हिमालय की पहचान का खोजी : स्वामी प्रणवानंद
हिमालय के इतिहास पुरातत्व व संस्कृति पर गहन मनन व अध्ययन के प्रणेता रहे स्वामी प्रणवानन्द. कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्गों की लोकथात को अपने विशद परीक्षणों व तल्लीनतापूर्वक की गई जांच पड़ताल के... Read more
होली के आखिरी दिन पुरुषों के भोजन एवं पेय की एक मौखिक पुस्तक कई वर्षों से चली आ रही है. यह पुस्तक किसी ने न लिखी है न पढ़ी है इसके बावजूद होली की इस पुस्तक के नियमों का पालन दशकों से किया जात... Read more
होली बच्चों का पसंदीदा त्यौहार है. होली में मटरगश्ती तो होती है लेकिन साथ में पकवान इस मटरगश्ती को दोगुना बड़ा देते हैं. होली में बनने वाले पकवानों में एक है गुजिया. बच्चों से लेकर बूढ़े गुजिय... Read more
कुमाऊनी होली: अतीत के कुछ पन्ने
कूर्मांचल जिसे वर्तमान में कुमाऊँ नाम से संबोधित किया जाता है, अनादि काल से विश्व में अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है. कालांतर में चंदवंशी चंद राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया. यहीं से शासन करत... Read more
फागुन को पौड़ी के बड़े याकूब का इन्तजार रहता है
होली है जो बैरभाव को जगाती है और न जात-पात को देखती है और न छोटे-बड़े का भेद समझती है. ऐसा त्यौहार भारतीय संस्कृति के अतिरिक्त कहीं नहीं दिखाई देता है. जिसमें सचमुच समाज आपसी मनमुटाव को भुला... Read more
भै भुको, मैं सिती : भिटौली से जुड़ी लोककथा
उत्तराखण्ड में चैत (चैत्र) का महीना लग गया है. कुमाऊं में चैत के महीने में विवाहित बहनों व बेटियों को भिटौली देने की विशिष्ट सांस्कृतिक परम्परा है. चैत के पहले दिन बच्चे फूलदेई का त्यौहार मन... Read more
बच्चों ने भरे थे टिहरी की होली में रंग
हिमालय की उपत्यका में बसा गढ़वाल यूं तो अपनी, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं धार्मिक आस्थाओं की वजह से अपनी गौरवमयी छवि के लिए प्रसिद्व है. वहीं यह क्षेत्र अपनी आध्यात्मिक चेतना के लिए भी याद किया ज... Read more
भारत के तीन काशियों में एक है उत्तरकाशी. यहाँ भगवान महादेव का भव्य मंदिर है. Kashi Vishvnath Temple uttarkashi. बनारस और गुप्तकाशी के साथ ही यहाँ भी महादेव काशी विश्वनाथ के रूप में पूजे जाते... Read more
जब कभी पर्वतीय संस्कृति की चर्चा होती है, विशेषकर कुमाउंनी संस्कृति की तो स्वतः ही यहां की बैठकी होली (Kumaon Baithki Holi) गायन का सन्दर्भ मानस पटल पर उभरने लगता है. होली गायन की परम्परा कु... Read more
गोविन्द राम काला का परिचय यूं दिया जा सकता है कि वे उत्तराखंड के उन चुने हुए लोगों में से थे जिन्होंने 1911 में ही इन्टरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी. उस ज़माने में इतनी शैक्षिक योग्यता बहुत... Read more