हरेले से एक दिन पहले कुमाऊँ अंचल में डिकारे पूजे जाते हैं. कुछ लोग पहले ही डिकारे तैयार कर लेते हैं और कुछ आज ही उन्हें बनाते हैं. हरेले से एक दिन पहले गौधूली के बाद डिकारे पूजे जाते हैं. इस... Read more
हरेला लोकपर्व का पर्यावरण से संबंध
आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण सबंधित समस्याओं से जूझ रहा है. प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना मानव के जीवन को सुखी, समृद्ध व संतुलित बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण का विशेष महत्व है.... Read more
बेरीनाग की बेमिसाल चाय
बेरीनाग की चाय किसी दौर में इंग्लैंड के चाय शौकीनों की पसंदीदा चाय थी इस कारण उसकी अत्यधिक मांग बनी रहती थी. उस दौर में बेरीनाग चाय लंदन के चाय घरों में एक अत्यधिक मांग वाली चाय थी. यह चाय न... Read more
लोक गायिकाओं का समृद्ध इतिहास रहा है पहाड़ में
पहाड़ के लोक में महिला लोक गायिकाएं पहले भी रही हैं जिनमे कुछ ने संचार माध्यमों से प्रसिद्धि पाई तो कुछ ने गुमनामी में रहकर भी यहां के लोक को अपनी गायन कला से सजाने और संवारने का अद्भुत कार्... Read more
नैनीताल में साइकिल रिक्शा अब इतिहास की बात हुई
बीते दिन पर्यटन नगरी नैनीताल में ई-रिक्शे का संचालन शुरु हुआ. इसी के साथ नैनीताल में 175 सालों तक सवरियां ढोने वाला साईकिल रिक्शा इतिहास की बात हो गया. माल रोड में 2 आने से शुरू होकर 20 रूपय... Read more
हरेला पर लिखो और उपहार पाओ
दुनिया भर में आज तक किसी भी देश की मुख्य नीति में पर्यावरण कोई मुद्दा नहीं है वहीं उत्तराखंड का समाज साल में तीन बार पर्यावरण से जुड़ा हरेला लोकपर्व मनाता है. उत्तराखंड के समाज में मनाये जान... Read more
हनोल का महासू देवता मंदिर
देवभूमि उत्तराखण्ड को शिव का निवास माना गया है. यहां भगवान शिव को कई रूपों में पूजा जाता है. हिमाचल सीमा से सटे उत्तराखण्ड के जौनसार-बावर तथा रवाई जौनपुर में पूजे जाने वाले महासू देवता इन्ही... Read more
अभी चंद दिनों पहले कुमाऊँ विश्वविद्यालय के वरिष्ठतम प्रोफेसर एन.एस. बिष्ट जी सेवानिवृत हो गये और बहुत से लोगों को इस बात का पता ही नहीं चला. उन्हें देखकर लगता ही नहीं था कि वह सेवानिवृति के... Read more
पाइन्स तब हमारे लिए ‘पेनल्टी प्वाइन्ट’ हुआ करता
पर्यटक देशी हो अथवा विदेशी अथवा सूदूर पहाड़ों के गंवई हों, नैनीताल को एक बार देखने की चाहत सभी में रहती है. हो भी क्यों न, छोटी विलायत जो ठहरा नैनीताल. नैनीताल की सुषमा अपनी जगह है, जो कुदरत... Read more
समळौण्या होती सैकोट के सेरों की रोपाई
गढ़वाल के उन गिने-चुने गाँवों में से एक है सैकोट जिनकी उपजाऊ ज़मीन पहली नज़र में ही मन को भा जाती है. खेती ऐसी जैसे कुदरत ने गाँव के आगे हरियाला आँगन बना के दिया हो. सिंचित हरी-भरी खेती वाला... Read more