कहो देबी, कथा कहो – 3
पिछली कड़ी वह पहली उड़ान मैंने आत्म निर्भर बनने के लिए अपनी पहली उड़ान भरी. रहने की जगह खोजने के लिए अपने सहपाठियों के साथ बात करनी शुरू कर दी ताकि जाड़ों की छुट्टियों के बाद डेरा बदल सकूं. हरीश... Read more
माफ़ करना हे पिता – अंतिम
(पिछली क़िस्त: माफ़ करना हे पिता – 6) लॉटरी उनसे तब तक नहीं छूटी जब तक सरकार ने इसे बंद न कर दिया. इस धंधे में असफल रहने का कारण उनकी नजर में मैं था. बकौल उनके- गुरू हम तो क्या का क्या क... Read more
रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – अंतिम
(पिछली क़िस्त का लिंक – रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 6) लौटते हुए ज्यादा परेशानी नहीं हुई पर अब बर्फ पिघलने लगी है इसलिये रास्ते में फिसलन हो गयी है जिससे चलने में परे... Read more
फ़िल्म आस्वाद किसे मानें
बीती 22 जून से 25 जून इंदौर की प्रतिष्ठित सांस्कृतिक संस्था ‘सूत्रधार’ ने इंदौर के होटल अपना व्यू के सबरंग सभागार में फ़िल्म आस्वाद की कार्यशाला आयोजित की जिसमें आस-पास के इलाके और इंदौर से क... Read more
अपने भीतर घिरते जाने की कविताः आलोक धन्वा के बारे में -शिवप्रसाद जोशी अगर हिंदी कविता में इधर सबसे बेचैन और तड़प भरी रूह के पास जाना हो तो वो आलोक धन्वा के पास है. अपने दौर के तूफ़ानी कवि के... Read more
नैनीताल की रामलीला
नैनीताल की रामलीला का इतिहास नैनीताल में मल्लीताल की रामलीला की शुरूआत सन 1918 में राम सेवक सभा की स्थापना के साथ ही शुरू हो गयी थी. शुरूआती दौर में यह रामलीला खुले मैदान में होती थी जिसे आल... Read more
पहाड़ और मेरा बचपन – 3
पिछली क़िस्त पहाड़ और मेरा बचपन – 2 मां आस-पास की ऐसी औरतों को जानती थी, जिन्होंने खुद भी गाय पाली हुई थीं. ये सभी महिलाएं आपस में मिलकर घास का कोई पहाड़ खरीद लेतीं और फिर मिलकर घास काटने जात... Read more
माफ़ करना हे पिता – 6
(पिछली क़िस्त: माफ़ करना हे पिता – 5) एक रोज सीढ़ियों से लुढ़क कर मैं अपना माथा फुड़वा बैठा. लोगों ने घाव में चीनी चरस ठूँस कर कपड़ा बाँध दिया. कुछ दिन बाद घाव पक कर रिसने लगा, उसमें मवा... Read more
रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 6
(पिछली क़िस्त का लिंक – रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 5) सुबह 4 बजे उठी और सबसे पहले बाहर देखा. आसमान अभी भी खुला है इसलिये तसल्ली हो रही है कि ट्रेक अच्छे से हो जायेगा... Read more
धौली और नन्दा की कथा
कार्तिग के महीने गांव के ऊपर नीचे की सारियां फसल काटने के बाद खाली हो जाती. आसमान बरसात के बाद गहरा नीला ये स्यो (सेब) जैसे बड़े बड़े तारों से अछप रहता. हम सब बच्चे चौड़ी फटालों वाले आँगन में अ... Read more