कुमाऊँ की सीमान्त शौका सभ्यता से ताल्लुक रखने वाली अनिन्द्य रूपवती राजुला और उसके प्रेमी राजकुमार मालूशाही की प्रेमकथा हमारे इधर बहुत विख्यात है. जैसा कि हर लोक साहित्य के साथ होता है इस गाथ... Read more
इगास: वंचितों को समर्पित लोकपर्व
जो छूट गए, जो पिछड़ गए हैं और जो अधिकारों से वंचित रह गए हैं, सरकारें उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए कई योजनाएँ बनाती है. लोक-समाज, पर्व-त्योहार बनाता है. सबके हिस्से में हर्ष-उल्लास सुनिश... Read more
हिमालय की लोकदेवी झालीमाली
उत्तराखंड में देवी भगवती के नौ रूपों यथा- शैलपुत्री, ब्रहृमचारिणी, चन्द्रघंटा, कुशमांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री के अतिरिक्त अन्य कई स्थानीय रूप हैं. इनमें न... Read more
बीते चालीस सालों से भगवान बदरी विशाल के मंदिर में रोज सुबह और रात नौबत बजाने वाले प्रभु दास जी का निधन हो गया. अनेक विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रभु दास जी बिना थके भगवान बदरी की सेवा में... Read more
एक तगड़े शर्मीले डोटियाल की कथा
नेपाल के डोटी गाँव से आया एक प्यारा-सा तगड़ा शरमीला किशोर ग्रामीण सोर घाटी में मजदूरी करता था. बोझा वह तब से ढोता था जबसे उसके मूंछों का क्या, उसको अपने शरीर का भी पता न था. उसे सिखाया गया क... Read more
पहाड़ में छल-छिद्र, भूत-मसाण आये दिन लगे ही हुये. गाड़ गधेरे से चिपटने वाले छल-छिद्र तो घर के बुजुर्ग एक ही बभूत में निपटा देते थे. कई बुजुर्ग तो देश-परदेश से लौटे बच्चों के चेहरे देखकर ही ब... Read more
केदारनाथ पुनर्निर्माण पर जमीनी रपट
16 नवम्बर 2020 को केदारनाथ धाम के कपाट यात्रियों के लिए बंद हो गए व केदार बाबा की डोली को उनके शीतकालीन निवास ऊखीमठ के लिए धूमधाम के साथ रवाना कर दिया गया. कोरोना महामारी के चलते इस बार यात्... Read more
आज भी जौलजीबी मेले का नाम सुनते ही लोगों के ज़हन में काली पार, एक खुले मैदान में खड़े घोड़ों की तस्वीर आ जाती है, कतार में खड़े हुम्ला-जुमला के घोड़े. कद में छोटे और व्यवहार में अधिकांश पहाड... Read more
यादों में हमेशा जिंदा रहेगा अमरिया
पड़ोस के गांव गंगनौला की चाची का परिवार टनकपुर के लिए पलायन कर गया तो उन्होंने अपनी दुधारू गाय सस्ते दामों पर बेच दी, जबकि दो-ढाई साल का बछड़ा हमें मुफ्त में दे दिया. ईजा ने भी उसे ले लिया क... Read more
आज से 102 साल पहले, साल 1918 के 11वें महीने का 11वां दिन और समय सुबह के ठीक 11 बजे. दुनिया ने चैन की साँस ली थी जब उसे पता चला कि पिछले चार साल से चला आ रहा प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो गया है... Read more