खो जाता हूं. जब भी रात को उल्लू की आवाज़ सुनता हूं, लगता है दुनिया के अतीत का इतिहास मेरी आंखों क... Read more