खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर – 3
(पिछले हिस्से: खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर -1, खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर -2) गाड़ी सड़क से उतार कर कच्चे में खड़ी की. लगा कि शायद गरम होने से बन्द हो गई. काफ़ी देर बोनट खोलकर इन्त... Read more
गेलिक भाषा में एक शब्द होता है – “usquebaugh”, जिसका अर्थ हुआ “जीवनजल”. ध्वनि के आधार पर यह शब्द कालान्तर में “usky” बन गया. जब अंग्रेज़ी भाषा ने इसे... Read more
साझा कलम: 8 मनीष पाण्डेय
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से... Read more
सीसमहल में रहने वाले गट्टू भाई हद दर्जे के गपोड़ी हैं. और मुझे उनका साथ अच्छा लगता है. दारू पीते हैं तो उनका तकिया कलाम होता है – “ज़रा बनइयो एक बौव्लेंडर बेटे”. बताता चलूँ... Read more
खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर 2
(पिछ्ला हिस्सा: खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर – 1) चौबे जी के ससुराल वाले मूल रूप से बागेश्वर के रहने वाले हैं और पूना में बस गए हैं. परिवार का अपना अच्छा कारोबार है. सीधे-सरल, खात... Read more
शेरदा अपनी जगह पर बने रहेंगे – अद्वितीय
पहली बार नैनीताल के एक शरदोत्सव में हुए कुमाऊंनी कवि सम्मलेन में शेरदा को कविता पढ़ते सुना. कुमाऊं के उस बेजोड़ शोमैन का मैं तुरंत दीवाना हो गया था. बीस-तीस और कविगण भी मंच पर शोभायमान थे और... Read more
पहाड़ से भी विकराल है पूँजीपतियों की हवस
इट्स ऑसम… वैदर इज़ सो कूल… सनशाइन फील्स सो गुड… झुलसाती गरमी में जेब में पैसे हों तो पहाड़ पहुँचकर आप भी ऐसा ही कुछ कहेंगे. पहाड़ कितने ख़बूसरत होते हैं पर्यटकों के लिए. उन... Read more
खंभे पर चढ़कर शुभकामनाएं देते भाई साहब
भाई साहब, त्योहारों से ऐन पहले सड़क किनारे के बिजली के ख़म्भों पर चढ़ जाते हैं. आप यह मत सोच लेना कि भाई साहब बिजली विभाग से हैं और लोगों की असुविधा को ध्यान में रखकर लाइनें दुरस्त करने के काम... Read more
माधुरी दीक्षित, नानाजी और पानी की बोतल का किस्सा
नानाजी किसी बीमा कम्पनी में लम्बी नौकरी कर बड़ी पोस्ट से रिटायर हुए थे. सगे नाना नहीं थे. किसी रिश्ते से माँ के चचा लगते थे. हमारे बचपन में जाड़ों के दिनों वे हमारे घर आते तो दो-दो, तीन-तीन मह... Read more
खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर 1
यह 2007 की बात है. दिन-वार ठीक से याद नहीं. अक्टूबर का महीना था. उन दिनों रामलीला(एं) चल रही थीं. अल्मोड़ा से तीन जने दिल्ली के लिए रवाना हुए – बागेश्वर से केशव, अल्मोड़ा से रज्जन बाबू औ... Read more