इस बार मण्डल के साथ कमण्डल
लगभग तीन दशक बाद ‘मण्डल-राजनीति’ का नया दौर शुरू हुआ है. रोचक बात यह है कि इस बार वही भारतीय जनता पार्टी इसकी जोरदार पहल कर रही है जिसकी ‘कमण्डल-राजनीति’ की काट के लिए 1990 में तत्कालीन प्रध... Read more
ह्यूंद का चोर और लागुली की काखड़ियाँ
इन दिनों भादो-असोज के चटक नीले आसमान से बिखरते घाम से हरे गलीचे सी बिखरी घास, पेड़ों की टहनियों से लिपटे पत्ते, एक दूसरे से उलझी लिपटी झाड़ियाँ सब हलके पीलेपन से ढंकने लगी थीं. ठागरों के सहारे... Read more
हम जाने भी कहां देंगे तुमको गिर्दा
उस साल यानी 2010 में अचानक एक याद बन गया गिर्दा. इतवार, 22 अगस्त का दिन था. बारह बजे के आसपास मोबाइल फोन कुनमुनाया. देखा, लखनऊ से नवीन का संक्षिप्त एस एम एस था- ‘हमारे गिर्दा चल दिए इस दुनिय... Read more
दिल ढूंढता है फिर वही नैनीताल एक्सप्रेस
सन 2016 के शुरुआती महीनों में लखनऊ से छोटी लाइन की ‘नैनीताल एक्सप्रेस’ ट्रेन पूरी तरह बंद होने की खबर पढ़कर यादों का पिटारा खुला तो खुलता ही चला गया था. बचपन के दिन. हर साल 20 मई को हमें स्कू... Read more
उन दिनों यह अफवाह जोरों पर रहती थी कि, इंटर साइंस कर लो, तो घर पर ही बुलावा आ जाता है. एक दिन भी बेरोजगार नहीं रहने देते. पकड़-पकड़कर नौकरी देते हैं. अगर कहीं छुप भी जाओ, तो वहीं पहुँच जाते है... Read more
इंजीनियरिंग करने से बेहतर हो गया है घास छीलना
आज एम. विश्वेश्वरैया का जन्मदिन है. भारत में उनका जन्मदिन अभियन्ता दिवस (इंजीनियरिंग डे ) के रूप में मनाया जाता है. एम. विश्वेश्वरैया का पूरा नाम मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या था. वह एक ख्याति प... Read more
एक मिसाल है पहाड़ की यह बेटी
मेरे लिए वह एक प्यारी बहन है. मेरी अपनी बैणी. पहली बार उस लड़की से मिलिए तो उसमें आपको एक निहायत भोली और ठेठ पहाड़ी लड़की नज़र आएगी. सादगी से भरी उसकी शुरुआती बातें आपके पहले इम्प्रेशंस से मेल ख... Read more
शऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है – 11
यूपीएससी उपासक की वेदना अभी पंकज सर और देवेन्द्र `चुरू’ मिले कॉरीडोर में. दोनों ऐसे चल रहे थे जैसे कोई वू-डू करके चला रहा हो. वू-डू भी नहीं बल्कि जैसे कल हेमा मैडम बता रही थीं कि यहाँ पहाड़ों... Read more
एक और दिवस और हिन्दी में बिन्दी
एक बड़ा सा हॉल, इतना बड़ा कि मेरे कल्लू-झल्लू बैल की जोड़ी के साथ हमारी तीनों भैंसे और एक थोरू समेत गाँव के लगभग आधे परिवारों के इतने ही जानवर इसमें बांधे जा सकते थे. बीच में लगी एक बैंच जिसके... Read more
नारायणराम टेलर मास्टर की फसक
नारायणराम मास्साब के बारे में समूचे रानीखेत और आसपास के इलाकों में विख्यात था कि वे नब्बे की उमर में भी दिन भर में एक थ्री-पीस काट और सिल लेते थे. वे अंग्रेजों के ज़माने के टेलर थे और 1947 से... Read more


























